व्यंग्य: टीयर गर्ल्स

-सुदर्शन सोनी-

क्रिकेट का खेल ही एैसा है इस देश के लिये कि इसके साथ ग्लैमर वर्ल्ड भी अपने आप ही चला आता है। कुछ समय पहले क्रिकेट प्रतियोगिताओं की लगातार बढ़ती संख्या व फिक्सिंग के कारण लोगों की इसमें रूचि कुछ कम वैसे ही हो चली थी जैसे कि आम चुनावों में वोट देने के मामले में हो रही थी। इसका नतीजा यह हुआ कि क्रिकेट के नाम पर आम जनता की जेब से हजारों लाखों खाली करवा कर करोडो़ अरबों छापने वालों ने एक नया कान्सेप्ट चीयर गर्ल्स ले आए। विदेशी गोरी चमडी़ वाली छरहरी व गजब के जलवे दिखाने वाली, कम से कमतर कपडो़ में हंसी ठिठोली करने वाली बालाओं को बैट बल्ले के खेल में हुस्न का खेल दिखाने के लिये ठेल दिया गया। इससे दर्शकों की जेब खाली होने की धीमी पड़ रही रफ्तार थम गयी। अब तो क्रिकेट मैच में यदि चीयर गर्ल्स न हो तो वो मजा ही नहीं आये! बात भी सही है जब एक बार कोई चस्का किसी दर्शक वर्ग या समूह को लगा दिया जाये तो फिर कितना भी अन्य तरह से मस्का लगाओ उसकी मांग हमेशा बनी रहती है। जो घर में बैठकर टीवी पर क्रिकेट का मजा लेते थे उन्हें भी चीयर गर्ल्स के बिना चीयरफुल महसूस नहीं होता था। कहा जाता है कि बरगद का पेड़ अपने आसपास अन्य प्रजातियों के पेडो़ को पनपने नहीं देता है। कुछ लोगों का कहना है कि क्रिकेट रूपी बरगद के कारण अन्य खेल रूपी वृक्ष नहीं पनप पाते है उन्हें आवश्यक सुविधाओं व मीडिया में तव्वजो ग्लैमर वर्ल्ड की हस्ती रूपी खाद पानी हार्मोन आदि नहीं मिल पाते हैं। चाहे वह हाकी हो या कबडडी हो या अन्य देशी खेल हो जैसे खो खो ये क्रिकेट के सामने सब खो हो जाते है। वैसे अभी हाकी लीग की संकल्पना ने इस उपेक्षा के घाव में कुछ मरहम लगाने की कोशिश की है। एक उपाय है क्रिकेट रूपी बरगद से इन अन्य खेलो रूपी वृक्षों को बचाकर जीवित रखने का कि यहां चीयर गर्ल्स नहीं तो कम से कम टीयर गर्ल्स की व्यवस्था कर दी जाये गंगू दावा करता है कि कान्सेप्ट बहुत अच्छी साबित होगी! जहां चीयर गर्ल्स हंसाती थी मन में गुदगुदी पैदा करती थी ये रूलायेंगी, मन को सोचने के लिये विवश कर देंगी। लेकिन निराश न हो ये भले ही रोने वाली हो रहेंगी बला की खूबसूरत! चीयर गर्ल्स से किसी भी तरह कम नहीं और वैसे भी आप जानते ही है कि स्त्री रोते समय बला की खूबसूरत पुरूष को लगने लगती है। यह कान्सेप्ट किसी भी तरह से फेल नहीं होने वाली ओर इसके बाद आप देखिये कबडडी कैसे पूरे राष्टीय मीडिया में कबड़ कबड करती है। हाकी कैसे बच्चे जवान क्या काका काकी तक सब टीवी से चिपक कर देखने मजबूर हो जायेंगे। हाकी की स्टिक रूपी घडी़ जो आज आयोजक व दर्शक रूपी सेल नहीं मिलने से बंद पडी़ है वह फिर से टिक टिक करने लगेगी! जो लोग थियेटर में डामा देखते है या टीवी में आप जैसी पार्टी का हंगामा डामा रोज देखते वे टीयर गर्ल्स की एक्टिंग देखकर मदहोश हो जायेंगे, उस खेल को देखने मैदान में खिंचे चले जायेंगे! टीयर गर्ल्स केवल चीयर नहीं करेगी टीयर गिरा कर बतायेगी कि कैसे इन देशी खेलो में देश की समाज की रीति रिवाज संस्कृति सब समाहित है और यह हमारा राष्टीय कर्तव्य है कि हम इन्हें देखने जाये! यह बताते उसके आंसू झर झर बहेंगे एैसे धांसू तरीके से कि दर्शकों की आंखें भी गीली हो जायेंगी। आखिर कोई हुस्न की मल्लिका सामने बैठे अपनी भूरी नीली आंखों से झर झर आंसू बहा रही हो तो हमारी आंखें भला क्या गीली नहीं होंगी।

आपकी क्या सबकी होंगी खूबसूरती में यही तो खूबी है!

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