-पुरुषोत्तम विश्वकर्मा-
आज जब में चाचा दिल्लगी दास से मिला तो देखा कि जनाब व्यस्त का कम अस्तव्यस्त ज्यादा लगे। मेरे शुभ प्रभात का प्रतुत्तर दुए बिना ही मुझे अपने पीछे पीछे आने का इशारा कर सीढियों की और दौड़ पड़े। उन्हें सीढियों पर ऐसे बन्दर की भांति कुलांचें भरते हुए देख कर कोई सोच भी नहीं सकता कि बुढऊ घुटनों के पुराने दर्द का रोगी हो सकता है। देखा तो चाचा छत के एक विशेष कौने में एक खास दिशा की ओर मुंह कर के बड़े जोर जोर से बोल रहे थे कि हां हां अब थोड़ा थोड़ा सा टावर मिल रहा है। वो क्या है कि हमारे यहां टावर की बड़ी समस्या रहती है। कभी तो नो नेटवर्क कवरेज, कभी नेटवर्क इज बिजी ही मिलता है, अब आप समझे नहीं तो यूं समझ लो कि ट्रेफिक जाम ही मिलता है, इसकी शिकायत भी की मगर आज तक तो कुछ नहीं हुआ। कॉल करने वाले की बात का जवाब हां हूं में ही देकर अपने मोबाइल इंस्ट्रूमेंट, उसके कवर, केस, ब्लेक में खरीदी गई सिम आदि के ही के बार में अजीब अजीब किस्म की मालूमात देते रहे, जब अगले ने अपना मोबाइल सेट स्विच ऑफ़ कर दिया तब जाकर के उसका पिण्ड छोड़ा। चाचा बड़े ही अनमने भाव से अपने मोबाइल इंस्ट्रूमेंट को अपनी लठ्ठे की बनियान की जेब के हवाले करते हुए मेरी तरफ मुखातिब हुए और बोले कपूत तू कब आया। कब आया सो आया बता क्यों आया।आओ नीचे चलते है, यहां हवा बड़ी सर्द चल रही है, धूप भी तो नहीं है, कहते हुए चाचा घुटनों को दोनों हाथों का सहारा देते हुए धीरे धीरे सीढियां उतरने लगे। अभी आधी ही सीढियां उतर पाए थे कि चाचा के लैंड लाइन टेलीफोन की घंटी बजने लगी।मैंने कहा चाचा नीचे लैंड लाइन फोन बज रहा है, तुम घुटनों के दर्द से परेशान हो कहो तो मैं उठा लूं, तो चाचा उस बेसिक फोन की घंटी को अनसुनी कर के बुदबुदाए, रहने दो किसी को दरकार होगी तो मोबाइल पर कर लेगा बात, कहते हुए चाचा सीढियों पर वापस मुड़ गए और जा कर जम गए छत के उसी तयशुदा कोने में। चाचा काफी देर तक छत के उसी तयशुदा कोने में घंटी आने के इंतजार में जमे रहे मगर उनके मोबाइल को नहीं बजाना था सो नहीं बजा। जब काफी देर बाद चाचा नीचे आये तो चाय की जगह मोबाइल की चर्चा छिड़ते देख मैंने टोका, चाचा पान वाले भैया के शादी में शरीक होने नहीं जाना है क्या, अब और देरी से पहुचे तो वो हमारे लत्ते लेगा, शादी निपटने के बाद तक तुम्हारी और उसकी नोक झोंक चलेगी। बात चाचा के समझ में आ गयी और बोले जल्दी चलो ताकि टेम्पो का किराया केवल पान वाले भैया के घर तक का ही भुगतना पड़े, लेट हो गए तो पंद्रह बीस रूपयों की चप्पत और लग जायेगी। चाचा और मैं एक टेम्पो में बैठ गए, टेम्पो वाला और सवारियां होने के इंतजार में था कि उसका मोबाइल भी यकायक बज उठा और उसने हमसे कहा भाई जान माफ़ करें आपको टेम्पो से उतरना पड़ेगा, मेरे कहीं की बुकिंग आ गई है। हम दूसरे टेम्पो के इंतजार में खड़े थे, हमारे वहां खड़े खड़े ही एक गधा छकड़ी वाले ने अपना मोबाइल कान से लगाये लगाये ही गोदाम नंबर दो में पहुंचाने की कह कर अपनी गधा छकड़ी का मुंह विपरीत दिशा में मोड़ लिया। हम पड़ते उठते जैसे तैसे पान वाले भैया के घर तक पहुंचे तो बारात चल पड़ी थी, हम भी साथ हो लिए। यहां भी बारातियों की जेबों में मोबाइल की घंटियां ऐसे बज रही थी मानो चलती भेड़ों के झुण्ड में भेड़ों के गले में पड़ी घंटियां बजा करती हैं। बारातियों की तो ही क्या बेंड वालों तक की घंटियां बज रही थी, खुद दूल्हा मियां दोनों हाथों में मोबाइल शरीके हयात के घर जा रहे थे, सबको अपने अपने मोबाइल से काम था, कोई कोई तो मोबाइल के चक्कर में चलते चलते नाली में गिरे तो दो चार को घोड़ी की दुलत्ती खानी पड़ी। मैंने अब तक अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर रखा था, पर अब सब्र नहीं रहा, मुझे भी स्विच ऑन करना पड़ा।
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