व्यंग्य : आटा, डाटा और नाटा

-अशोक गौतम-

दोस्तो, आज पूंजीपति और सर्वहारा के बीच का संघर्ष गौण हो गया है या कि सर्वहारा वर्ग पूंजीपतियों से लड़तेलड़ते मौन हो गया है. इसीलिए, समाज में समता लाने वाले वादियों ने भी सर्वहारा के लिए लड़ना छोड़ सर्वहारा के चंदे की उगाही से शोषण की समतावादी मिलें स्थापित कर ली हैं.

आज संघर्ष अगर किसी के बीच में है तो बस आटे और डाटे के. अब वे हम से डाटे के हथियार से हमारा आटा छीन रहे हैं. हम से समाज का नाता छीन रहे हैं. हम से हमारा नाता छीन रहे हैं. आज जबजब डाटे का दांव लग रहा है, वह आटे को पछाड़ने में जुटा है. आटे को लताड़ने में जुटा है. और बेचारा आटा, एकबार फिर पूंजीपतियों के हाथों नए तरीके से लुटा है. अपना मुंह ताकता.

मैं अंधी आंखों से भी बिन संजय के देख रहा हूं कि आज डाटा मंदमंद मुसकराते हुए हम से हमारा आटा छीन रहा है. हर वर्ग आटा छोड़ डाटे के पीछे यों भाग रहा है जैसे उस के पांव बहुत पीछे छूट चुके हैं. पर वह फिर भी डाटे के पीछे यों भागे जा रहा है कि…

मेरी पूछो तो मैं बिन आटे के हफ्तों जी सकता हूं मजे से, पर बिन डाटे के मुझे कोई एक पल भी जीने को कहे तो मेरा जीना दूभर हो जाए.

कल पता नहीं क्या हुआ कि मुझे पता ही न चला कि कब मेरा डाटा खत्म हो गया. मैं परेशान. मैं ने अपनी परेशानी में अपने पुरखे तक परेशान कर डाले. डाटा खत्म होने पर मेरा दिमाग सुन्न हो गया. लगा, ज्यों मेरी रंगों का लहू जम गया हो जैसे. पूरे बदन में एकाएक सुन्नगी छाने लगी. चेहरे पर तो पैदा होते ही मुर्दनी आ डटी थी. आंखों के सामने अंधेरा होने लगा.

मुझे लगा कि अब मेरी अंतिम घड़ी नजदीक आ गई हो जैसे. मैं ने मन ही मन डाटे वाली सब से सस्ती कंपनी का ध्यान किया तो कंपनी की कृपा मुझ पर बरसी और एकाएक कहीं से डाटादान करने वाले सज्जन आ पहुंचे. उन्होंने मुसकराते हुए हौटस्पौट पर अपने डाटे से मुझे जोड़ा, तो मेरी बंद होती सांसें फिर से चलनी शुरू हुईं. कोई माने या न, पर आज की तारीख में नेत्रदान से अधिक महत्त्व डाटादान का है, डाटाप्रेमियो.

जिधर देखो, उधरइच हर नामी कंपनी के आटे पर हर मामूली से मामूली कंपनी का डाटा भारी है. आटा बेचारा भूखे पेटों का मुंह ताक रहा है. बाजार में बोरियों में पड़ापड़ा धूल फांक रहा है. पर सब आटा छोड़, डाटे के पीछे बदहवास दौड़ रहे हैं. जो भी है बस, डाटाडाटा चिल्ला रहा है.

हवा पानी के बदले आज का जीव डाटा पी रहा है, डाटा पहन रहा है, डाटा खा रहा है. वह सुबह उठते डी डाटे से फेसवाश करता है, रात को डाटे को अपने दामन से चिपकाए अपनी आभासी दुनिया में जीभर विचरता है. सुबह उस के पास डाटा बचा हो, तो जीभर खुश होता है. जब डाटा न बचा हो, तो सब के साथ होने के बाद भी अपने को समाज में नितांत अकेला पा दहाड़ें मारमार कर रोता है.

जिधर देखो, डाटा का जादू हर समाज के सिर चढ़ कर बोल रहा है. जिस के पास मोबाइल भी नहीं, वह आटा गूंधने को उस में पानी के बदले डाटा घोल रहा है. डाटे ने हर जीवअजीव को पगला दिया है. वह डाटे के सिवा कोई बात करना ही नहीं चाहता. वह कम पैसे में अधिक डाटा कहां मिलेगा, इस से अधिक कुछ सुनना ही नहीं चाहता. जिन की टांगें जवाब दे चुकी हैं, वे भी डाटे की स्पीड की टांगों पर दौड़ कर भवसागर पार होना चाहते हैं.

आज जीव को जल नहीं चाहिए. क्योंकि आज जल जीवन नहीं, डाटा ही जीवन है. आज के जीव को वायु नहीं चाहिए. क्योंकि आज वायु जीवन नहीं, आज डाटा ही जीवन है. आज के जीव की सांसें वायु पर नहीं, डाटे की स्पीड पर निर्भर करती हैं. आज के जीव को अग्नि नहीं चाहिए. क्योंकि अग्नि में वह तेज नहीं जो डाटे में है. आज के जीव को आकाश नहीं चाहिए. आकाश में वह खुलापन नहीं जो डाटा उसे देता है. आज के जीव को चाहिए तो, बस, डाटा. जो उसे जितना अधिक डाटाडाटा का भगवान मुहैया करवाए, वह उसी का मुरीद हो जाए.

आज हमें चाहिए तो बस डाटा, डाटा, डाटा. जो हमें जितना अधिक डाटाडाटा का मेहरबान मुहैया करवाए, हर तबका उसी का मुरीद हो जाए.

बेहतर जीवन जीने के लिए आज प्यार गौण हो गया है. बेहतर जीवन के लिए आज मनुहार मौन हो गया है. जिस के पास जितनी हाई स्पीड वाला सिम, वह उतना ही फास्ट. डाटा का न कोई धर्म, डाटा की न कोई कास्ट. जय हो धर्मनिर्पेक्ष डाटा…

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