नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने वैश्विक विकास के लिए शांति को पूर्व-निर्धारित शर्त बताते हुए कहा कि राजगीर का विश्व शांति स्तूप अंहिसा, शांति व एकता का प्रतीक है। इसका संदेश विश्व की तमाम संस्कृतियों, धर्मों एवं राष्ट्रों के लिए है। राष्ट्रपति ने बिहार के राजगीर में आज विश्व शांति स्तूप की 50वीं वर्षगांठ पर एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि विश्व शांति स्तूप एकता, शांति और अहिंसा का प्रतीक है। इसके संदेश में ऐसी सार्वभौमिकता है जो संस्कृतियों, धर्मों और भौगोलिक सीमाओं के दायरे में सिमटी हुई नहीं है। यह जापान और भारत जैसी शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के बीच साझेदारी और व्यापक सहयोग को भी दर्शाता है। कोविंद ने भगवान बुद्ध और महात्मा गांधी की शिक्षाओं को मौजूदा समय में भी प्रासंगिक बताते हुए कहा कि बुद्ध और गांधी की शिक्षाएं वर्तमान समय में संघर्ष के समाधान में बहुत मदद कर सकती हैं। उन्होंने कहा कि महात्मा बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग का दर्शन न केवल दुनिया के आध्यात्मिक परिदृश्य में बड़े परिवर्तन का कारण बना बल्कि साथ ही इसने सामाजिक राजनीतिक और कारोबारी नैतिक मू ल्यों को स्थापित करने में भी बड़ी भूमिका निभाई। उन्होंने कहा कि महात्मा बुद्ध के संदेश दुनियाभर में मौजूद उनके 50 करोड़ से ज्यादा अनुयायियों से भी अधिक लोगों तक पहुंचे हैं। बुद्ध के जीवन से संबंधित स्थानों को पर्यटन स्थलों के रूप में विकसित करना उनके संदेशों की मूल भावना के प्रति लोगों और विशेषकर युवाओं को आकर्षित करने का एक प्रभावी तरीका है। कोविंद ने कहा कि विकास के लिए शांति जरूरी है। बुद्ध के शांति के संदेश का सार बाह्य शांति के लिए आंतरिक शांति को जरूरी बताता है। आध्यात्मिकता, शांति और विकास एक दूसरे के संबल हैं जबकि संघर्ष, अशांति और विकास की कमी एक दूसरे की वजह बनते हैं। उन्होंने लोगों से गरीबी और संघर्ष को कम करने के लिए एक शक्तिशाली साधन के रूप में शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने की अपील की।
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