Railway : सुप्रीम कोर्ट आदेश अनुसार ट्रेन के लेट होने पर रेलवे अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकता है, उसे यात्रियों को मुआवजा देना होगा। जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने कहा कि सार्वजनिक परिवहन को निजी क्षेत्र के साथ प्रतियोगिता में टिके रहना है तो उसे अपने सिस्टम को सुधारना होगा। कोर्ट ने ट्रेन में देरी के एक मामले में एक यात्री को तीस हजार रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि यात्रियों का समय कीमती होता है और ट्रेनों में देरी के लिए किसी न किसी को जवाबदेही लेनी ही होगी।
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शासन और प्रशासन की दया पर निर्भर नहीं रह सकते हैं। यह याचिका संजय शुक्ला ने दायर की थी। संजय शुक्ला अपने परिवार के साथ 11 जून, 2016 को अजमेर-जम्मू एक्सप्रेस से यात्रा कर रहे थे। ट्रेन को सुबह आठ बजकर दस मिनट पर जम्मू पहुंचना था लेकिन यह अपने गंतव्य पर 12 बजे पहुंची। उन्हें दोपहर 12 बजे की फ्लाइट से जम्मू से श्रीनगर जाना था। इस देरी के कारण उनकी फ्लाइट छूट गई और उनके परिवार को टैक्सी से जम्मू से श्रीनगर जाना पड़ा।
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इसके लिए उन्हें टैक्सी के लिए 15 हजार रुपये देने पड़े। इसके साथ ही उन्हें ठहरने के लिए भी दस हजार रुपये देने पड़े। याचिकाकर्ता ने अलवर के उपभोक्ता फोरम में याचिका दायर की। अलवर के उपभोक्ता फोरम ने रेलवे को 30 हजार रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया। राज्य उपभोक्ता फोरम और राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम ने इस आदेश पर मुहर लगाई। रेलवे ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
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