Jharkhand,400 रुपये लगाकर बन गए थे विधायक, उनके जमाने का कोई विधायक अब दुनिया में नहीं है, पढ़ें पूरी कहानी

Ranchi : झारखंड राज्य के सबसे वयोवृद्ध पूर्व विधायक सामुएल होरो अलग राज्य गठन के बाद यहां के जनजातियों और स्थानीय लोगों की उपेक्षा से हतोत्साहित पूर्व विधायक होरो कहते हैं, कि जिस झारखंड के लिए उन लोगों ने 60 वर्षों तक आंदोलन किया, वे लोग ही अलग-थलग कर दिये गये। बाहरी लोग झारखंडियों पर शासन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम लोगों ने बिहार, बंगाल, ओड़िशा और तत्कालीन मध्यप्रदेश के 26 जिलों को मिलकर कर झारखंड राज्य की मांग को लेकर आंदोलन किया था, पर झामुमो और भाजपा ने छोटा झारखंड को ही स्वीकार कर लिया। तीन सितंबर को अपना 98वां जन्मदिन मनाने वाले सामुएल होरो 1962 से 1967 तक तोरपा के विधायक थे।

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झारखंड में सामुएल अपने समय के एकमात्र जीवित पूर्व विधायक हैं। उनके जमाने का कोई विधायक अब दुनिया में नहीं है।

पूर्व विधायक सामुएल होरो ने बताया कि उन्होंने 1962 में पहली बार तोरपा विधानसभा सीट से झारखंड पार्टी के टिकट पर विधायक बने। एस समय लगभग 41 हजार मतदान हुआ था, इनमें 38 हजार वोट सामुएल को मिले थे। उन्होंने बताया कि उस समय चुनाव लड़ने में मात्र चार सौ रुपये खर्च हुए थे। वे अपने भाई और दोस्तों के साथ साइकिल से गांव-गांव जाकर चुनाव प्रचार करते थे, लेकिन उस समय मारंग गोमके जयपाल सिंह की ऐसी लोकप्रियता थी कि जीत के लिए झारखंड पार्टी का नाम ही काफी था। पूर्व विधायक होरो ने बताया कि 1962 में बिहार विधानसभा में झारखंड पार्टी के 32 विधायक थे।

कांग्रेस में विलय के बाद जयपाल सिंह का साथ छोड़ दिया

सामुएल होरो बताते हैं कि 1963 में जयपाल सिंह ने जवाहर लाल नेहरू के कहने पर झारखंड पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया, लेकिन सामुएल होरो और बागुन सुंबरूई कांग्रेस में शामिल नहीं हुए और झारखंड पार्टी को पुनर्जीवित किया। पूर्व विधायक बताते हैं कि 1967 में झारखंड पार्टी के एनई होरो ने उन्हें मांडर से उम्मीदवार बनाया। मांडर उरांव बहुल क्षेत्र है। वहां उन्हें चुनाव में सफलता नहीं मिली। 1967 से एनई होरो सात बार तोरपा से विधायक बने और तीन बार खूंटी के सांसद रहे। सामुएल होरो ने कहा कि उसके बाद पार्टी ने कभी उन्हें टिकट नहीं दिया। फिर भी वे आजीवन झारखंड पार्टी से जुड़े हुए हैं।

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35 किमी पैदल चलकर बस पकड़ते थे, तब पहुंचते थे रांची

पूर्व विधायक सामुएल होरो बताते हैं कि उनका परिवार रनिया प्रखंड के तिरता गांव का रहने वाला है। जब 1962 में वे पहली बार विधायक चुने गये, तो उन्हें बिहार विधानसभा में जाने के लिए 35 किलोमीटर पैदल चलकर मरचा गांव जाना पड़ता था। वहां से बस से रांची और रांची से पटना पहुंचते थे। ट्रेन पकड़ने के लिए भी 40 किलोमीटर पैदल चलकर पोकला स्टेशन पहुंचना पड़ता था।

1952 से पंचायत, विधानसभा और लोकसभा के हर चुनाव में वोट करते रहे हैं दोनों भाई

98 वर्षीय पूर्व विधायक सामुएल होरो और उनके अनुज 90 वर्षीय हरदुगन होरो बताते हैं कि दोनों भाई 1952 से लेकर अब तक जितने भी चुनाव हुए हैं, हर चुनाव में वोट दिया है। वे बताते हैं कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में हमेशा उन्होंने झारखंड पार्टी को ही वोट दिया है।

सरकार कर रही है उपेक्षा

झारखंड आंदोलनकारी मोर्चा के नेता अनिल भगत और कुलन पतरस आईंद ने आरोप लगाया कि झारखंड में अब तक जितनी भी सरकारें हुई हैं, सभी ने पूर्व विधायक सामुएल होरो की उपेक्षा करती रही है। पिछले कई महीनों से उनकी तबीयत ठीक नहीं रहती है। इसके बाद भी सरकार उनकी कोई सुधि नहीं लेती, जबकि अभी राज्य में झारखंड नामधारी पार्टी की ही सत्ता है।

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