एमआईएम झारखण्ड में 35 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार सकती है

रांची : झारखण्ड में जोरदार एंट्री करने वाली असदउददीन  मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन की धमक से सेक्यूलर पार्टियों में खलबली मची है। इस बीच बड़ी खबर यह है कि झारखण्ड विधान सभा चुनाव  में ओवैसी 35 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करने की तैयारी में हैं। एच एस  मीडिया के साथ खास बातचीत में मजलिस के प्रदेश अध्यक्ष हुब्बान मलिक ने बताया कि मजलिस  ने  पिछले डेढ़ साल में 30 से 35 विधानसभा क्षेत्रों में बूथ लेबल तक अथक मेहनत से अपनी तैयारी लगभग मुक्कमल कर ली है। इस बार के विधान सभा चुनाव में मजलिस झारखण्ड में पूरे दम खम से चुनाव लड़ने की तैयारी में है।
हुब्बान मलिक ने बताया कि झारखण्ड में मजलिस को यहां के मुसलमानों का अप्रत्याशित साथ मिल रहा है। लोगों के अपार समर्थन को देखते हुए ओवैसी साहब को पहली ही कोशिश में पतंग उड़ने की काफी उममीदें हैं। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र और दूसरे प्रदेशों में मजलिस को एक से ज्यादा बार के प्रयास के बाद कामयाबी मिली है। लेकिन झारखण्ड में मिल रहे जनसमर्थन को देखते हुए हमें पूर्ण विश्वास है कि यहां पहली ही कोशिश में कामयाबी मिलेगी। 
उल्लेखनीय है  कि पिछले 24 सितम्बर को रांची में आयोजित ओवैसी की रैली में झारखण्ड के मुसलमानों की जुटी अप्रत्याशित भीड़ ने तो इन  सेक्यूलर जामातों की नींद ही हराम कर दी है। मूसलाधार बारिश के बावजूद टस से मस न होने वाली लाखों की भीड़ ने यह साबित कर दिया कि ओवैसी को लेकर झारखण्ड के मुसलमानों में गज़ब की दीवानगी है। ओवैसी बंधुओं के लिए युवाओं में खासतौर से रूझान देखने को मिल रहा हैैं। 
झारखण्ड में मुलसमानों की आबादी लगभग 15 प्रतिशत है। बंगाल से लगने वाले जिले साहेबगंज, राजमहल और पाकुड़ में तो इनकी आबादी का प्रतिशत 35-40 तक चला जाता है। ज़ाहिर है ओवैसी इन्हीं इलाकों को खास तौर से टारगेट करेंगे। इन जिलों की 11 सीटों में सबसे ज्यादा सीटीें जेएमएम के पास है। अगर औवेसी ने यहां कि सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए तो ये सारी सीटें बीजेपी की झोली में बड़े आराम से चली जाएंगी। इन सीटों पर जेएमएम और बीजेपी की सीधी टक्कर होती रही है। मुसलमानों के समर्थन से जेएमएम  को हमेशा बढ़त मिलती  रही है। 2019 की लोक सभा की आंधी में भी जेएमएम राजमहल सीट बचाने में कामयाब रही थी। ऐसे में मजलिस के यहां से चुनाव में कूदने से सबसे बड़ा नुकसान जेएमएम को होने वाला है। 

असदउददीन ओवैसी और मजलिस पर सबसे बड़ा आरोप यह लगता रहा है कि यह भाजपा की बी टीम हैं।

तथाकथित सेक्यूलर जमातों की ओर से एमआईएम पर अक्सर यह इलजाम लगता रहा है कि वह भाजपा की बी टीम है और दूसरे प्रदेशों में मजलिस सिर्फ और सिर्फ भाजपा की मदद की लिए जाती है और वहां सेक्यूलर   जमातों को नुकसान सहना पड़ता है। पिछले दिनों महाराष्ट्र चुनाव में ओवैसी ने 44 सीटों पर अपने उम्मीदवार     उतारे थे उनमें 27 सीटें ऐसी हैं जहां पर कांग्रेस और एनसीपी उतने ही मार्जिन से हारीं जितना वोट मजलिस के उम्मीदवार  लाए। हालांकि 8 सीटें ऐसी थी जहां मजलिस ने इन दोनों पार्टियों को तीन नम्बर पर धकेल कर दूसरे नम्बर पर भाजपा से सीधे टक्कर में रही और दो सीटें अपने खाते में लाने में कामयाब रही इतना ही नहीं बिहार के उपचुनाव में किशनगंज सीट पर मजलिस की जीत की धमक को देश भर की तथाकथित सेक्यूलर      पार्टिया महसूस करने लगी हैं।
हालांकि एमआईएम का मानना है कि दूसरी सियासी जमातों की तरह मजलिस भी एक सियासी जमात है और वो किसी को हराने और जिताने नहीं बल्कि सियासत में मुसलमानों के वजूद को जिंदा रखने के लिए बनी है। प्रदेश अध्यक्ष ने इस पर जवाब देते हुए कहा कि उन्हें बी टीम मानने वाले हमेशा से भाजपा की बी टीम है, कांग्रेस को आड़े होथों लेते हुए उन्होंने कहा कि आरएसएस के विरोध का दिखावा करने वाली कांग्रेस दरअसल आज तक आरएसएस की सरपरस्ती करती आई है। 

झारखण्ड में महागठबंधन के साथ जाने से गुरेज नहीं लेकिन उचित हिस्सेदारी मिलना चाहिए 

महागठबंधन में शामिल होने को लेकर हुब्बान मलिक ने बताया कि मजलिस को महागठबंधन के साथ जाने में कोई परहेज नहीं लेकिन गठबंधन करने वाली पार्टीयों में जिस प्रकार भगदड़ मची है, उसे देखकर डर लगता है कहीं इनके विधायक महागठबधन से जीतें और भाजपा के पाले में चले जाएं ऐसे में हमारी विश्वसनीयता भी दांव पर लग जाएगी । हालांकि मजलिस महागठबंधन में शामिल होने के लिए अपनी शतों पर तैयार है, हमें मुसलमानों की आबादी के हिसाब से सीटें मिलनी चाहिए। झारखण्ड में मुसलमानों की आबादी लगभग 15 से 17 प्रतिशत है । हम इसे सड़कों पर छोड़ सकते इस आबादी को मजलिस सियासी ताक़त देने झारखण्ड में आयी है। उनके बीच से भी लीडरशीप पैदा करना हमारा लक्ष्य है। ताकी वो अपने मुददे पर आवाज़ उठा सके। मुसलमान होने के नाते इस आबादी को अबतक झारखण्ड में दरकिनार रखा गया है, युवा रोज़गार की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन को मजबूर हैं, ग़रीबी, भूखमरी के शिकार हैं। कभी गाय तो कभी चोरी के नाम पर भीड़ द्वारा लिचिंग के शिकार यहां के मुसलमानों प्रति तथाकथिटी सेक्यूलर पार्टियां भी मूकदर्शक बनी रही है। मजलिस का मकसद उनके बीच भी लीडरशीप पैदा करना है ताकि वे अपनी आवाज स्वंय उठ सकें।

कांग्रेस के सेकूलरिज़म में धोखा है।

हुब्बान मलिक ने बताया कि भारत में न तो कोई पार्टी  सेक्यूलर है और न सामप्रदायिक है ये सारा कांग्रेस के दिमाग़ की उपज है आजादी के बाद से भारत के नागरिकों को बांटकर रखने के लिए कांग्रेस ने इस प्रकार नारा दिया था। खुद कांग्रेस के सेकूलरिज्.म में धोखा है। अगर कोई पार्टी अगर सेक्यूलर  है तो वह मजलिस है जो बाबा भीम राव अम्बेडकर के आदर्शों को आत्मसात करती है। हमारा यह मुल्क सेक्यूलर  मुल्क है ऐसे में कोई कामन फ्रंट नही हो सका। भारत का हर नागरिक सेक्यूलर ही होता है।
झारखण्ड में एमआईएम की धमक ने एक ओर सेक्यूलर  जमातों में मुस्लिम वोट खिसकने का डर पैदा कर दिया है, वहीं दूसरी तरफ भाजपा लगातार 65 पार का नारा देती नज़र आ रही हैं। माना जा रहा है कि झारखण्ड विधान सभा चुनाव में मजलिस अगर बेहतर प्रदर्शन करती है तो इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलने वाला है। ज़़ाहिर है इस बात को लेकर  सेक्यूलर फ्रंट में बेचैनी स्वभाविक है।

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