ममता का प्लास्टर और बंगाल चुनाव

ऋतुपर्ण दवे देश में कोरोना के बाद यदि किसी दूसरी चीज की चर्चा है तो वह है पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव। बुधवार शाम ममता के चोटिल होने के बाद प्रदेश की राजनीति में एकाएक जो मोड़ आया, वह बेहद दिलचस्प और चुनाव को प्रभावित करने वाला भी हो सकता है। ममता बनर्जी जिस तरह चोटिल हुई वह चर्चा का विषय हो सकता है लेकिन उनके स्वास्थ्य सुधार की कामना किए बिना सीधे नाटक, नौटंकी करने जैसे बयान देकर विपक्षी पार्टियों ने खुद के लिए कितना अच्छा, कितना बुरा किया यह वक्त बताएगा।ऐसे तमाम सवाल हैं जिनका जवाब सिवाय ममता के और किसी के पास नहीं हो सकता। नन्दी ग्राम में जिस जगह उनकी गाड़ी का दरवाजा बन्द हुआ वहाँ दो छोटे लोहे के खंभे सड़क पर गड़े हुए हैं ताकि बड़े वाहन न निकल सकें। कहा जा रहा है कि बैठते वक्त इन्हीं में से एक खंभे से गाड़ी का दरवाजा टकराकर तेजी से घूमा और बाहर की तरफ रहे ममता के पैर से टकरा गया। जाहिर है चोट लगनी थी, लगी भी और वह गिरीं और घायल हो गईं। लेकिन यह सब अपने-अपने दावे हैं। सवाल यहाँ उठता है कि ममता बनर्जी को जेड प्लस सिक्यूरिटी मिली हुई है ऐसे में उनका दरवाजा खोलना, उन्हें उतरते और चढ़ते वक्त सुरक्षा देना व हिफाजत के लिए पूरा स्टाफ होने के बावजूद ऐसा कैसे हुआ? सड़क में गड़े खंभे न दिखें, यह भी बड़ा सवाल है।यह भी सही है कि ममता बनर्जी के पास खुद ही प्रदेश के गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी है, ऐसे में उन्हीं की सुरक्षा में चूक थोड़ी पचने जैसे बात नहीं लगती। लेकिन यह भी सही है कि सन 2018 की ही एक रिपोर्ट बताती है उनकी जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा के चौथे चरण यानी डी जोन को मजबूत कर उसमें उनकी पर्सनल सिक्योरिटी के लिए 150 पुलिसवाले तैनात किए गए थे। ऐसे में हमला कैसे हुआ? इधर घटना के बाद देर रात ममता बनर्जी की मेडिकल की प्राथमिक रिपोर्ट भी आ गई जिसमें इस बात की तस्दीक है कि उन्हें चोट तो कई जगह आई है। जिसमें उनके बाएं टखने और पैर की हड्डियों में गंभीर चोटें हैं जबकि दाहिने कंधे, गर्दन और कलाई में भी चोटें है। उनके बाएँ पैर में प्लास्टर भी चढ़ाया गया है और वे 48 घण्टे चिकित्सकों की गहन निगरानी में रहेंगी।राजनीति में सहानुभूति का खासा दबदबा रहता है। कम से कम भारत में तो सहानुभूति ने कई बार कई-कई समीकरणों को बदला है। देश में अनेकों उदाहरण हैं जब सहानुभूति की लहर चलती है तो बड़े-बड़े दावे हवा हो जाते हैं। ऐसे में यह ताजा घटनाक्रम आगे क्या मोड़ लेगा, यह जानना दिलचस्प होगा। हालांकि राजनीतिक पण्डितों के गुणा-भाग में कलतक ममता बनर्जी और नन्दीग्राम का बीता बुधवार विषय जरूर नहीं रहा है, लेकिन अब यह भी जुड़ जाएगा और इसपर विश्लेषणों की भरमार होगी। यह नहीं भूलना चाहिए कि आज की राजनीति में हर पल शह-मात का खेल और विरोधियों की हर चाल को नाकाम करने की कोशिशें होती हैं। क्या पता कोई तस्वीर या वीडियो भी सामने आ जाए और दूध का दूध पानी का पानी हो जाए! शायद यही राजनीति है जहाँ किसी अवसर को खोया नहीं जाता है फिर भले ही वह कैसा भी हो। फिलहाल कांग्रेस से अलग होकर तृणमूल कांग्रेस की स्थापना कर 10 वर्षों तक बंगाल जैसे राज्य की मुख्यमंत्री रहने वाली ममता बनर्जी पर माँ, माटी और मानुष की कितनी कृपा होगी यह 2 मई को ही पता चलेगा।

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