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ऑनलाइन मनाया गया जगद्गुरु परमहंस योगानन्दजी का जन्मोत्सव

रांची : लाखों पाठकों को अपनी आध्यात्मिक पुस्तक, “योगी कथामृत” द्वारा ध्यान-योग मार्ग और उसके अभ्यास से परिचित कराने वाले योगानन्दजी का जन्म 1893 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में हुआ था। उनके जन्म के बाद के सौ वर्षों के दौरान, इस पूजनीय जगद्गुरु को पश्चिम में भारत के प्राचीन ज्ञान के सबसे महान्‌ प्रचारक के रूप में पहचाना जा रहा है। उनका जीवन और शिक्षाएँ सभी जातियों, संस्कृतियों और पंथों के लोगों के लिए प्रकाश और प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं।

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योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया (वाईएसएस) संन्यासियों द्वारा हिंदी और अंग्रेज़ी में संचालित ऑनलाइन आध्यात्मिक कार्यक्रमों द्वारा 5 जनवरी, 2022 को योगानन्दजी के 129वें जन्मोत्सव मनाया गया जिसमें पाँच हज़ार से अधिक लोग शामिल हुए। वाईएसएस महासचिव स्वामी ईश्वरानन्द गिरी ने इस पावन अवसर पर कहा : “योगानन्दजी जैसे अवतार के जन्मोत्सव पर सर्वोत्तम उपहार जो हम उन्हें दे सकते हैं, वह है — ध्यान के लिए अधिकाधिक समय देने का संकल्प करना, ईश्वर के लिए और गहन प्रेम विकसित करना और अपने आदर्श जीवन के उदाहरण द्वारा दुनियाभर में प्रेम एवं आनन्द का संदेश फैलाना।”

सत्संग में स्वामी ईश्वरानन्दजी ने पश्चिम में योग के जनक के रूप में प्रतिष्ठित योगानन्दजी का सबसे महत्वपूर्ण योगदान साझा किया : “आध्यात्मिक पुस्तकों को पढ़ने की जगह उन्होंने ध्यान के लिए समय देने के सर्वोपरि महत्व पर ज़ोर दिया। वह कहा करते थे : ‘यदि आप एक घण्टा पढ़ते हैं, तो आपको दो घण्टे लिखना चाहिए, तीन घण्टे सोचना चाहिए और इससे भी अधिक समय तक ध्यान करना चाहिए।’ इसके द्वारा, वह इंगित कर रहे थे कि वास्तव में ईश्वर और आध्यात्मिकता के बारे में पढ़ने की अपेक्षा ध्यान करना महत्वपूर्ण है।”

वाईएसएस के उपाध्यक्ष स्वामी स्मरणानन्द गिरी ने लाइवस्ट्रीम किए गए एक अन्य ऑनलाइन सत्संग में करीब पच्चीस सौ से अधिक लोगों को संबोधित करते हुए कहा, “परमहंस योगानन्दजी लाखों लोगों के लिए सद्गुरु के रूप में उनके आध्यात्मिक मार्गदर्शक हैं, और साथ ही वे एक जगद्गुरु भी हैं — जिनका योगदान किसी देश या धर्म तक ही सीमित नहीं, बल्कि वे पूरे विश्व के उद्धार के लिए आए।”

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द डिवाइन लाइफ सोसाइटी – ऋषिकेश के स्वामी शिवानन्दजी ने लिखा था : “एक दुर्लभ रत्न जिसका मूल्यांकन सम्भव नहीं, उसके जैसा दुनिया को देखना अभी बाकी है, परमपूजनीय श्री परमहंस योगानन्द भारत के गौरव, प्राचीन साधु-सन्तों के आदर्श प्रतिनिधि रहे हैं।…श्री योगानन्द ने वेदों और उपनिषदों जैसे, शाश्वत स्रोतों से बहते प्रचुर अमृत को ईश्वर के सभी बच्चों के लिए चखना सम्भव बनाया है।”

परमहंस योगानन्दजी ने अपने सार्वजनिक व्याख्यान, लेखन और उनके द्वारा स्थापित आध्यात्मिक संगठनों के माध्यम से भारत के वैदिक दर्शन की कहीं अधिक जागरूकता और प्रशंसा में योगदान दिया। योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप (वाईएसएस/एसआरएफ़), जिसमें दुनियाभर के 800 आश्रम, केंद्र और मंडलियाँ शामिल हैं।

अधिक जानकारी: yssi.org/Hindi

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