सीपीए दुनिया का सबसे पुराना संगठन : प्रणब मुखर्जी

-पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी ने किया सीपीए के एक दिवसीय सेमिनार का उद्घाटन

जयपुर। राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (राजस्थान शाखा) और लोकनीति सीएसडीएस के संयुक्त तत्वावधान में विधायकों के लिए गुरुवार को विधानसभा में आयोजित एक दिवसीय सेमिनार का पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उद्घाटन किया। पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा कि राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) दुनिया का सबसे पुराना संगठन है। भारत के इसमें शामिल होने पर लम्बी बहस हुई थी। पूर्व प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरू ने ब्रिटिश कॉमनवेल्थ में शामिल होने पर आपत्ति जताई थी। उन्हें आपत्ति थी कि यह ब्रिटिश कॉमनवेल्थ नहीं कॉमनवेल्थ ऑफ नेशन्स होना चाहिए। पं. नेहरू ने ब्रिटिश सरकार से कहा था कि हम कॉमनवेल्थ के सदस्य नहीं बन सकते, क्योंकि हमारे देश में गणतंत्र है, यहां राजशाही नहीं है। सीपीए में अन्य सदस्य राष्ट्रों को भी समान रूप से अध्यक्ष चुने जाने का अधिकार होना चाहिए। उस समय केवल ब्रिटिश ताज ही ब्रिटिश कॉमनवेल्थ में चेयरपर्सन हो सकता था। ऐसे में उन्होंने ब्रिटिश कॉमनवेल्थ में शामिल होने से इनकार कर दिया था। आखिरकार ब्रिटिश हुक्मरानों को नेहरू की शर्तें माननी पड़ीं। आज कोई भी देश इसका अध्यक्ष बन सकता है।उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जिक्र करते हुए कहा कि इंदिरा ने लोकतंत्र की स्वस्थ परंपरा को स्थापित किया था। तत्कालीन समय में राजा-रजवाड़े टैक्स और अन्य करों से मुक्त थे। इंदिरा गांधी के सत्ता संभालने के बाद निर्देश देकर इस तरह के प्रिविलेज को खत्म किया। उनका मानना था कि किसी एक को विशेष आधार पर लाभ देना गलत था। इस अवसर पर सीपीए राजस्थान शाखा के प्रेसीडेंट एवं विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी, सीपीए राजस्थान शाखा के वाइस प्रेसीडेंट एवं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, सीपीए राजस्थान शाखा के वाइस प्रेसीडेंट एवं नेता प्रतिपक्ष गुलाब चन्द कटारिया एवं सीपीए राजस्थान शाखा के सचिव विधायक संयम लोढ़ा मौजूद रहे। मुख्यमंत्री गहलोत ने कहा कि राष्ट्रमंडल संसदीय संघ सेमिनार प्रदेश में पहली बार हो रही है। यह हम सबके लिए अच्छी बात है। यह मंच बेहद महत्वपूर्ण है और ऐसे फोरम एक्टिव होंगे तो राजनीति के बारे में समझ बढ़ेगी। आम जनता के बीच भी अच्छा मैसेज जाएगा। उन्होंने कहा कि प्रणब दा का स्नेह और आशीर्वाद हमेशा रहा है। प्रणब दा जहां भी जिस पद पर रहे, अमिट छाप छोड़ी है और आज प्रणब दा से सीखने का अवसर हमारे बीच आया है। 

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