जीवन की शुद्धि का पर्व है पर्यूषण

-ललित गर्ग- पर्यूषण महापर्व आध्यात्मिक पर्व है, इसका जो केन्द्रीय तत्व है, वह है-आत्मा। आत्मा के निरामय, ज्योतिर्मय स्वरूप को प्रकट करने में पर्युषण महापर्व अहं भूमिका निभाता रहता है। अध्यात्म यानि आत्मा की सन्निकटता। यह पर्व मानव को मानव से जोडने व मानव हृदय को संशोधित करने का पर्व है। यह मन की खिड़कियों, रोशनदानों व दरवाजों को खोलने का पर्व है। पर्यूषण पर्व जैन एकता का प्रतीक पर्व है। जैन लोग इसे सर्वाधिक महत्व देते हैं। संपूर्ण जैन समाज इस पर्व के अवसर पर जागृत एवं साधनारत हो…

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मृत्यु का भय बचाता है अपकर्मों से

महाभारत का एक उपाख्यान है। जब पाण्डव वनवास काल में जंगलों में भटक रहे थे, एक यक्ष ने युधिष्ठिरजी से कुछ प्रश्न किये थे। उन प्रश्नों में एक प्रश्न था- आश्चर्य क्या है? युधिष्ठिरजी ने उत्तर दिया था- हमलोग संसार में प्रतिदिन लोगों को मरते देखते हैं। सभी जानते हैं कि जिनका जन्म होता है, उनकी मृत्यु निश्चित है। एक दिन हमारी भी मृत्यु होगी ही, लेकिन किसी को इसका भय नहीं होता। इस बात का डर नहीं कि हमको मरना है, यही सबसे बड़ा आश्चर्य है। मृत्यु का भय…

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धर्म व सत्य की सदैव रक्षा करते हैं भगवान श्रीकृष्ण

-ललित गर्ग- भगवान श्रीकृष्ण हमारी संस्कृति के एक अद्भुत एवं विलक्षण महानायक हैं। एक ऐसा व्यक्तित्व जिसकी तुलना न किसी अवतार से की जा सकती है और न संसार के किसी महापुरुष से। उनके जीवन की प्रत्येक लीला में, प्रत्येक घटना में एक ऐसा विरोधाभास दीखता है जो साधारणतः समझ में नहीं आता है। यही उनके जीवन चरित की विलक्षणता है और यही उनका विलक्षणः जीवन दर्शन भी है। ज्ञानी-ध्यानी जिन्हें खोजते हुए हार जाते हैं, जो न ब्रह्म में मिलते हैं, न पुराणों में और न वेद की ऋचाओं…

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आध्यात्मिक दीप जलाओ

अपने इस व्याख्यान-अंश में स्वामी विवेकानंद कह रहे हैं कि हमें ग्रंथों की बातों पर आंख मूंद कर विश्वास कर लेने के बजाय अपने आत्मबल पर भरोसा करना चाहिए… बहुत वर्ष पूर्व मैंने एक बड़े महात्मा के दर्शन किए। धार्मिक पुस्तकों पर चर्चा के बाद महात्मा ने मुझे मेज पर से एक किताब उठाने को कहा। उस किताब में यह लिखा था कि उस साल कितनी वर्षा होने वाली थी। महात्मा ने कहा, किताब लो और इसे निचोड़ो। जब तक पानी नहीं गिरता, यह किताब कोरी किताब ही है। उसी…

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गुरु की स्वीकार्यता

हर वक्त संसार को गुरु की द्रष्टि से देखो। तब यह संसार मलिन नहीं बल्कि प्रेम, आनन्द, सहयोगिता, दया आदि गुणों से परिपूर्ण, अधिक उत्सवपूर्ण लगेगा। तुम्हें किसी के साथ संबंध बनाने में भय नहीं होगा क्योंकि तुम्हारे पास आश्रय है। घर के अन्दर से तुम बाहर के वङ्कापात, आंधी, वर्षा व कड़ी धूप देखोगे। भीतर वातानुकूलित व्यवस्था है- शीतल और शान्त। बाहर गर्मी और अशांति है पर तुम परेशान नहीं होते, क्योंकि कुछ भी तुम्हें बेचैन और विचलित नहीं कर सकता। कोई तुम्हारी पूर्णता नहीं छीन सकता। यही है…

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जन्म के बाद राम नाम निकला था तुलसीदास के मुख से

-मृत्युंजय दीक्षित- हिंदी साहित्य के महान कवि व रामचरित मानस जैसी अनुपम -ति की रचना करने वाले संत तुलसीदास का जन्म संवत् 1556 की श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन अभुक्तमूल नक्षत्र में हुआ था। इनके पिता का नाम आत्मा राम दुबे व माता का नाम हुलसी था। जन्म के समय तुलसीदास जी रोये नहीं थे अपितु उनके मुंह से राम शब्द निकला था तथा उनके मुख में 32 दांत मौजूद थे। ऐसे अद्भुत बालक को देखकर माता−पिता बहुत चिंतित हो गए, माता हुलसी अपने बालक को अनिष्ट की आशंका से…

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स्वतंत्र मूल्यों के पक्षधर थे श्रीकृष्ण

(जन्माष्टमी पर विशेष)  प्रमोद भार्गव प्राचीन संस्कृत साहित्य की मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण दस अवतारों में से एकमात्र सोलह कलाओं से निपुण पूर्णावतार थे। कृष्ण को लोक मन्यताएं प्रेम और मोह का अभिप्रेरक मानती हैं। इसीलिए मान्यता है कि कृष्ण के सम्मोहन में बंधी हुई गोपियां अपनी सुध-बुध और मर्यादाएं भूल जाया करती थीं। कृष्ण गोपियों को ही नहीं समूचे जनमानस को अपने अधीन कर लेने की अद्भुत व अकल्पनीय नेतृत्व क्षमता रखते थे। उन्होंने जड़ता के उन सब वर्तमान मूल्यों और परंपराओं पर कुठाराघात किया, जो स्वतंत्रता को…

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प्रसन्नता लाता है ध्यान

-श्री श्री रविशंकर- योग की ही अवस्था है ध्यान, जो हमें बहुत से लाभ देता है। पहला लाभ, शांति और प्रसन्नता लाता है। दूसरा, यह सर्वस्व प्रेम का भाव लाता है। तीसरा, सृजनशक्ति और अंतरदृष्टि जगाता है। बच्चे हर किसी को आकर्षित करते हैं, क्योंकि उनमें एक विशेष शुद्धता होती है, उत्साह होता है। बड़े होकर हम उस ऊर्जा से, उस उत्साह से अलग हो जाते हैं, जिसके साथ हम जन्मे थे। कई बार हमें बिना कारण कुछ लोगों के प्रति घृणा होती है, तो कई बार बिना किसी स्पष्ट…

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मानव जीवन में संयम अनिवार्य

मनुष्य दोहरी प्रकृति का प्राणी है। एक पशु प्रवृत्ति है जो अपनी सहज प्रवृत्तियां, आवेगों इच्छाओं एवं स्वचालित प्रेरणाओं के अनुसार जीवन-यापन करती है, दूसरी एक अति जागरूक बौध्दिक नैतिक, सौन्दर्यात्मक, विवेकपूर्ण और गतिशील प्रकृति है। एक ओर ऐसा चिंतन-मनन है जो निम्न प्रकृति का परिशोधन चाहता है तो दूसरी ओर ऐसा संकल्प है जो देवत्व को जीवन में उतारने के लिए हुलसाता है। अच्छे-बुरे चिंतन और कर्म का परिणाम पाना अपने पर निर्भर करता है। व्यक्ति अनुपयुक्त विचारों को छोड़कर तथा विवेक और संयमशीलता को अपनाकर अपनी गतिविधियों में…

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