-कुमुद भटनागर- जीवनलाल ने अपने दोस्त गिरीश और उस की पत्नी दीपा को उन की बेटी कंचन के लिए उपयुक्त वर तलाशने में मदद करने हेतु अपने सहायक पंकज से मिलवाया. दोनों को सुदर्शन और विनम्र पंकज अच्छा लगा. वह रेलवे वर्कशौप में सहायक इंजीनियर था. परिवार में सिवा मां के और कोई न था जो एक जानेमाने ट्यूटोरियल कालेज में पढ़ाती थीं. राजनीतिशास्त्र की प्रवक्ता कंचन की शादी के लिए पहली शर्त यही थी कि उसे नौकरी छोड़ने के लिए नहीं कहा जाएगा. स्वयं नौकरी करती सास को बहू…
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मिर्च-मसाले (कहानी)
-रीता कुमारी- हर रिश्ते में कुछ खट्टा तो कुछ मीठा होता है, मगर सास-बहू के रिश्ते की बात ही अलग है। यहां तो खट्टे-मीठे के अलावा मिर्च-मसाला भी खूब होता है। जिस तरह सेहत के लिए हर स्वाद जरूरी है, उसी तरह रिश्ते के इस कडवे-तीखे स्वाद के बिना भी जिंदगी बेमजा है। यूनिवर्सिटी के काम से एकाएक मुझे मुजफ्फरपुर जाना पडा। मैं काम खत्म करके सीधे अपने बचपन की सहेली निधि के घर जा पहुंची, जो वहीं अपने पति, बच्चों और सास के साथ रहती थी। बरसों बाद मुझे…
Read Moreमरने से पहले (कहानी)
-भीष्म साहनी- मरने से एक दिन पहले तक उसे अपनी मौत का कोई पूर्वाभास नहीं था। हाँ, थोड़ी खीझ और थकान थी, पर फिर भी वह अपनी जमीन के टुकड़े को लेकर तरह-तरह की योजनाएँ बना रहा था, बल्कि उसे इस बात का संतोष भी था कि उसने अपनी मुश्किल का हल ढूँढ़ निकाला है और अब वह आराम से बैठकर अपनी योजनाएँ बना सकता है। वास्तव में वह पिछले ही दिन, शाम को, एक बड़ी चतुराई का काम कर आया था – अपने दिल की ललक, अपने जैसे ही…
Read Moreव्यंग्य : बिकने का मौसम
-यशवंत कोठारी- इधर समाज में तेजी से ऐसे लोग बढ़ रहे हैं जो बिकने को तैयार खड़े हैं बाज़ार ऐसे लोगों से भरा पड़ा हैं, बाबूजी आओ हमें खरीदो. कोई फुट पाथ पर बिकने को खड़ा है, कोई थडी पर, कोई दुकान पर कोई, कोई शोरूम पर, तो कोई मल्टीप्लेक्स पर सज-धज कर खड़ा है. आओ सर हर किस्म का मॉल है. सरकार, व्यवस्था के खरीदारों का स्वागत है. बुद्धिजीवी शुरू में अपनी रेट ऊँची रखता है, मगर मोल भाव में सस्ते में बिक जाता है. आम आदमी, गरीब मामूली…
Read Moreसब का दाता है भगवान (कहानी)
-राजेश माहेश्वरी- जबलपुर शहर में एक धनाढ्य व्यापारी पोपटमल रहता था। वह कर्म प्रधान व्यक्तित्व का धनी था और गरीबों को दान धर्म, जरूरतमंदों को आर्थिक सहयोग, बच्चों को शिक्षा प्रदान करने हेतु उनकी फीस, किताबें इत्यादि के लिए आर्थिक मदद देता रहता था। उसके घर पर प्रतिदिन दोपहर के समय दो भिखारी भीख माँगने आते थे। जिन्हें उसके द्वारा प्रतिदिन भोजन प्रदान किया जाता था। उसमें से एक भिखारी भगवान के प्रति आभार व्यक्त करता और दूसरा भिखारी उस व्यापारी का गुणगान करता हुआ चला जाता था। पोपटमल को…
Read Moreव्यंग्य : अलग-अलग सफाई आंदोलन
-गोपाल चतुर्वेदी- सफाई बहुत जरूरी है, यह बात अब जनता समझ चुकी है। चाहे कोई आम आदमी हो या खास, सभी आजकल सफाई को पूरी अहमियत देने लगे हैं। वैसे सफाई के प्रकार कई हैं और कुछ का तो आज के समाज में व्यापक प्रसार भी हो चुका है। कैसे, जानने के लिए पढें आगे। कूडा-करकट को पीछे छोडकर देश स्वच्छता के एक नए युग में प्रवेश कर रहा है। उपेक्षित झाडू के दिन फिरे हैं। समाज का हर श्रेष्ठ व्यक्ति उसे हाथ में लेकर सफाई करे या न करे,…
Read Moreकुंडली मिलान (कहानी)
-रोमेश जोशी- ज्योतिषी पंडित सुदर्शन भट घर पर ही थे और कोई दूसरा ग्राहक भी नहीं था, यह देख मालिनी ने राहत की सांस ली। ग्राहकों के बैठने के लिए बिछी गद्दीे की ओर इशारा करते हुए नौकर ने कहा, बैठो, पंडित जी पांच मिनट में आउत हैं। भट जी फुरसत में मिलें ऐसा बहुत कम होता है। अकसर तो पांच-दस ग्राहकों के निपटने की प्रतीक्षा करते इतनी ऊर्जा चुक जाती है कि अपना क्रम आने पर ठीक से बातचीत भी नहीं कर पाते। मालिनी को याद आया, शादी के…
Read Moreव्यंग्य : मुफ्त तीर्थ यात्रा के नुस्खे
-वीरेन्द्र सरल- पता नहीं क्यों मुझ पर अभी तक आधुनिकता का रंग नहीं चढ़ पाया है। दिमाग में प्राचीनता का ऐसा नशा छाया है कि सूर्योदय से पूर्व ही बिस्तर छोड़ देने का आदी हूं। फिर बोरियत से बचने के लिए मैंने प्रातःकालीन भ्रमण की बड़ी बुरी आदत भी पाल ली है। भ्रमण के समय बस एक अदद विदेशी नस्ल के कुत्ते की कमी बहुत खलती है। साहब और मेम साहबनुमा लोग जब अपने-अपने कुत्तों के साथ सड़क पर निकलते हैं तो वातावरण एकदम कुत्तामय हो जाता है। लगता है…
Read Moreकहानी: मंगलसूत्र
-रामनारायण मिश्र- चिलचिलाती गर्मी के सन्नाटे ने एक रहस्यमयी उदासी की मानिन्द पूरे वातावरण को घेर रखा था. विचित्र सी उखड़ी-उखड़ी तनहाई… आसमान में बादलों के छोटे-छोटे टुकड़े… हवा न चलने के तारण कहीं-कहीं स्थिर से चुपचाप पड़े थे. सूरज अत्यंत तेजी से चमक रहा था, ऐसा लग रहा था मानों आकाश मार्ग का यह जलता अग्नियात्री अत्यंत उग्र हो उठा हो. इस भयानक दहकते मौसम की गर्मी से दीपक के शरीर का प्रत्येक अंग झुलस-सा रहा था. उसे यह अहसास हो रहा था… इस झुलसती गर्मी से न सही,…
Read Moreवक्त तो बाबाओं का भी आता है प्राइम टाइम पर
वक्त तो बाबाओं का भी आता है प्राइम टाइम पर। यूं उनके फलने-फूलने के तो सब दिन होते हैं। कहा भी है कि हर दिन दिवाली संत की। लेकिन दिवाली पर भी सबका पत्ता कहां लगता है, ज्यादातर का तो दीवाला ही निकलता है। पर संत को इम्युनिटी हासिल होती है। इसीलिए तो वे दिन-दूनी और रात चैगुनी तरक्की करते हैं। उनकी रफ्तार से बस मुल्क ही तरक्की नहीं कर पाता। वरना तो हमारी विकास दर डबल डिजीट में तो क्या ट्रिपल डिजीट तक भी पहुंच सकती थी। पर मुल्क…
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