पुस्तक समीक्षा – गीत तेरे नाम

वीरेन्द्र सरल

किसी विद्वान ने कहा है कि चरित्रवान नागरिक ही देश की सच्ची दौलत है। चरित्रवान नागरिक तैयार करने की जिम्मेदारी शिक्षा पर है तथा शिक्षा की जिम्मेदारी शिक्षकों के कंधे पर है। यहां शिक्षा का आशय केवल किताबी ज्ञान से नहीं बल्कि जीवन शिक्षा से है और शिक्षक का तात्पर्य केवल वेतनभोगी कर्मचारी से नहीं बल्कि अपने चरित्र और आचरण से लोक शिक्षण करने वाले लोक शिक्षकों से है। ऐसे ही लोक शिक्षकों में से एक थे स्व श्री गजानंद प्रसाद देवांगन दिशाबोध। जिन्होंने जीवन पर्यन्त शिक्षा, साहित्य, आघ्यात्म और योग के माध्यम से समाज के सर्वांगीण विकास के लिए जी जान से जुटे रहे। भाव, भूषा और भाषा की साधना करने वाले श्री दिशा बोध जी की नई कृति अभी-अभी वैभव प्रकाशन रायपुर से गीत तेरे नाम के रूप में प्रकाशित हुई है। संग्रह के मुखपृष्ठ पर अपने श्रमसीकर से धरती को सींचकर उसे उर्वरा बनाने वाले श्रमवीर कृषक और सरहद पर मुस्तैदी से खड़े होकर अपने लहू के हर बूंद को राष्ट्र को समर्पित करके देश की रक्षा के लिए सजग जवान का आकर्षक चित्र संग्रह के नाम को सार्थकता प्रदान करता है। 167 पृष्ठ के इस काव्य संग्रह में दिशाबोध जी की 96 कविताओं का समावेश है जो जीवन के विभिन्न अनुभवों का एक प्रमाणिक दस्तावेज और उनके विचारों का गुलदस्ता है। मां वीणापाणि, छत्तीसगढ़ महतारी और भारत माता की वंदना से प्रारंभ होकर श्रमवीरों की श्रमनिष्ठा के सम्मान में रचित कविता गीत तेरे नाम पर यह संग्रह विराम पाता है। अक्षर को ब्रम्ह माना गया है क्योंकि अक्षरों के मेल से ही शब्द बनते है और शब्द ही लिपिबद्ध होकर विचार। शरीर नाशवान है पर सदविचार अजर-अमर है। इसलिए दिशाबोध जी ने अक्षर ब्रम्ह की आराधना करते हुए लिखते है कि-रूप नहीं, रंग नहीं, उसके बिना कुछ नहीं। ज्ञान और भक्ति वही, कर्म की शक्ति वही। अक्षर और ब्रम्ह वही, सच है भ्रम नहीं। ज्ञान ही प्रकाश है अर्थात शिक्षा ही जादू की वह छड़ी है जिससे हम जीवन के विविध समस्याओं का चुटकी बजाते हुए समाधान पा सकते है। दिशाबोध जी एक शिक्षक थे और शिक्षा के महत्त्व को भलिभांति समझते थे। इसलिए इस संग्रह में पढिये और पढ़ाइये, जय अक्षर, जय अक्षर की अलख, मैं अक्षर हूं, ज्ञानदीप जलायेंगे, साक्षरता की जब से, अक्षर ब्रम्ह इत्यादि कविताओं के माध्यम से शिक्षा की महत्ता प्रतिपादित की है। जहां मैं जय स्तंभ बोल रहा हूं कविता में शहीद वीर नारायण सिंह के बलिदान की गौरव गाथा गाई है वहीं अप्पदीपो भव में स्वयं को समर्थवान बनाने का संदेश है। राम रहीम दोनों एक और मैं सिर्फ आदमी हूं कविता में साम्प्रदायिक सदभाव और सामाजिक समरसता के चेतना की महक है। वर्तमान में समाज की सबसे ज्वलंत समस्या है कन्या भूण हत्या। लिंगानुपात का यह अन्तर पता नहीं समाज को किस गहरी खाई की ओर ढकेलने जा रहा है। दूसरी गंभीर समस्या है महिला साक्षरता प्रतिशत की कमी, इस समस्या पर कवि की सजग दृष्टि है तभी तो कवि ने संग्रह के बेटी, नारी शक्ति, मैं किसान की बेटी, सोमरी का अंगूठा कविताओं के माध्यम से बेटियों के महत्व को रेखांकित करते हुए बालिका शिक्षा और बेटियों के संरक्षण का संदेश दिया है। मेरा गांव, मेरे सपनों का गांव, मैंने पतझड़ देखा है कविता में ग्राम्य जीवन की झांकी और ग्रमाीणों के व्यथा कथा का चित्रण है। आधुनिकता के फेर और नशे के शिकार होकर बरबाद होते यौवन को देखकर कवि का संवेदनशील मन बारूद पर खड़ा आदमी, होली का हुड़दंग, अनंत त्रासदियों की बरसात जैसी रचना लिखने के लिए मजबूर हो जाता है। फिर भी विश्वास कविता के माध्यम से कवि आश्वस्त है कि रोशनी की बारात आयेगी, जवानी पसीने का मोल समझेगी, श्रम के प्रेरक गीत गाकर पसीना बहायेगी, बातें नहीं काम करेगी तभी तो कवि जानदार पीढ़ी को युग का आव्हान बताते हुए तरूणाई का स्वागत करता है। इस संग्रह को पूरी गभींरता के साथ पढ़ने के बाद स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि इसमें कवि के कल्पना के इन्द्रधनुषी रंगो के आकर्षण के साथ-ही-साथ जीवन के ठोस धरातल पर प्राप्त अनुभवों का निचोड़ समाहित है। जो समाज को दिशाबोध कराता रहेगा। मुझे उम्मीद है कि साहित्य और विद्वत समाज में इस कृति का समुचित सम्मान होगा। प्रबुद्ध पाठक इसमें समाहित जीवन संदेश को आत्मसात करेंगे। आकर्षक मुखपृष्ठ के साथ उत्तम छपाई के लिए वैभव प्रकाशन और श्रद्धेय डॉ सुधीर शर्मा जी को भी मेरी हार्दिक बधाई।

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