बालकथा: गिर कर उठना

-स्व. घनश्याम रंजन-

बाल दिवस के अवसर पर चिड़ियाघर में बच्चों की कई प्रतियोगिताएं आयोजित की गई थीं। हर उम्र के बच्चे आए थे। करन भी अपने परिवार के साथ चिड़ियाघर गया था। प्रतियोगिता कैसे आयोजित होगी इस बारे में माइक से बताया जा रहा था।

पहले दौड़, फिर म्यूजिकल चेयर, फिर निबंध तब फिर कला प्रतियोगिता होनी थी। करन ने पहले भी कई प्रतियोगिताओं में भाग लिया था और वह जीता भी था।

चिड़ियाघर में दौड़ प्रतियोगिता के लिए बच्चे लाइन लगा रहे थे। करन भी लाइन में खड़ा हो गया। सब बच्चों से कहा गया कि सीटी बजते ही दौड़ना शुरू कर देना, बच्चों।

जैसे ही सीटी बजी सभी बच्चे दौड़े। करन भी दौड़ा। सब बच्चों के साथ वह भी आगे-आगे दौड़ा। वह सबसे आगे निकल गया पर तभी एक बच्चा उससे तेज निकल गया और जीत गया।

इसके बाद म्यूजिकल चेयर शुरू हुआ। करन ने भी भाग लिया। गाना रूकने पर बैठना था। करन बहुत अच्छे से खेला पर वह आखिरी राउंड में हार गया।

फिर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। दो हार से करन निराश हो गया और उसने अपने पिता से कहा- पापा अब घर चलो मुझे भाग नहीं लेना। मैं तो हार ही जाऊंगा।

तब उसके पिता ने करन से कहा- बेटा चींटी कभी हार से निराश नहीं होती है। वह बार-बार गिरती है फिर उठती है। फिर चलती है फिर गिरती है फिर उठती है गिरना और फिर उठना यही तो सफलता प्राप्त करने की निशानी है। जाओ अबकी तुम ही जीतोगे। बस मन लगाकर करना जो भी करना।

पिता के इतने कहते ही करन मुस्कुराकर निबंध प्रतियोगिता में भाग लेने चला गया। और उसने अच्छा निबंध लिखा। उसे प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ। इसी तरह उसने पूरी लगन से कला प्रतियोगिता में भाग लिया और वह भी जीत गया। करन को जीतने का मूल मंत्र प्राप्त हो गया था- जो भी करो लगन से करो और कभी हार न मानो। प्रयास करते रहो कभी न कभी तो सफलता प्राप्त जरूर होगी।

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