आमतौर पर बच्चे के पहले दांत 6 महीने के आस पास निकलते हैं और आगे चलकर 2-3 साल तक बाकि दूध के दांत आते हैं। पर क्या आप जानते हैं कि कुछ बच्चों के जन्म के समय से ही दांत होते है? जी हां, हालांकि यह ज्यादा कॉमन नहीं है। बच्चों में दांत निकलने की प्रक्रिया को टीथिंग कहते हैं। आइए जानते हैं क्या है इसका कारण और इलाज के तरीके।
क्या हैं नेटल टीथ के कारण और लक्षण
नेटल टीथ का कारण बच्चे के विकास में गडबडी के चलते पाया गया है। सोटोस सिंड्रोम को भी इसका एक कारण माना गया है। इन दांतों के कुछ लक्षण इस प्रकार है:
ये दांत ज्यादातर सामान्य दांतों से बहुत ज्यादा छोटे हैं।
-बहुत से मामलों में ये दांत बहुत ज्यादा हिलते हैं और मजबूत नहीं होते हैं।
-इनका रंग पीला या हल्का भूरा होता है।
-कभी कभी मसूड़ों से ये हल्के निकल रहे होते हैं , पर पूरी तरह बाहर नहीं होते हैं।
-बहुत ही कम मामलों में नेटल टीथ पूरी तरह से विकसित और मजबूत होते हैं, जिन्हें ऑपरेशन की मदद से निकालना पड़ता है।
क्यों ज़रूरी है नेटल टीथ को हटाना?
ऐसे तो नेटल टीथ बच्चे की हेल्थ पर कोई गलत असर नहीं डालते हैं पर फिर भी इन्हें हटाना ही सुरक्षित रहता है। इसके कारण हैं:
ब्रेस्टफीडिंग में परेशानी : कई बार बच्चों को नेटल टीथ की वजह से ब्रेस्ट फीड करने में परेशानी होती है। जिससे उन्हें पूरी तरह से पोषण नहीं मिल पता है और बच्चे का विकास प्रभावित हो सकता है।
जीभ पर चोट लगना : कई बार दांत से बच्चे की जीभ पर चोट भी लग सकती है जो बच्चे को परेशान कर सकती है।
बच्चे का दांत निगलना : जैसा कि पहले बताया गया है बच्चे के ये दांत सामान्य दांतों की तरह मजबूत नहीं होते हैं और हिलते रहते है। इसलिए बहुत से मामलों में ऐसा होने की संभावना रहती है कि ये टूट कर बच्चे के गले में फंस सकते है।
दूध पिलाते समय मां को परेशानी : नई मां के लिए भी दूध पिलाते समय ये परेशानी का कारण बन सकते हैं।
अंत में यही माना जाता है कि हालांकि नेटल टीथ का होना सामान्य नहीं है पर फिर भी इसके होने की संभावना तो है। इसलिए इसे अनदेखा ना करीं और डॉक्टर से ज़रूर सम्पर्क करें। और स्थिति के हिसाब से डॉक्टर की दी गयी सलाह को माने ताकि आगे चलकर ये आपके बच्चे के लिए किसी तरह की परेशानी का कारण ना बने।
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