आईबीबीआई से कंपनियों को समय से पहले बंद होने से बचाना संभव हुआ : साहू

नई दिल्ली । भारतीय दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता बोर्ड (आईबीबीआई) के चेयरपर्सन एम एस साहू ने कहा है कि दिवाला कानून की वजह से आज कई कंपनियों को समय से पहले बंद होने से बचाया जाना संभव हो पाया है। साहू ने कहा कि बोर्ड सर्वश्रेष्ठ व्यवहार और नियमनों को जमीनी वास्तविकताओं के अनुरूप सुनिश्चित करने का प्रयास जारी रखेगा। उन्होंने कहा कि दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के क्रियान्वयन के तीन साल से अधिक हो गए हैं। इस संहिता के आने के बाद अंशधारकों के बर्ताव में उल्लेखनीय बदलाव आया है। साहू ने कहा कि जो शुरुआती प्रमाण मिले हैं उनसे यह संकेत मिलता है कि यह संहिता पूर्व के ढांचों की तुलना में अधिक बेहतर नतीजे देने में सफल रही है।

दिवाला पारिस्थितिकी तंत्र में आईबीबीआई एक महत्वपूर्ण संस्थान है। यह संहिता समयबद्ध और बाजार से संबद्ध कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) की व्यवस्था करती है। इस संहिता में कई संशोधन हुए हैं। उच्चतम न्यायालय एस्सार स्टील के मामले में हालिया आदेश से कई पहलुओं को लेकर स्थिति साफ हुई है। विशेष रूप से इस आदेश से समाधान पेशेवरों की भूमिका, निपटान आवेदक और ऋणदाताओं की समिति (सीओसी) की भूमिका स्पष्ट करने में मदद मिली है।

इस संहिता की प्रमुख उपलब्धियों के बारे में पूछे जाने पर साहू ने कहा कि इससे कर्जदार और ऋणदाता के संबंधों को नए सिरे से परिभाषित किया गया है। साथ ही अंशधारकों के बर्ताव में उल्लेखनीय बदलाव लाने में मदद मिली है। साहू ने पीटीआई- भाषा से साक्षात्कार में कहा, ‘‘किसी कंपनी का जीवन भी किसी व्यक्ति की जिंदगी जितना ही मूल्यवान होता है। इस संहिता की वजह से कंपनियों को समय से पहले बंद होने से बचाया गया है। यह दिवाला पारिस्थितिकी तंत्र और अंशधारकों विशेषरूप से ऋणदाताओं का दायित्व बनता है कि जिस भी कंपनी का आर्थिक मूल्य है उसे बचाया जाना चाहिए।’’ कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा राज्यसभा को दी गई जानकारी के अनुसार सितंबर, 2019 के अंत तक संहिता के तहत राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण के समक्ष 10,860 मामले लंबित थे।

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