दिल्ली हाईकोर्ट का राज्य सरकार को वन क्षेत्र से अतिक्रमण हटाने के लिए कार्य योजना बनाने का निर्देश

नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी में बढ़ते वायु प्रदूषण पर सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वो वन क्षेत्र से अतिक्रमण हटाने के लिए एक एक्शन प्लान तैयार कर सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त स्पेशल टास्क फोर्स के सामने पेश करें। टास्क फोर्स दिल्ली में अतिक्रमण के मामले पर नजर रख रही है। मामले की अगली सुनवाई 5 दिसम्बर को होगी। कोर्ट ने कहा कि वर्तमान हालत में पेड़ों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कोर्ट ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया कि वो अतिक्रमण वाले इलाकों की पहचान करे और उसे लेकर टास्क फोर्स को एक्शन प्लान सौंपे। कोर्ट ने दिल्ली के नगर निगमों को निर्देश दिया कि वे ये सुनिश्चित करें कि कंस्ट्रक्शन साइट ढके हों। सुनवाई के दौरान एमिकस क्युरी ने कहा कि निर्माण कार्यों से निकलने वाली धूल पर नियंत्रण पाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पालन करने की जरुरत है। कोर्ट ने नगर निगमों को निर्देश दिया कि वे बेरोजगार हो चुके मजदूरों को धूल हटाने का काम दें। उन मजदूरों से सड़कों के फुटपाथ का धूल हटवाएं। कोर्ट ने कहा कि अगर रोड के बगल में झाड़ियां लगाई जाएंगी तो फुटपाथ के धूल की समस्या से निजात मिल सकती है। कोर्ट ने नगर निगमों को निर्देश दिया कि वे मलबा और धूल की समस्या से निपटने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में दो दिनों में हलफनामा दाखिल करें। सुनवाई के दौरान एमिकस क्युरी कैलाश वासदेव ने कहा कि पौधे लगाना या बीज बोना पेड़ों को काटने का उत्तर नहीं हो सकते हैं। तब वन विभाग ने कहा कि वो हर साल 18 हजार पेड़ लगाती है। कोर्ट ने वन संरक्षक से कहा कि वो ये जानना चाहती है कि किस ऊंचाई के कितने पेड़ लगाए गए। वन विभाग ने कहा कि दिल्ली में एशिया के शहरों से सबसे ज्यादा 21 फीसदी वनक्षेत्र है। 2025 तक ग्रीन एरिया 25 फीसदी तक ले जाने का लक्ष्य है। वो रिज एरिया में ज्यादा पौधे लगाना चाहती है, लेकिन अवैध अतिक्रमण की वजह से ये काम नहीं हो सकता है। वन विभाग ने कहा कि एक बार अतिक्रमण हटा दिया जाए तो वहां कंटीले तार लगवा दिए जाएंगे। सुनवाई के दौरान वासदेव ने कहा कि वनक्षेत्र का वर्गीकरण सही ढंग से नहीं किया गया है। हमें घने जंगलों की जरुरत है। तब कोर्ट ने पूछा कि किस किस्म के जंगल वायु प्रदूषण रोकने में मदद करते हैं। तब वन विभाग ने कहा कि सभी किस्म के जंगल वायु प्रदूषण को रोकने में मदद करते हैं। तब कोर्ट ने कहा कि समस्या को हल करने के लिए आइडिया की कमी है। हमें लक्ष्य तय करना होगा जिसकी मानिटरिंग की जा सकती है। वन विभाग ने कोर्ट को बताया कि पौधों को लगाने की शुरुआत 15 फरवरी से होती है, लेकिन फिलहाल हमारे पास कोई एक्शन प्लान नहीं है। वन विभाग ने कहा कि पौधारोपण की गतिविधियों की मानिटरिंग करने के लिए तीसरे पक्ष की मदद की सलाह दी गई थी। तब कोर्ट ने कहा कि अतिक्रमण हटाने के लिए अभी से लेकर फरवरी तक के समय का सदुपयोग किया जा सकता है। वन विभाग ने कहा कि दक्षिणी रिज से 70 हेक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण हटाने की जरुरत है। तब कोर्ट ने कहा कि वर्तमान स्थिति में अवैध अतिक्रमण से ज्यादा प्राथमिकता पेड़ों को देना होगा। पिछले 14 नवम्बर को कोर्ट बढ़ते वायु प्रदूषण को लेकर स्वतः संज्ञान लिया था। हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार और दूसरी एजेंसियों को फटकार लगाते हुए कहा था कि समस्या ये नहीं की प्रदूषण कम करने को लेकर आइडिया की कमी है। जस्टिस जीएस सिस्तानी की अध्यक्षता वाली बेंच ने वन विभाग को निर्देश दिया था कि अवैध अतिक्रमण से संबंधित सभी फोरमों में चल रहे लंबित मामलों की सूची तैयार करें। कोर्ट ने मुख्य वन संरक्षक को निर्देश दिया था कि वो हलफनामा दायर कर बताएं कि जनवरी 2018 से नवम्बर 2019 के बीच कितने पेड़ लगाए गए। कोर्ट ने हलफनामे में ग्रीन एरिया बढ़ाने और अवैध अतिक्रमण हटाने के लिए भविष्य के एक्शन प्लान का जिक्र करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने सभी नगर निगमों, बोर्डों और कमेटियों को निर्देश दिया था कि वे उन लोगों की जिम्मेदारी तय करें जिनके इलाके में कच्ची सड़कें हैं और खुले में मलबे पड़े हुए हैं। उन व्यक्तियों को ये निर्देश दिया जाए कि वे मलबों पर पानी का छिड़काव कर उनका सही तरीके से निस्तारण करें । कोर्ट ने कहा था कि ये काम रुटीन काम में शामिल होना चाहिए औऱ नगर निगमों के वरिष्ठ अधिकारी कोर्ट के आदेश का पालन कराने के लिए मानिटरिंग करें। कोर्ट ने संबंधित विभाग के सचिवों को निर्देश दिया था कि वे कोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए हलफनामा दाखिल करें। कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा था कि मलबा, बालू और कच्ची सड़कों पर पानी के छिड़काव के लिए क्या कदम उठाए गए। सुनवाई के दौरान कोर्ट की ओर से नियुक्त एमिकस क्युरी कैलाश वासदेव ने बताया कि सिंगापुर में पराली जलाने की समस्या पर काबू पाया। उन्होंने कहा कि सिंगापुर और इंडोनेशिया में खेतों में पानी का छिड़काव होता है और पराली को डंप करने के लिए अलग से खेतों की व्यवस्था होती है। वैसे खेतों के आसपास आबादी नहीं होती है। कोर्ट ने इस बात को नोट करते हुए कहा कि जिन देशों में सीमित भूमि है अगर वहां ये उपाय किया जा सकता है तो भारत में क्यों नहीं। सुनवाई के दौरान कैलाश वासदेव ने कहा था कि वन विभाग ने पेड़ों को लगाने का सालाना लक्ष्य हासिल नहीं किया। बीस सूत्री कार्यक्रम का क्रियान्वयन पर्याप्त तरीके से नहीं हुआ। उन्होंने कहा था कि वन विभाग में फाईलों को भी व्यवस्थित रुप से नहीं रखा जाता है जिसकी वजह से कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में दिक्कत होती है। वासदेव ने कहा था कि निर्माण कार्यों में संतुलन नहीं है। पेड़ों को वैज्ञानिक जरुरत के मुताबिक लगाया जाना चाहिए क्योंकि सभी पेड़ वायु प्रदूषण कम करने में मददगार नहीं होते हैं। उन्होंने कहा था कि सिटी प्लानिंग पर्याप्त नहीं है। अतिक्रमण को हटाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जाता है। उन्होंने कोर्ट को सुझाव दिया था कि अक्टूबर से दिसम्बर के बीच किसी नए भवन का निर्माण या उन्हें गिराने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा था कि दिल्ली में बच्चों की स्वास्थ्य खराब हो रहा है और अगर हालात ऐसे ही रहे तो उनका स्वास्थ्य और खराब होगा।

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