कश्मीर मामले पर तीखा विरोध, ममता ने साधे रखी चुप्पी

कोलकाता। हर छोटे-बड़े मुद्दे पर केंद्र सरकार को चौतरफा घेरने वाली ममता बनर्जी ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के मामले पर अब तक चुप्पी साध रखी है। केंद्र सरकार के इस फैसले का विरोध उनकी पार्टी ने काफी तीखे स्वर में किया है। तृणमूल के राज्यसभा सांसद एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता डेरेक ओ ब्रायन ने साफ कर दिया है कि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का विरोध पार्टी संसद से सड़क तक करेगी।

उन्होंने केंद्र पर हमला बोलते हुए धोखाधड़ी, अफवाह फैलाने, झूठ बोलने और पूरे देश को धोखा में रखने का आरोप लगाया। तृणमूल सांसद सुदीप बनर्जी समेत अन्य नेताओं ने भी इस मामले पर केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया और कहा कि यह जम्मू कश्मीर की अल्पसंख्यक आबादी के साथ छल है लेकिन ममता ने एक शब्द नहीं कहा।
कैफे कॉफी डे के संस्थापक वीजी सिद्धार्थ की मौत पर भी केंद्र सरकार को घेरने का बहाना ढूंढ लेने वाली ममता ने इस मामले पर ना तो सोशल साइट पर एक शब्द लिखा और न ही मीडिया के सामने आकर कुछ कहा। सचिवालय में उन्होंने कई लोगों से मुलाकात की। कई बार प्रेस कॉर्नर में भी आईं लेकिन कुछ नहीं कहा।

इस बारे में मंगलवार को जब तृणमूल के शीर्ष नेतृत्व से बात की गई तो पता चला कि मुख्यमंत्री की इस रणनीति के पीछे प्रशांत किशोर का दिमाग है। दरअसल कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना देशभर की बहुप्रतीक्षित मांग थी। जन भावना भी इसके पक्ष में थी। जब इस अनुच्छेद को हटाने की घोषणा की गई तो पूरे देश में जमकर खुशियां मनाई गई। ऐसे में अगर ममता प्रत्यक्ष तौर पर सामने आकर कुछ कहतीं तो जन भावना के खिलाफ होता और अगर इस मामले पर खामोश रहती है अथवा केंद्र का समर्थन करती तो इससे अल्पसंख्यक आबादी के बीच ममता से दुराव होता। इसलिए सोची-समझी रणनीति के तहत प्रशांत किशोर ने मुख्यमंत्री को चुप रहने का इशारा किया।
उधर सांसदों का इस मामले पर संसद में पक्ष रखना अल्पसंख्यक आबादी को अपने पाले में करने वाला है। हालांकि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के 24 घंटे बाद भी तृणमूल कांग्रेस ने जमीनी तौर पर इसके खिलाफ किसी तरह के किसी आंदोलन की रूपरेखा तैयार नहीं की है, जिससे यह स्पष्ट हो रहा है कि ममता बनर्जी की पार्टी अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक दोनों समुदायों में संतुलन बनाकर चल रही है। लोकसभा चुनाव में जिस तरह से भाजपा ने 42 में से 18 सीटों पर जीत दर्ज कर ली उसके पीछे राष्ट्रवाद से जुड़े मामलों पर ममता बनर्जी की बिना सोची-समझी बयानबाजी बाजी भी एक बड़ी वजह थी। लोग मुख्यमंत्री के खिलाफ होते चले गए थे। अब महज एक साल के बाद विधानसभा का चुनाव होना है तो तृणमूल सुप्रीमो किसी तरह का कोई रिस्क लेना नहीं चाहती। 

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