कोलकाता । वेतन बढ़ोतरी, महंगाई भत्ता समेत अन्य मांगों को लेकर लगातार आंदोलन कर रहे सरकारी कर्मचारियों को नौकरी छोड़कर केंद्र सरकार के पास चले जाने का फरमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओर से सुनाए जाने को लेकर राज्य भर में कर्मचारियों में नाराजगी पनपने लगी है। मुख्यमंत्री के इस बयान की वजह से तृणमूल अनुमोदित सरकारी कर्मचारियों का संगठन फेडरेशन भी मुश्किल में पड़ गया है।
रविवार को शहीद दिवस के मंच से मुख्यमंत्री ने कहा था कि जो लोग केंद्र सरकार के पैमाने के अनुसार अपना वेतन चाहते हैं वे राज्य सरकार की नौकरी छोड़ दें। राज्य सरकार उनकी मांगों को पूरा नहीं कर सकती। मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद सरकारी कर्मचारियों के संगठन की ओर से नाराजगी खुलकर सामने आई है। भारतीय जनता पार्टी अनुमोदित सरकारी कर्मचारी संगठन कर्मचारी परिषद की ओर से देवाशीष सील ने कहा है कि 2016 के एक जनवरी से ही देश के सभी राज्यों में केंद्रीय पैमाने के अनुसार प्राथमिक शिक्षकों समेत अन्य सरकारी कर्मचारियों को वेतन दिया जाता है लेकिन केवल बंगाल में ऐसा नहीं होता। कुछ दिनों पहले ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा में कहा था कि सरकारी कर्मचारियों के सातवें वेतन आयोग और महंगाई भत्ता को लेकर जल्द ही ठोस फैसला लिया जाएगा।
इसके बाद से राज्यभर के कर्मचारी आशा में थे लेकिन रविवार को उन्होंने जिस तरह से दो टूक शब्दों में कह दिया है कि सरकारी कर्मचारियों का वेतन नहीं बढ़ाया जाएगा और दूसरी ओर अपनी पार्टी के पंचायत सदस्यों का वेतन बढ़ा दिया है इससे उनकी मंशा जाहिर हो गई है। इससे राज्य सरकार के कर्मचारी अपमानित हुए हैं। उन्होंने कहा कि नियम है कि केंद्र सरकार जिस पैमाने पर वेतन की बढ़ोतरी करेगी उसी पैमाने पर राज्य सरकार को भी बढ़ोतरी करनी होगी । यह संवैधानिक नियम है। सब कुछ जानने के बावजूद ममता बनर्जी लोगों को भ्रमित करने की कोशिश कर रही हैं।
माकपा कर्मचारी संगठन कोऑर्डिनेशन कमेटी की ओर से विजय शंकर सिंह ने कहा है कि मुख्यमंत्री का बयान निश्चित तौर पर सरकारी कर्मचारियों को निराश करने वाला है। मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद तृणमूल कांग्रेस के सरकारी कर्मचारी संगठन के पदाधिकारी सुबीर साहा ने कहा कि मुख्य मंत्री का बयान निराशाजनक है। विधानसभा में मुख्यमंत्री ने कहा था कि वेतन बढ़ाया जाएगा जिसके बाद हम लोगों ने भी कर्मचारियों को आश्वस्त किया था। अब जिस तरह से उन्होंने कहा है उससे मुश्किल में पड़ गए हैं।
उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव के समय राज्य के सरकारी कर्मचारियों और उनके परिजनों के 70 लाख वोट तृणमूल के खिलाफ पड़े थे। सरकारी कर्मचारियों की ओर से लोकसभा में दिए गए बैलट वोट को जब खोला गया तो 42 में से 39 लोकसभा सीटों में भारतीय जनता पार्टी की जीत हुई थी जिसके बाद माना जा रहा था कि मुख्यमंत्री सरकारी कर्मचारियों के प्रति सकारात्मक निर्णय लेंगी। लेकिन एक बार फिर ममता के रुख ने कर्मचारियों को निराश किया है।
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