झारखंड में अपने ही डुबो रहे कांग्रेस की नैया

रांची। लोकसभा चुनाव में एनडीए से मात खाने के बाद प्रदेश के कांग्रेसी उबाल पर हैं। कांग्रेसियों ने शायद यह तय कर लिया है कि वे पार्टी की लुटिया डुबोकर ही मानेंगे। लोकसभा चुनावों में भाजपा के हाथों करारी हार से सबक लेने की बजाय वे आपस में ही लड़ने-भिड़ने पर आमदा हैं। 

लोकसभा चुनाव में भारी भरकम जीत से भाजपा में जहां उत्साह है और भाजपा नेता विधानसभा चुनाव को लेकर तैयारियों में जुट गए हैं, कांग्रेस नेताओं में इस अपमानजनक हार की समीक्षा की बजाय आपस में जूतम-पैजार की नौबत आ गई है। कांग्रेसी कुनबा आपस में जिस प्रकार उलझ गया है, इससे देश की सबसे पुरानी पार्टी की सियासी जमीन सूबे में लगातार तेजी से सिमटती जा रही है। लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ पार्टी नेताओं का गुस्सा इस कदर फूट पड़ा है कि एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने यहां तक कह दिया कि कभी पुलिस अधिकारी रहे डॉ. अजय ने कांग्रेस का ही एनकाउंटर कर दिया है।

कांग्रेस महागठबंधन के तहत झारखंड की सात लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें किसी भी तरह से सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल कर सकी। राज्य की सिंहभूम लोकसभा सीट ही कांग्रेस पार्टी की झोली में गई है। इस सीट पर अभी हाल ही में कांग्रेस में आईं गीता कोड़ा ने जीत दर्ज की है, जबकि पार्टी के बड़े-बड़े दिग्गज धराशायी हो गए। इनमें सुबोधकांत सहाय, सुखदेव भगत, कीर्ति आजाद, मनोज यादव, गोपाल साहू और कालीचरण मुंडा शामिल हैं।

लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद प्रदेश कांग्रेस में उठा तूफान दिल्ली से रांची पहुंच गया। चुनाव परिणाम के बाद बिखरी निराशा के बीच पार्टी नेता हार पर मंथन करने के बजाय एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने में लगे हैं। जिससे पार्टी को आगामी विधानसभा चुनाव में भी भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस के नेता ताजा हार से सबक लेने के मूड में नहीं है और खेमेबाजी कर अपने गुट के किसी व्यक्ति के हाथों में राज्य की कमान सौंपने की कोशिश में जुट गए हैं। सोची समझी रणनीति के तहत हार का ठीकरा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार पर फोड़ा जा रहा है। हालांकि अपने खिलाफ उठे विरोध के स्वरों को उन्होंने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर विराम लगा दिया है।

रांची महानगर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह ने उन्हें आड़े हाथों लिया। छह सीटों पर हार के लिए उन्होंने सीधे तौर पर डॉ. अजय को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने पुराने कांग्रेस नेताओं को दरकिनार किया। कमेटी का भी गठन नहीं किया। वे अप्रवासी झारखंडी हैं। प्रदेश कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता राकेश सिन्हा ने कहा कि पूर्व आईपीएस अधिकारी डॉ. अजय कुमार एनकाउंटर विशेषज्ञ थे और उन्होंने संगठन का ही एनकाउंटर कर दिया। कांग्रेस नेता ने कहा कि डॉ.अजय का नन पॉलिटिकल फेस के साथ गैर झारखंडी होना, लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार की सबसे बड़ी वजह साबित हुई।

वहीं, प्रदेश कांग्रेस कमिटी के एक पदाधिकारी कहते हैं, लोकसभा चुनाव में इस करारी हार के बाद बदलाव जरूरी है, लेकिन इसका रास्ता ऊपर से नीचे की तरफ होगा। बदलाव होगा लेकिन इसकी शुरुआत कांग्रेस वर्किंग कमेटी से तय हो। पूर्व मंत्री मन्नान मल्लिक ने कहा है कि वरीय, अनुभवी और जनाधार वाले नेताओं को दरकिनार कर अजय कुमार मनमाने तरीके से निर्णय लेते रहे। चहेते लोगों को प्रभारी बनाया, इस कारण कांग्रेस की हार हुई। उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि धनबाद में कांग्रेस उम्मीदवार कीर्ति झा आजाद को चुनाव लड़ाना ही नहीं चाहिए था। उन पर बाहरी उम्मीदवार होने का ठप्पा था। इस कारण भी कांग्रेस धनबाद में टक्कर नहीं दे पाई।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस के हार के कई कारण हैं। पहले तो कांग्रेस ने अपने सहयोगी दलों के साथ गठबंधन में भी देरी की। फिर टिकट बंटवारे में भी पार्टी के पदाधिकारियों के बीच किसी खास उम्मीदवार को लेकर खींचतान चली। टुकड़ों-टुकड़ों में कांग्रेस ने तीन बार सूची जारी कर कुल छह उम्मीदवारों के नाम घोषित किए। अंतिम समय में हजारीबाग उम्मीदवार गोपाल साहू के नाम पर सहमति बनी। कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि प्रदेश अध्यक्ष ने बाहर से आये लोगों को टिकट देकर बंटाधार कर दिया। 

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