रांचीः मुख्य सचिव सुधीर त्रिपाठी ने चाईबासा के खूंटपानी में बंद खदान के डस्ट के पहाड़ (एसबेस्टोस) से आस-पास के गांवों के लोगों को हो रही पर्यवारण संबंधी समस्या का आकलन कराने के लिए एक कमेटी बनाने का निर्देश खान विभाग को दिया है। कमेटी यह सर्वे करेगी कि खूंटपानी में पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देशों को कैसे लागू किया जाए। ट्रिब्यूनल ने खनन के पहले की स्थिति बहाल करने का निर्देश दिया है। मुख्य सचिव ने बंद खदान के डस्ट के पहाड़ को हरा-भरा बनाने के उपाय करने को कहा। साथ ही बंद खदान के श्रमिकों की भविष्य निधि आदि मामलों को लेकर अगली बैठक में केंद्रीय भविष्य निधि और श्रम विभाग के प्रतिनिधि को शामिल करने का भी निर्देश दिया। मुख्य सचिव अपने सभागार में ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देशों को लागू करने को लेकर संबंधित विभागों और मामले से जुड़े लोगों के साथ बैठक कर रहे थे। मुख्य सचिव ने डस्ट के पहाड़ से खेती-बारी और रोरो नदीं के प्रदूषण की रोकथाम के लिए गठित होनेवाली कमेटी को सर्वे के दौरान स्थानीय लोगों का सहयोग लेकर पर्यावरण को सुदृढ़ करने के लिए योजना बनाने का निर्देश दिया। वहीं डस्ट के पहाड़ के क्षरण से एसबेस्टोसिस नामक बीमारी से प्रभावितों की पहचान और इलाज के लिए चाईबासा के उपायुक्त को एक मेडिकल टीम बनाने का निर्देश दिया। उस टीम में एक विशेषज्ञ चिकित्सक को भी रखने को कहा। उसके पहले पूरे मामले को लेकर उपायुक्त को ग्रामीणों संग बैठक कर समस्या की पहचान और निदान का तरीका ढूंढने का निर्देश दिया। बंद खदान के श्रमिकों को भविष्य निधि का पैसा नहीं मिलने की शिकायत पर ऐसे श्रमिकों की सूची बनाने का भी निर्देश दिया। बैठक में वन एवं पर्यावरण विभाग के अपर मुख्य सचिव इन्दु शेखर चतुर्वेदी, खान एवं भूतत्व सचिव अबु बक्कर सिद्दीख पी, चाईबासा के उपायुक्त और मामले से जुड़े पक्ष के लोग शामिल थे।
क्या है पूरा मामला
चाईबासा के खूंटपानी प्रखंड में टिस्को ने 1943 से 1962 तक क्रोमियम का खनन किया। उसके बाद हैदराबाद सीमेंट प्रोडक्ट लिमिटेड नामक कंपनी ने 1963 में एसबेस्टस का खनन शुरू किया। कंपनी ने 1983 में खनन कार्य बंद कर दिया। इस दौरान वहां दोनों कंपनियों के खनन से डस्ट का पहाड़ खड़ा हो गया। शिकायत के अनुसार उस डस्ट के क्षरण से पर्यावरण प्रदूषण की समस्या खड़ी हो गई है। आस-पास के आधा दर्जन गांवों की खेती इससे प्रभावित है। साथ ही चाईबासा की लाइफलाइन रोरो नदी भी डस्ट से प्रदूषित हो रही है। इससे लोग गंभीर बीमारी एसबेस्टोसिस के शिकार हो रहे हैं। मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के संज्ञान में आने के बाद ट्रिब्यूनल ने समस्या के निदान का आदेश दिया है।
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