Ranchi: झारखंड में जल- जंगल और जमीन हमेशा से ही हमारे जीने का जरिया रहा है। लेकिन, सदियों से चली आ रही ये व्यवस्था अन्धाधुन्ध विकास और शहरीकरण की दौड़ में पीछे छूटती जा रही है। आज हरे -भरे पेड़ों से आच्छादित जंगल की जगह कंक्रीट के जंगल ने ले ली है। इसका सीधा असर हमारे पर्यावरण पर पड़ रहा है। प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है। अगर हम अब भी नहीं चेते तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने को तैयार रहना होगा। आज जरूर इस बात की है कि पर्यावरण संरक्षण की खातिर ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने के अभियान का हम हिस्सा बनें और पेड़ों को बचने का संकल्प लें। सभी के सहयोग और भागीदारी से प्राकृतिक व्यवस्था को संरक्षित मानव जीवन को सुरक्षित रख सकते हैं। श्री अरुण कुमार सिंह संयुक्त सचिव ग्रामीण विकास विभाग आज एक पेड़ माँ के नाम अभियान के तहत रांची जिला अंतर्गत बेड़ो प्रखंड में ग्रामीणों को संबोधित करते हुए ये बातें कही।
संयुक्त सचिव श्री अरुण कुमार सिंह ने कहा कि आज जिस तरह से पर्यावरण संरक्षण को चुनौती मिल रही है, वह मनुष्य, जीव- जंतु और पूरी प्राकृतिक व्यवस्था के अस्तित्व पर खतरा बनता जा रहा है। ऐसे में हमें तय करना है कि हम प्रकृति के साथ मिलकर अथवा प्रकृति से छेड़छाड़ कर विकास के रास्ते पर आगे बढ़ें। अगर प्रकृति के साथ चलना है तो हमें अपनी जीवन शैली में बदलाव लाना होगा । पेड़ों से दोस्ती करनी होगी और उन्हें बचाने की जिम्मेदारी निभानी होगी । उन्होंने लोगों से कहा कि वे घर बनाते हैं तो उससे पहले वहां एक पेड़ जरूर लगाएं। अगर हर व्यक्ति पेड़ लगाने और पेड़ बचाने की ठान ले तो निश्चित तौर पर हम पर्यावरण को संरक्षित रख पाएंगे।
संयुक्त सचिव श्री अरुण कुमार सिंह ने कहा कि आज प्राकृतिक असंतुलन और पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ की वजह से बाढ़ और सुखाड़ जैसे कई प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। मौसम चक्र में बदलाव से कृषि प्रभावित हो रही है। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि प्राकृतिक व्यवस्था का कम से कम नुकसान कैसे हो, इस दिशा में हम सभी आगे बढ़े। इसके लिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाएं , ताकि प्राकृतिक व्यवस्था को जो नुकसान हो चुका है, उसकी थोड़ी सी भी भरपाई हो सके ।
संयुक्त सचिव ने कहा कि एक ऐसा भी वक्त था, जब झारखंड जैसे प्रदेश में वन महोत्सव मनाने की कोई जरूरत नहीं थी। पूरा राज्य हरे-भरे पेड़ों से आच्छादित था। चारों तरफ जंगल ही जंगल दिखते थे। लेकिन, विकास की रफ्तार जैसे-जैसे बढ़ती गई, जंगल सिमटते चले गए और इसका सीधा असर पर्यावरण पर पड़ा। यही वजह है कि आज वन महोत्सव मनाने की एक परंपरा की शुरुआत हुई, जो आज भी चली आ रही है । यह समय की भी मांग है कि हम सभी वन महोत्सव का हिस्सा बनें और ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने की मुहिम में अपनी भागीदारी निभाएं।
एक पेड़ मां के नाम महोत्सव में अवर सचिव श्री चंद्रभूषण प्रखंड विकास पदाधिकारी बेडो, उपनिदेशक श्री अनुपम भारती , परियोजना पदाधिकारी श्री ऋतुराज एवं प्रखंड के कई मुखिया,उप मुखिया ग्रामीण उपस्थित थे।
This post has already been read 1203 times!