बाल कहानी : पढ़ाई की भूख

-ज्ञानदेव मुकेश-

चंपक वन के प्राइमरी स्कूल में बच्चे बहुत कम आते थे। वन के राजा शेरसिंह ने जब यह सुना तो उसका माथा ठनका। उसने फौरन अपने सियार मंत्री को स्कूल भेजा और स्कूल की हाजिरी-पंजी मंगवाई। शेर सिंह ने चश्मा चढ़ाकर हाजिरी-पंजी पर सरसरी निगाह घुमाई।

स्कूल में कुल मिलाकर 3 सौ बच्चों ने नाम लिखवा रखे थे। मगर उनमें मुश्किल से 50 से 60 बच्चों की हाजिरी बन रही थी। शेर सिंह सियार मंत्री से पूछा, ‘‘बाकी बच्चे क्यों नहीं आते? क्या उन्हें पढ़ाई से मतलब नहीं है? क्या वे अनपढ़ रहना चाहते हैं?’’

सियार मंत्री ने कहा, ‘‘महाराज, ऐसी बात नहीं है। बच्चों के पिता जानते हैं कि उनके बच्चे पढ़ने-लिखने के बाद भी छोटा-मोटा ही काम करेंगे। इसलिए वे सोचते हैं कि अभी से ही वे काम सिखा दिए जाएं ताकि वे बड़े होते ही अपना काम संभाल लें।’’

शेर सिंह ने पूछा, ‘‘क्या हमारे वन में बड़ा काम नहीं है?’’

सियार मंत्री ने कहा, ‘‘महाराज, बड़े काम तो क्या, जंगल में छोटे काम भी नहीं हैं। सच यह है कि अपने जंगल में बेरोजगारी बहुत बढ़ी हुई है।’’

शेर सिंह ने कहा, ‘‘रोजगार बढ़ाने के उपाय हम बाद में करेंगे। पहले बच्चों को स्कूल तक लाने की योजना बनाओ। बेरोजगार रहना इतना बुरा नहीं है जितना अनपढ़ होना।’’

सियार ने कहा, ‘‘एक उपाय है। पड़ोस के जंगल में बच्चों का लुभाने के लिए मिड डे मील को इंतजाम किया गया है। बच्चे मील खाने के लालच में आते हैं और पढ़ाई भी करते हैं।’’

शेर सिंह ने कहा, ‘‘यह उपाय ठीक है। मगर मैंने मिड डे मील की शिकायत भी सुनी है। सुना है, वहां खाना खाकर बच्चे बीमार पड़ जाते हैं। कभी-कभी उनकी जान भी चली जाती है।’’

सियार मंत्री ने कहा, ‘‘महाराज, ऐसा इसलिए होता है कि वे मिड डे मील में चावल, दाल, रोटी, सब्जियां खिलाते हैं। अक्सर इनके बनाने में गड़बड़ी हो जाती है। अनाज सड़े-गले होते हैं। कभी-कभी इनमें जहरीली चीजों की मिलावट हो जाती है।’’

शेर सिंह ने पूछा, ‘‘फिर क्या करें? क्या हमारे यहां भी ऐसी मिलावट होगी?’’

सियार मंत्री ने कहा, ‘‘हमारे यहां मिलावट न हो, इसकी क्या गारंटी? अच्छा तो यह होगा कि हम अपने बच्चों को मिड डे मील में फल, दूध, बिस्कुट और पावरोटी वगैरह दें। इनमें मिलावट की गुंजाइश कम होगी।‘‘

शेर सिंह को यह बात जंच गई। बस, अगले ही दिन से चंपक वन के स्कूल में मिड डे मील की शुरूआत कर दी गई। इसका अच्छा रिजल्ट देखने को मिला। स्कूल में बच्चों की हाजिरी बढ़ने लगी। धीर-धीरे स्कूल में लगभग 300 बच्चे आने लगे।

इस खबर से शेर सिंह बड़ा खुश हुआ। मगर वह पड़ोस के जंगल की बात नहीं भूला था। इसलिए वह हमेशा स्कूल में चला आता और मिड डे मील की जांच करता। वह खुद मिड डे मील चखता और पूरी तसल्ली करता। स्कूल से कभी भी मिड डे मील की षिकायत नहीं आई।

जंगल में गपलू भालू बड़ा आलसी था। वह कोई भी काम नहीं करता था। वह सभी जानवरों से खाने मांगकर खाया करता था। वह वहीं जाता, जहां उसे कुछ मिलता। जो उसे कुछ नहीं देता उसके पास वह भूलकर भी नहीं जाता। रास्ते में वैसे जानवर मिल जाएं तो वह उन्हें दुआ-सलाम भी नहीं करता था।

शेर सिंह ने उसके बारे में सुना तो वह सोच में डूब गया। जहां जाने से कुछ फायदा मिले तभी कोई वहां जाए तो इसका क्या मतलब? क्या गपलू भालू को शिष्टाचार के नाते या फिर दोस्ती के नाते किसी के पास नहीं जाना चाहिए? क्या ऐसा करने से सामान्य तौर-तरीके या दोस्ती का नुकसान नहीं है?

शेर सिंह को लगा, बच्चों को मिड डे मील का लालच देकर पढ़ाई पर बुलाना, पढ़ाई की तौहीन है। क्या बच्चों में खुद पढ़ाई का शौक नहीं होना चाहिए? पढ़ाई-लिखाई सबसे बड़ी चीज है। सभी जानवरों में इसके प्रति ललक होनी चाहिए। इन सारी बातों को सोचकर शेरसिंह बड़ा परेशान हुआ।

उसने अगले ही दिन सियार मंत्री को बुलवाया। उसने कहा, ‘‘ऐसा प्रचार-प्रसार करो कि जंगल के जानवर पढ़ाई के प्रति जागरूक हों। उन्हें पढ़ाई की अहमियत समझाओ। उनमें पढ़ाई के लिए बेचैनी पैदा करो। ऐसा कुछ करो के वे बिना किसी लोभ के पढ़ने आएं।’’

सियार मंत्री ने कहा, ‘‘महाराज, ऐसा ही होगा। मगर रोजगार के मौके भी बढ़ाइए ताकि जानवर ऊंची से ऊंची पढ़ाई करने के लिए तैयार हों।’’

शेर सिंह ने कहा, ‘‘ठीक है। तुम प्रचार-प्रसार का काम करो और मैं रोजगार के मौके बढ़ाने के उपाय करता हूं।’’

कुछ ही साल के प्रयास के बाद देखा गया कि चंपक वन में कई स्कूल और खुल गए। वहां पढ़नेवालों की तादाद भी खूब रहती थी। मिड डे मील का इंतजाम अभी भी था, मगर पढ़नेवाले कभी मिड डे मील की परवाह नहीं करते थे। उनमें तो अब सिर्फ पढ़ाई की भूख थी। वे पढ़ना चाहते थे और कुछ बनना चाहते थे।

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