धरती पर धड़कते एक सपने की तरह है लोटस टेम्पल

शताब्दियों से पर्यटन की राजधानी रही दिल्ली में यूं तो बहुत सी सुन्दर इमारतें हैं जिनमें शाहजहां द्वारा निर्मित अनेक स्थान है, पर इन दिनों सबसे सुन्दर इमारतों में लोटस टेम्पल (कमलाकृति वाला मन्दिर) अपने आप में एक अलग ही अप्रतिम सौन्दर्य लिये हुए है। हालांकि इसका उल्लेख राजधानी के अधिकृत नक्शे में नहीं है किन्तु दिल्ली दर्शन कराने वाली तमाम बसें इस स्थान पर आये बिना नहीं रहती हैं। कुतुब मीनार, लाल किला, बिडला मन्दिर, राजघाट जैसे अनेक पर्यटन स्थलों को संजोये रखने वाली दिल्ली का एक खास आकर्षण लोटस टेम्पल भी है। दक्षिणी दिल्ली में नेहरू प्लेस के निकट 20.06 एकड में बने इस मन्दिर का निर्माण वास्तुकला का एक बेजोड नमूना है। यहां पर पर्यटकों को सुन्दर बगीचा, पहाडियों पर घूमने सरीखा आनन्द, खूबसूरत कृत्रिम तालाब तथा मन को शान्ति प्रदान करने वाला विशालकाय उपासना स्थल है। लगभग 34.27 मीटर ऊंचाई वाला यह मन्दिर परम्परागत भारत के दूसरे धार्मिकों जैसा नहीं है। इस उत्कृष्ट कमलाकृति वाले भवन में न तो किसी भगवान की मूर्ति है और न ही यहां पूजन-अर्चन होता है। उल्टे मुख्य मन्दिर में प्रवेश करने से पूर्व पर्यटक को ताकीद दी जाती है कि वह शान्ति बनाये रखेगा। राष्ट्रीय फूल कमल को मूर्त रूप देता यह मन्दिर नौ कृत्रिम तालाबों से घिरा हुआ है जिससे मुख्य भवन का तापमान भीषण गर्मी में भी बहुत कम रहता है। वातानुकूलित न होने के बावजूद यह शान्त भवन पर्यटकों को देर तक अपने पास ठहरने को बाध्य करता है और वे 28 पंखुडियों वाले कमल की शरण में सुख का अनुभव करते हैं। इस मन्दिर को बहाई उपासना मन्दिर भी कहते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप का यह बहाई उपासना मन्दिर दुनिया के विभिन्न भागों में बने सात मन्दिरों में सबसे नया है। प्रत्येक भवन सृष्टि के रचयिया के स्मरण के लिये तथा मनुष्य और ईश्वर के बीच के अनन्य प्रेम की अभिव्यक्ति के लिये सभी धर्मों, जातियों, नस्लों और राष्ट्रों के लोगों को आमन्त्रित करता है। नई दिल्ली के इस बहाई उपासना मन्दिर के शिल्प की प्रेरणा कमल के फूल से मिली है। यह अत्यन्त सुन्दर फूल पवित्रता का प्रतीक है और भारतवर्ष में प्रचलित धर्मों तथा उपासना पद्धतियों से अटूट रूप से जुडा हुआ है। यह मन्दिर पानी के नौ तालाबों से घिरा हुआ है, जो भवन के सौन्दर्य को और भी निखारते हैं। सभी बहाई मन्दिरों की एक सामान्य विशेषता यह है कि इन सब के नौ किनारे हैं। नौ सबसे बडा अंक है और यह व्यापकता, अभिन्नता और एकता का प्रतीक है। बहाई मन्दिरों में बहाई धर्म के पवित्र ग्रंथ तथा इसके पहले प्रकट किये गये धर्मों के पावन ग्रंथों से निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार पाठ अथवा गान होता है। शेष समय में शान्तिपूर्ण प्रार्थना अथवा ध्यान के लिये सभी का स्वागत किया जाता है। वैसे तो यह मन्दिर शाम सात बजे के बाद (सर्दियों में साढे पांच बजे तक ही) सोमवार को छोडकर खुले रहते हैं किन्तु रात के अंधकार में इसकी प्रकाश व्यवस्था बडी ही लुभावनी होती है।

This post has already been read 123859 times!

Sharing this

Related posts