Ranchi : “एक 38 वर्षीय मरीज़ काफ़ी नाज़ुक स्थिति में पारस एचईसी अस्पताल आया था। वह जब अस्पताल आया था तो उसका ऑक्सीजन काफ़ी कम था, बिलकुल 60% और मरीज़ का श्वसन गति 45/मिनट था जो सामान्यतः 15 से 16 होना चाहिए। पारस अस्पताल में जब मरीज़ का एक्सरे किया गया तो पता चला कि मरीज़ को निमोनिया ने पूरी तरह जकड़ लिया था और उसका दायाँ तरफ़ का फेफड़ा पूरा सफ़ेद पाया गया। मरीज़ को क्रिप्टोजेनिक ऑर्गनाइजिंग निमोनिया नामक बीमारी थी। यह बीमारी एक लाख में मात्र 3% लोगों को होती है। इसमें सामान्यतः दोनों फेफड़े प्रभावित होते हैं। 50 से 60 वर्ष के लोगों में यह बीमारी ज़्यादा होती है। पारस अस्पताल में आने के बाद मरीज़ की नाज़ुक स्थिति को देखते हुए इन्हें ICU में भर्ती किया गया । मरीज़ को एंटीबॉयोटिक्स देने के बाद भी उसपर कोई असर नहीं हो रहा था। फिर मरीज़ वेंटीलेटर पे रखने के बाद ब्रोंकोस्कोपिक बायोप्सी जाँच किया गया और उसके बाद मरीज़ का उपचार शुरू हुआ। उपचार शुरू होते ही मरीज़ में चमत्कारिक रूप से सुधार होने लगा। मरीज़ में सुधार को देखते हुए उन्हें दूसरे दिन ही वेंटीलेटर से हटा दिया गया। तीसरे दिन से उनके फेफड़े में भी सुधार होने लगा और कुछ ही दिन बाद उन्हें वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया, जहां से वे पूरी तरह ठीक होकर अपने घर सकुशल चले गये।”
पारस एचईसी अस्पताल के सीनियर कंसलटेंट डॉ निरुपम शरण का कहना है कि तेज़ बुखार होने पर, सीने में दोनों ओर या एक ओर दर्द होने पर, कफ़ की उपस्थिति के साथ सांस लेने में तकलीफ़ होने पर, खांसी से निकले कफ़ का रंग सुनहरा या गहरे नीले ग्रे रंग का हो या पतला तथा मटमैला लाल रंग का हो या सामान्य से भिन्न चरित्र का होने पर तुरंत चिकित्सक से मिलकर सलाह लें। जब निमोनिया अपने चरम प्रभाव पर होता है तो मरीज़ की हालत चिंताजनक हो सकती है।
डॉ ने बताया की निमोनिया कई तरह के होते हैं। आज प्रत्येक व्यक्ति को इस बीमारी के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है। 2 साल से कम उम्र के बच्चे और 60 साल से ज़्यादा उम्र के वृद्धों की मौत का एक प्रमुख कारण निमोनिया भी पाया गया है।
मरीज़ों को बेहतर इलाज और उत्तम स्वास्थ्य देने के लिए पारस अस्पताल में सभी तरह के निमोनिया के इलाज हेतु सर्वोत्तम उपचार व्यवस्था एवं अत्याधुनिक तकनीक मौजूद है। राँची के पारस एचईसी अस्पताल में मरीज़ों की सुरक्षा के लिए निमोनिया के टीके उपलब्ध हैं।
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