रांची: कई बार, किसी महिला की सबसे बड़ी लड़ाई उसके अपने मन के डर, चुप्पी और हिचकिचाहट से होती है। टाटा ट्रस्ट्स के सार्वजनिक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान खुद से जीत में इसी अंतर्द्वंद को सामने लाया गया है। यह अभियान महिलाओं को समय पर सर्वाइकल कैंसर की जांच कराने और अपनी सेहत को प्राथमिकता देने के लिए प्रेरित करता है। इस सत्र में डॉ. गौरवी मिश्रा, डिप्टी डायरेक्टर, सेंटर फॉर कैंसर एपिडेमियोलॉजी, टाटा मेमोरियल सेंटर; डॉ. सविता गोस्वामी, साइको-ऑन्कोलॉजिस्ट, टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल; और वंदना गुप्ता, कैंसर सर्वाइवर और वी केयर फाउंडेशन की संस्थापक मौजूद रहीं।
इस सत्र का संचालन डॉ. रुद्रदत्त श्रोत्रिय, हेड, मेडिकल ऑपरेशन्स, टाटा कैंसर केयर फाउंडेशन ने किया। उन्होंने कहा, भारत में हर साल सर्वाइकल कैंसर के कारण करीब 15 लाख स्वस्थ जीवन वर्ष का नुकसान होता है, खासकर 30 से 65 वर्ष की महिलाओं में। इसकी सबसे बड़ी वजह है – जागरूकता की कमी और हिचकिचाहट। कई महिलाएं शुरुआती लक्षणों को गंभीरता से नहीं लेतीं, और जो लेती हैं, वे डर या शर्म के चलते जांच टाल देती हैं। कुछ को तो यह भी नहीं पता होता कि बिना लक्षणों के भी खतरा हो सकता है। ऐसे में समय पर स्क्रीनिंग बेहद जरूरी है। हमारा उद्देश्य है कि महिलाएं अपनी सेहत को प्राथमिकता दें और बिना हिचक जांच कराएं।
टाटा ट्रस्ट्स ने इसी विषय पर एक संवेदनशील सामाजिक जागरुकता फिल्म भी लॉन्च की है, जो एक महिला के आंतरिक संघर्ष को दर्शाती है-जहां वह आत्म-संदेह, इनकार और संकोच से निकलकर अपने लक्षणों पर ध्यान देती है और स्क्रीनिंग का फैसला लेती है। ट्रस्ट्स का मानना है कि ऐसी कहानियों के ज़रिए ज्यादा महिलाओं को प्रेरित किया जा सकता है कि वे अपने शरीर की आवाज़ सुनें और अपनी सेहत को महत्व दें।
इस अभियान के बारे में बात करते हुए शिल्पी घोष, कम्युनिकेशन्स स्पेशलिस्ट, टाटा ट्रस्ट्स ने कहा, खुद से जीत की शुरुआत तब हुई जब हमने महिलाओं की चुप्पी, डर और संकोच को सुना। सर्वाइकल कैंसर सिर्फ एक बीमारी नहीं, एक भावनात्मक अनुभव भी है, जो अनकही बातों और झिझक में छिपा रहता है। कई बार यह न केवल जानकारी की कमी होती है, बल्कि वह अंदर की आवाज़ भी होती है जो कहती है -रुको, मत बोलो, पहले खुद को मत रखो। हमारा प्रयास है महिलाओं को यह भरोसा देना कि वे जरूरी हैं, उनकी सेहत जरूरी है। हर कहानी और हर शब्द के ज़रिए हम यही संदेश देना चाहते हैं कि अगर वे यह भीतरी लड़ाई जीत लें, तो वे वही ज़िंदगी पा सकती हैं, जिसकी वे हक़दार हैं।
भारत में महिलाओं के बीच सर्वाइकल कैंसर दूसरा सबसे आम कैंसर है, जो हर साल लगभग 75,000 महिलाओं की जान लेता है। अधिकतर मामलों में इसलिए क्योंकि इसका पता देर से चलता है। जबकि अगर समय रहते जांच हो जाए, तो 95 प्रतिषत मामलों में इसका इलाज संभव है। फिर भी, कई महिलाएं समय पर जांच नहीं करातीं। इसके पीछे कारण है – इस बीमारी के लक्षणों के प्रति जागरूकता की कमी, डर, शर्म और चुप्पी की वह आदत जो जांच में देरी करवा देती है।
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