औचित्यहीन प्रतिबंध !

मणिपुर की जानी-मानी अभिनेत्री सोमा लैशराम पर एक स्थानीय सिविल सोसायटी आॅर्गेनाइजेशन कांगलीपाक कानबा लुप (केकेएल) ने तीन वर्ष का प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। यह सर्वथा चिन्ताजनक है। यह ठीक है कि मणिपुर विगत मई माह से जिस तरह की हिंसा और नफरत के दौर से गुजर रहा है, वह अत्यन्त दुखद है। इस स्थिति ने वहां के लोगों के बीच के आपसी प्यार और विश्वास को बुरी तरह तोड़ा है। लेकिन, इसका मतलब यह नहीं कि इन कारणों को आधार बना कर राज्य से बाहर देश की राजधानी में हो रहे आयोजन मेंं सम्मिलित ही नहीं हुआ जाये और राज्य की पीड़ा ही नहीं बयान की जाये…वहां शांति लाने की अपील ही नहीं की जाये। अभिनेत्री सोमा लैशराम ने यही किया, जिसे आधार बना कर केकेएल ने उसे प्रतिबंधित करने की घोषणा की है। यह हर दृष्टि से गलत है। इसका विरोध किया जाना चाहिए। सोमा लैशराम अब तक 150 से अधिक मणिपुरी फिल्मों में काम कर चुकी हैं। वह अनेक पुरस्कारों से नवाजी जा चुकी हैं। नयी दिल्ली में विगत दिन हुए नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स फेस्टिवल में मणिपुर का प्रतिनिधित्व करने के लिए उन्हें आमंत्रित किया गया था। यहां उल्लेख आवश्यक है कि यह ऐसा सांस्कृतिक आयोजन था, जिसमें सभी नॉर्थ ईस्ट राज्यों की जानी-मानी हस्तियों को बुलाया गया था। कहना गलत नहीं होगा कि इस मंच के माध्यम से अपने राज्य के लोगों की भावनाएं प्रकट कर सोमा लैशराम ने कोई गलती नहीं की है। केकेएल का कहना है कि उसने फिल्म एक्टर्स गिल्ड मणिपुर और सार्वजनिक अपीलों व व्यक्तिगत अनुरोध के जरिये भी उनसे इस कार्यक्रम में शामिल नहीं होने को कहा था। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर इस अपील अथवा अनुरोध का आधार क्या है।…और, यदि केकेएल ने सचमुच अनुरोध ही किया था, तो फिर प्रतिबंध का भला क्या औचित्य है। प्रतिबंध तो दबाव का सूचक है। मणिपुर का कोई कलाकार यदि मणिपुर से बाहर किसी मंच पर अपने राज्य की पीड़ा का उल्लेख करता है, तो उसे राज्य के किसी भी समुदाय के हितों अथवा भावनाओं के खिलाफ कैसे माना जा सकता है? प्रसंगवश, चर्चा आवश्यक है कि जब राज्य में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच दूरी बहुत अधिक बढ़ी हुई मानी जा रही थी, तभी राज्य के टीनेज खिलाड़ियों ने अंडर 16 साउथ एशियन फुटबॉल फेडरेशन चैंपियनशिप का खिताब तो दिलाया ही, देश का मान भी बढ़ाया। साथ ही, मैतेई-कुकी मेल का शानदार उदाहरण भी प्रस्तुत किया। इस टीम के 23 में से 16 खिलाड़ी मणिपुर के थे, जिनमें 11 मैतेई और 04 कुकी समुदाय के थे। सबसे महत्त्वपूर्ण और दिलचस्प बात यह कि 2-0 से जीते फाइनल मुकाबले में एक गोल भरत लैरेंजम (मैतेई) ने और एक लेविस जैंगमिनलुन (कुकी) ने किया। कहना गलत नहीं होगा कि इस जीत से उभरे उत्साह ने कुछ क्षणों के लिए मैतेई और कुकी समुदायों के बीच हाल में आयीं दूरियों को भुला दिया। जो काम इन लड़कों ने अपने खेल से किया, वही काम सोमा लैशराम नयी दिल्ली के आयोजन में अपनी भागीदारी से कर रही थीं। स्पष्टत:, इस तरह के प्रयास पूरी दृढ़ता के साथ आगे बढ़ाये जाने चाहिए…प्रबल किये जाने चाहिए। प्रतिबंध तो निजी खुन्नस को ही प्रतिबिम्बित करता है।

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