भारतीय जनता पार्टी 2024 का लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में ही लड़ेगी। इस बार भी भाजपा की सवारी हिन्दुत्व का रथ ही होगा। इसी हिन्दुत्व के माध्यम से उसने 2014 के चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ अपना विजय अभियान आरम्भ किया था। तब से लेकर आज तक हिन्दुत्व के बूते ही भाजपा का विस्तार होता गया और कांग्रेस सिमटती चली गयी। हालांकि, कांग्रेस की कमी को पूरा करने के लिए कई क्षेत्रीय क्षत्रपों ने विभिन्न राज्यों में अपना राजनैतिक विस्तार कर लिया। इन्होंने विगत कुछ वर्षों के अंतराल में ही भाजपा की हिन्दुत्ववाली राजनीति की हवा निकाल कर रख दी। पिछड़ों-दलितों और मुसलमान वोट बैंक के बूते ये लगातार सत्ता की सीढ़ियां चढ़ते चले गये। जातिवाद के नाम पर लोग अलग-अलग दलों के लिए वोट करने लगे। पिछड़ी जाति के लोग समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के साथ जुड़ते चले गये, तो दलित मायावती के साथ हो लिये। जबकि, मुस्लिम समुदाय सपा, कांग्रेस व बसपा के बीच विभाजित रहा। हालांकि, अब स्थिति बहुत बदली है। मुसलमानों ने बसपा का साथ लगभग छोड़ दिया है। वे अब सपा और कांग्रेस के साथ ही पूरी तरह हैं। इस बीच आईएनडीआईए गठबंधन दलों ने जातिगत जनगणना कराने की मांग को हवा देनी शुरू कर दी है। इसमें सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि जिस कांग्रेस के पुराने दिग्गज नेता पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी एवं राजीव गांधी जातिवादी जनगणना को देश के लिए खतरा बताते रहे, आज उसी खतरे को कांग्रेस के वर्तमान नेता राहुल गांधी अत्यन्त आवश्यक बता रहे हैं। उन्हें लगता है कि जातिगत जनगणना कांग्रेस को लोकसभा चुनाव की वैतरणी आसानी से पार करा देगी। वहीं, दूसरी ओर, भाजपा अपने सबसे बड़े और धारदार हथियार हिन्दुत्व को फिर से आजमा कर कमंडल राजनीति को गर्म करने में लगी है। जबकि, उसकी काट के लिए राजद, जद (यू) और समाजवादी पार्टी जातिवादी जनगणना और रामचरित मानस विवाद के जरिये पिछड़ों के ध्रुवीकरण की मंडल राजनीति का नया दांव खेलने में जुट गये हैं। बहरहाल, अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उनके मंत्री और भाजपा, केन्द्र सरकार के पिछले दस वर्षों के कामकाज व उपलब्धियों को जनता के बीच परोसेंगे कि किस तरह भारत की वास्तविक विकास यात्रा 2014 से शुरू हुई है। इसके अलावा जनवरी 2024 तक अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पूरा होने का अतिशय प्रचार, गोवध, हिन्दुत्व, लव जिहाद, तीन तलाक-अनुच्छेद 370 का खात्मा जैसे मुद्दे भी परोसे जायेंगे। उधर, कांग्रेस ने कर्नाटक में मिली जीत से उत्साहित होकर भाजपा और केन्द्र सरकार के खिलाफ महंगाई, बेरोजगारी, किसानों की समस्या, छोटे उद्योगों, मझोले व्यापार और दुकानदारों की तकलीफ, मजदूरों की दैनिक दिक्कतों, सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन योजना और कॉरपोरेट भ्रष्टाचार के जरिये अमीर-गरीब की गहराती खाई को मुद्दा बनाया है। इन स्थितियों के मद्देनजर देखना दिलचस्प होगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में ऊंट किस करवट बैठता है।
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