मुंबई। बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने फिल्म इंडस्ट्री में 50 साल पूरे कर लिये हैं। अमिताभ बच्चन ने अपनी पहली फिल्म सात हिंदुस्तानी 15 फरवरी 1969 को साइन की थी। अमिताभ को ‘सात हिंदुस्तानी’ कैसे मिली, इसकी भी दिलचस्प कहानी है, जिसे फिल्म के निर्देशक ख्वाज़ा अहमद अब्बास की एक किताब में विस्तार से दिया गया है। ‘सात हिंदुस्तानी’ की कहानी गोवा मुक्ति आंदोलन से निकली थी, जिसके लिए अब्बास को सात अभिनेताओं की ज़रूरत थी। अमिताभ को जब इस फ़िल्म के बारे में पता चला तो वह कोलकाता में अपनी 1600 रुपए महीने की नौकरी छोड़कर मुंबई आ गये। अब्बास ने अमिताभ को दो किरदारों की च्वाइस दी थी- एक पंजाबी और दूसरा मुस्लिम। अमिताभ ने मुस्लिम किरदार अनवर अली चुना, क्योंकि इस किरदार में अभिनय की कई परतें थीं। ख़ास बात यह है कि अमिताभ को ‘सात हिंदुस्तानी’ मिली भी नहीं थी, लेकिन उन्होंने नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया था। जब अब्बास ने उनसे कहा कि यदि उन्हें ये फ़िल्म न मिलती तो क्या होता। इस पर अमिताभ ने कहा था कि कुछ जोख़िम तो उठाने पड़ते हैं। यह जवाब अब्बास के दिल को छू गया। इस फ़िल्म के लिए अमिताभ को पांच हज़ार रुपए की पेशकश की गयी थी, जो उस वक़्त उनकी नौकरी से होने वाली कुल आय के मुक़ाबले काफ़ी कम थी। अमिताभ ने निर्देशक अब्बास को अपने पिता हरिवंश राय बच्चन का नाम तब तक नहीं बताया जब तक बहुत जरूरी नहीं हो गया, अब्बास को ये पता चला कि अमिताभ, मशहूर साहित्यकार और उनके जानने वालों में शामिल हरिवंशराय बच्चन के बेटे हैं तो उन्होंने तुरंत ही अमिताभ के पिता को एक चिट्ठी लिखी जिसमें उन्होंने उनके बेटे को कास्ट करने की बात कही और उनसे उनकी अनुमति मांगी, इसके बाद जब हरिवंशराय की सहमति आ गयी तब ही अमिताभ को इस फिल्म के लिए हरी झंडी दिखा दी गयी। अमिताभ के पुत्र अभिषेक बच्चन ने अपने पिता बारे में एक छोटा सा नोट लिखकर उनके करियर को याद किया है- एक मिसाल। मेरे लिए वो इससे अधिक हैं। मेरे पिता, सबसे अच्छे दोस्त, गाइड, आलोचक, सम्बल और आदर्श… हीरो। 50 साल पहले उन्होंने फ़िल्मों में अपना करियर शुरू किया था। आज भी, अपनी कला के लिए उनका पैशन और प्यार वैसा ही है, जैसा पहले दिन रहा होगा। प्रिय पा, आज हम आपके हुनर, पैशन, आपकी प्रतिभा और गहरे असर को महसूस कर रहे हैं। इस बात का इंतज़ार रहेगा कि अगले 50 सालों में आप क्या देने वाले हैं। आज जब मैं उन्हें 50 साल पूरे होने की बधाई देने गया तो उन्होंने मुझे एक सबसे अच्छी बात सिखायी… वो काम पर जाने के लिए पहले से तैयार थे… मैंने पूछा कहां जा रहे हैं, तो बोले- काम करने।
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