स्पीकर ने सदन में अधिकारियों की गैर मौजूदगी पर नाराजगी जतायी

रांची। झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष दिनेश उरांव ने शुक्रवार को कहा कि विभागों के कई उच्चाधिकारी सभा की कार्यवाही को उतनी गंभीरता से नहीं लेते, जितने की अपेक्षा हमारा संविधान और हमारी संसदीय व्यवस्था करती है। उरांव ने बजट सत्र के समापन पर सदन में अपने समापन भाषण में कहा कि उन्हें स्मरण है कि एक मंत्री को अपने वक्तव्य के दौरान इस तरह की कमी एक अवसर पर खली है और ऐसी ही स्थिति में उन्हें यह तल्ख टिप्पणी करनी पड़ी कि जिन अधिकारियों के मन में इस सदन के प्रति सम्मान नहीं है, उन्हें इस राज्य को छोड़ अपनी सेवा अन्यत्र देनी चाहिए। उन्होंने आशा व्यक्त की कि आने वाले दिनों में इस राज्य की लोक सेवा से जुड़ी नौकरशाही और उसके शीर्ष अधिकारी आसन से कहे गये शब्दों को गंभीरता से लेंगे और भविष्य में सदन के लिए अपनी उपलब्धता सुनिश्चित करायेंगे। उरांव ने कहा कि इस सदन के एक-एक सदस्य के साथ-साथ तमाम मंत्रियों और संविधान में वर्णित शासन व्यवस्था के प्रत्येक व्यक्ति को यह समझना होगा कि संविधान उपबंधित शासन के प्रत्येक अंग अलग-अलग होते हुए भी नियंत्रण और संतुलन के सिद्धांत के तहत एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि व्यवस्था से अलग होकर अपने अस्तित्व की कल्पना करना बिखराव को अवसर पैदा करता है, जो लोकतंत्र के हित में नहीं है। उरांव ने कहा कि इस विधानसभा के कार्यकाल का यह सर्वाधिक सार्थक सत्र रहा है। लोक महत्व के अनेक ज्वलंत मुद्दों का उल्लेखनीय समाधान इस सत्र के दौरान संभव हो सका है। उन्होंने कहा कि जनहित से जुड़ी समस्याओं के समाधान की दृष्टि से विधानसभा किसी भी राज्य का सबसे बड़ा प्लेटफार्म है। सभा के समय का अधिकतम सदुपयोग पक्ष-प्रतिपक्ष के सदस्यों के परस्पर समन्वय से ही संभव है। उन्होंने इस बात पर खुशी जाहिर की कि लोकतंत्र के व्यापक हित में यह वांछित समन्वय सदन में कायम रहा। जिससे सभा ने अपनी कार्य सूची पर अंकित अधिकतम विषयों का निष्पादन सफलतापूर्वक किया। इस सत्र के सफल संचालन में प्रत्येक सदस्य का अहम योगदान रहा है। इसके लिए उन्होंने सदन के समस्त सदस्यों को धन्यवाद दिया। उरांव ने सभी सदस्यों के साथ-साथ राज्य की सवा तीन करोड़ जनता को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं दी और इसी के साथ सभा की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने की घोषणा की।

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