याद हुसैन और हमारी ज़िम्मेदारियाँ: मौलाना तहजीबुल हसन 

 रांची: रांची के मस्जिद जाफरिया में 10 दिवसीय मजलिस के तीसरी मजलिस को संबोधित करते हुए मौलाना सैयद तहजीबुल हसन रिजवी ने कहा कि मुहर्रम का महीना मुसलमानों के लिए बहुत महत्व रखता है।  जिस तरह हम रमज़ान में अल्लाह के मेहमान होते हैं उसी तरह मुहर्रम में इमाम हुसैन हमारे मेहमान होते हैं।  हर इंसान चाहता है कि मेहमान को खुशी-खुशी विदा किया जाए।  इस महीने के मेहमान शोहदाय कर्बला को हम मुसलमान ही नहीं बल्कि सभी मानवतावादी लोग अपने-अपने हिसाब से कर्बला के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं। श्रद्धांजलि सिर्फ हुसैन कहना नहीं है, बल्कि इमाम हुसैन के बताए रास्ते को अपनाना और उस पर जीना है, यही इमाम हुसैन के प्रति सच्चे प्यार की निशानी है।  मौलाना रिजवी ने जोशीले अंदाज में कहा कि वह हुसैनी नहीं हो सकता, जिसका नमाज और रोजे से कोई वास्ता नहीं। क्योंकि कर्बला की लड़ाई के दौरान भी नवासा रसूल की नमाज़ नहीं छूटी। आख़िर क्या कारण है कि रमज़ान के दौरान मस्जिदें नमाज़ियों से भरी रहती हैं और सामान्य दिनों में खाली रहती हैं?  इसका मतलब यह है कि हम हुसैन को ठीक से नहीं जानते। जब कोई मुसलमान इमाम हुसैन को पहचान लेगा तो एक भी मुसलमान नमाज़ नहीं छोड़ेगा। इमाम हुसैन के नाम पर मिल्लत इस्लामिया का विभाजन अफसोस की बात है।  मुहर्रम शहादत का महीना है, खुशियों का महीना नहीं। जो लोग शहादत के इस महीने में खुशी मनाते हैं वे यज़ीदी प्रकृति का पालन करते हैं।  ऐसे अनुयायी आतंकवादी हो सकते हैं लेकिन शांतिवादी नहीं।  कर्बला आएं और कर्बला से सीखें और इस्लाम के सच्चे समर्थक बनें। इसी में मुसलमानों का उद्धार है। मजलिस के बाद अंजुमन जाफरिया के लोगों ने मातम किया। दूसरी तीसरी मजलिस डाक्टर शमीम हैदर, सैयद यावर हुसैन, अजफर हुसैन नकवी ने किया।  जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया।  इस मौके पर अमूद अब्बास, हाशिम अली, यावर हुसैन, कासिम अली ने कलाम पेश की।

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