विजय केसरी
19 सितंबर का दिन सदा सदा के लिए एक ऐतिहासिक महत्व का दिन बन चुका है। आज नई संसद में मोदी सरकार ने नारी शक्ति वंदन अधिनियम प्रस्तुत किया। यह बिल बिना किसी रोक-टोक के सर्वसम्मति से पारित हो जाएगा। देश की आजादी के बाद महिलाओं के आरक्षण पर विभिन्न राजनीतिक पार्टियां विचार जरूर करती रही है,लेकिन इस तरह का मसौदा पहली बार संसद में पेश हुआ है । नारी शक्ति वंदन अधिनियम के अस्तित्व में आ जाने के बाद वर्तमान में पार्लियामेंट में स्त्रियों की संख्या 82 है। यह संख्या बढ़कर 181 हो जाएगी । यह भारत के महिलाओं के हक के लिए एक बड़ी बात होगी । मोदी सरकार ने जैसे ही यह बिल नई संसद में प्रस्तुत किया, देशभर में इस बिल प्रस्तुतीकरण का स्वागत होने लगा है। पक्ष – विपक्ष के नेताओं ने मुक्त कंठ से इस बिल की स्वागत किया है । वहीं दूसरी ओर इस बिल को अपना बिल बताने की भी होड़ राजनीतिक पार्टियों में लगी हुई है। यह राजनीतिक पार्टियों की एक आदत सी बन गई है। बस उन्हें अपनी पापुलैरिटी से ही मतलब होता है।
नई संसद ने महिला आरक्षण बिल को प्रस्तुत कर महिलाओं को उसका वाजिद हक देने का काम किया है। महिलाओं को उसके वाजिद हक देने में 77 वर्ष लग गए। जबकि देश की आबादी में उनका प्रतिशत लगभग आधा है। लेकिन उन्हें उसका हक देने में राजनीतिक पार्टियों ने इतना समय लगा दिया । आज जो राजनीतिक पार्टियों महिला आरक्षण बिल को अपने नाम करना चाहते हैं। उनसे देश की जनता यह पूछना चाहती है कि उनकी पार्टी महिला आरक्षण बिल क्यों नहीं बना पाई ? इसका बस एक ही जवाब है। यह पार्टी ईमानदारी पूर्वक महिला आरक्षण बिल को गंभीरता से लिया ही नहीं। अन्यथा यह बिल कब का पारित हो चुका होता। आज लोकसभा, राज्यसभा, विधान परिषद और देश के तमाम विधानसभाओं में महिलाओं की आवाज़ें और तीव्र गति से गूंजती रहती।
मोदी सरकार ने नई संसद भवन में गणेश चतुर्थी के दिन प्रवेश कर भारतीय संस्कृति परंपरा को आगे बढ़ने का भी काम किया है। साथ ही नई संसद की पहली सभा में महिला आरक्षण बिल प्रस्तुत कर एक इतिहास रचने का भी काम किया है। बिल प्रस्तुत करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने कहा कि इस बिल को नारी शक्ति वंदन अधिनियम नाम दिया गया है । आगे उन्होंने बिल के नियम शर्तों पर कहा कि लोकसभा में अभी 543 सीटें हैं। जैसे ही महिला आरक्षण बिल पास होगा और कानून बनेगा तो वर्तमान में महिलाओं की संसद में संख्या 82 है, वह बढ़कर 181 हो जाएगी। उन्होंने बताया कि महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा और राज्य सभाओं और दिल्ली विधानसभा में 33% सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव है । इस बिल के तहत लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण 15 साल के लिए मिलेगा।
देश की आधी आबादी महिलाओं का एक स्वर्णिम इतिहास रहा है। चाहे घर हो। बाहर हो। महिलाएं निरंतर पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलती रही है। लेकिन महिलाओं को जो अधिकार मिलना चाहिए था, वह भारतीय समाज ने दिया नहीं। इसका यह परिणाम यह हुआ कि महिलाएं घर के अंदर ही सिमट कर रह गईं । महिलाएं लंबे समय तक अशिक्षित रहीं । जिनमें कुछ महिलाओं ने शिक्षा की ओर कदम भी बढ़ाया तो उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था।
भारत लंबे समय तक विदेशी आक्रांताओं के चंगुल में फंसा रहा था। अशिक्षित होते हुए भी हमारी महिलाओं ने पुरुष राजाओं के युद्ध में शहीद हो जाने के बाद भी महिला रानियां कमर कसकर आगे बढ़ी और विदेशी आक्रांताओं से लोहा लिया था। रानी लक्ष्मीबाई के संघर्ष को कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता है। रानी लक्ष्मीबाई अपनी गोद में अपने नवजात शिशु को बांधकर एक छत्रानी की तरह विदेशी आक्रांताओं से लड़ी थी। रानी अहिल्याबाई जो शिक्षा की प्रबल पक्षधर थी। राजघराने में जन्म लेकर भी उन्हें शिक्षा प्राप्ति के लिए कितना संघर्ष करना पड़ा था। जब जब भी भारतीय राजाओं के समक्ष परेशानियां आन खड़ी होती थी, हमारी बहादुर रानियों ने उनका मार्ग प्रशस्त किया और उसके हौसले को काफी बढ़ाया था।
देशकी आजादी के संघर्ष में महिलाओं की सक्रियता यह बताती है कि महिलाएं किसी भी कालखंड में पुरुषों से कमतर नहीं रही थी। एक और जहां पुरुष पसीना बहाकर मिट्टी से अन्य प्राप्त कर रहे थे, वहीं भारतीय परंपरागत स्त्रियां उनके उपजे अनाज को अपनी कड़ी मेहनत से तराशा कर खाने योग्य बना रही थी। पति के असमय मृत्यु हो जाने के बावजूद ये स्त्रियां मेहनत मजदूरी कर अपने बच्चों को इस काबिल बनाती रही थी कि उनके बच्चे भारत के निर्माण में महामती भूमिका अदा करते रहे। भारतीय स्त्रियों की गौरवमय गाथा की एक से एक जीवंत कहानियां हमारे भारतीय वांग्मय के पन्नों में भारी पड़े हैं।
भारत की आजादी में भारतीय स्त्रियों ने जो काम किया था, इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। आजादी के समय भारतीय स्त्रियों को घर से बाहर निकलना माना था । इसके बावजूद घर की चौखट को लांघकर ये स्वाधीनता सेनानियां स्वाधीनता संघर्ष में बढ़-चढ़कर हिस्सा ली थीं । हजारीबाग की सरस्वती देवी, सरोजिनी नायडू ,कस्तूरबा गांधी जैसी संग स्त्रियां भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में महती भूमिका अदा की थी। एक जमाना वह भी था, जब भारतीय चलचित्र उद्योग की स्थापना दादा साहेब फाल्के ने किया था , तब उन्हें अपने चलचित्र के लिए हीरोइन तक नहीं मिल पाती थी। अंततः उन्हें लड़कों को ही स्त्री बनाकर फिल्म में प्रस्तुत किया जाता था । इतनी पाबंदियां हमारी स्त्रियों थी, लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे परिवर्तन आता गया। आज भारत की स्त्रियां सिर्फ भारतीय चलचित्र में ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों के चलचित्र में कम कर रही है। भारतीय स्त्रियों को फिल्म फेयर अवार्ड सहित ऑस्कर अवार्ड तक प्राप्त हो चुके है। भारत की स्त्रियां विश्व सौंदर्य प्रतियोगिता में भी अपना परचम लहरा चुकी हैं। भारत की स्त्रियां विश्व सुंदरी का भी खिताब प्राप्त हो चुकी है।
मोदी सरकार ने महिला आरक्षण बिल के माध्यम से महिलाओं के प्रति अपनी संवेदनशीलता प्रकट किया है। आज इसरो ने चंद्रयान वन से लेकर चंद्रयान-3 तक जो प्रक्षेपण किया, उसमें महिला वैज्ञानिकों की भूमिका अहम रही है । पिछले दिनों आदित्य एल वन के सफल प्रक्षेपण में महिला वैज्ञानिकों की भी भूमिका रही है । आज देश की सबसे ऊंची कुर्सी पर विराजमान द्रोपति मुर्मू जी है। यह इस बात का संकेत है कि देश की आधी आबादी अब किसी भी मायने में पुरुष से कमतर नहीं है । महिलाएं निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर है। विज्ञान, चिकित्सा,इंजीनियरिंग,व्यवसाय, अनुसंधान ऐसे क्षेत्रों में पहले महिलाएं काम आती थी, लेकिन धीरे-धीरे इन क्षेत्रों में उनकी मजबूत उपस्थिति बढ़ती चली जा रही है। नारी शक्ति वंदन अधिनियम एक ऐतिहासिक अधिनियम के रूप में हमारे सामने है। अब लोकसभा, राज्यसभा, विधान परिषद, विधानसभाओं में देश की महिलाओं की एकजुटता देखेगी। आने वाला समय देश के लिए बहुत ही उज्जवल है। अव देश की कोई भी नारी अबला नहीं रहेगी।
विजय केसरी,
( कथाकारा स्तंभकार )
पंच मंदिर चौक, हजारीबाग – 825301 ,
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