तू इधर-उधर की बात न कर

-तनवीर जाफरी-

लोकसभा चुनावों के बादल सिर पर मंडराने लगे हैं। मौकापरस्ती तथा गठबंधनों में जोड़-तोड़ की कवायद शुरू हो चुकी है। नित नए राजनैतिक गठबंधन बनने व बिगडने की खबरें आने लगी हैं। दुर्भाग्यवश देश की जनता देख रही है कि चुनावी मुद्दों का पूरा का पूरा फोकस जन सरोकारों तथा विकास से हटकर मंदिर-मस्जिद,धर्म-जाति,भय-भावनाओं पर केंद्रित हो चुका है। सबका साथ-सबका विकास का नारा देेकर अबकी बार मोदी सरकार के जिस लक्ष्य को भाजपा ने 2014 में पूरी सफलता के साथ हासिल किया था वही भाजपा अब अपने 2014 के किए गए वादों को पूरा न कर पाने की स्थिति में जनता के मध्य दूसरे निरर्थक तथा जन सरोकारों से कोई वास्ता न रखने वाले मुद्दों को उछाल कर पुनः सत्ता में बने रहने का प्रयास कर रही है। हद तो यह है कि राजनैतिक विमर्श का स्तर इतना गिर चुका है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जोकि स्वयं को देश का सेवक व चौकीदार बताते रहते हैं उन्हें साफतौर पर संसद से लेकर सडकों तक विपक्षी नेताओं द्वारा-चौकीदार चोर है कहकर संबोधित किया जाने लगा है। उधर प्रधानमंत्री अपने विरोधियों को चोरों की जमात व लूटेरों का गठबंधन आदि विशेषणों से नवाज रहे हैं। मतदाताओं को ऐसे-ऐसे अनावश्यक इतिहास सुनाए जा रहे हैं ताकि उनके दिलों में विपक्ष या विपक्षी दलों के गठबंधन के प्रति भय पैदा हो और विपक्ष, देश का दुश्मन,राष्ट्रविरोधी तथा हिंदू विरोधी नजर आने लगे।

कोलकाता में पिछले दिनों तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बैनर्जी द्वारा एक विपक्षी महागठबंधन बनाने का प्रयास किया गया। इसमें देश के अधिकांश विपक्षी दलों के प्रतिनिधि उपस्थित हुए। परंतु लोगों का ध्यान सबसे अधिक भाजपा से ही संबंध रखने वाले नेताओं यशवंत सिन्हा,अरूण शैरी व शत्रुघन सिन्हा के भाषणों पर गया। इन्हीं नेताओं ने प्रधानमंत्री को कठघरे में खड़ा किया तथा सार्वजनिक तौर पर चौकीदार चोर है का उद्घोष किया गया। इससे पूर्व उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी के मध्य एक अप्रत्याशित चुनावी गठबंधन हुआ। इस गठबंधन का सफल प्रयोग गोरखपुर तथा फूलपुर की लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में साफतौर पर उस समय देखा गया था जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तथा उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या दोनों ही अपनी-अपनी लोकसभा सीटें उत्तर प्रदेश में सत्ता में आने के कुछ ही समय बाद हार गए थे। सपा-बसपा गठबंधन इन सीटों पर विजयी हुआ था। अब चूंकि 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पूर्व एक बार फिर इन्हीं दोनों दलों का गठबंधन हो गया है लिहाजा भारतीय जनता पार्टी के पसीने छूटना स्वाभाविक है। यही उत्तर प्रदेश था जिसने 2014 में भाजपा को प्रदेश की 80 में से 73 सीटों पर विजय दिलाई थी और निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश की बदौलत ही केंद्र में भाजपा की मोदी सरकार का गठन संभव हो सका। अब चूंकि सपा-बसपा के साथ आने के बाद भाजपा के उत्तर प्रदेश से 73 सीटें जीतने वाले सपने धराशायी हो सकते है लिहाजा भाजपा के चाणक्य समझे जाने वाले राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने 2019 के चुनावों की तुलना पानीपत के युद्ध से कर डाली। शाह ने देश के मतदाताओं में भय पैदा करते हुए कहा कि-2019 का युद्ध सदियों तक असर डालने वाला है इसलिए यह युद्ध जीतना जरूरी है। उन्होंने अयोध्या में जल्द से जल्द राम मंदिर का निर्माण कराए जाने की बात भी कही।

इसी अंदाज में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भी अपनी सरकार की उपलब्धियां बताने के बजाए विपक्षी गठबंधन पर आक्रामक हमले बोले जा रहे हैं। देश के बुद्धिजीवी तथा मीडिया जगत के लोगों द्वारा प्रधानमंत्री से बार-बार यह पूछा जा रहा है कि आपने अपने पूरे शासनकाल में एक बारभी पत्रकारों को संबोधित क्यों नहीं किया? मुख्य धारा के मीडिया से सवाल-जवाब करने से आिखर आप क्यों कतरा रहे हैं। परंतु प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से तथा प्रधानमंत्री द्वारा की जाने वाली मन की बात में भी आज तक इस विषय पर कोई जवाब नहीं दिया गया कि आिखर प्रधानमंत्री मीडिया से रूबरू क्यों नहीं होते? देश में नौकरियों का अकाल पडने के बावजूद सामान्य वर्ग के लोगों को दस प्रतिशत आरक्षण का झुनझुना थमाकर स्वर्णों को लुभाने की कोशिश हो रही है तो कभी तीन तलाक जैसे गैरजरूरी विषय को अपने राजनैतिक लाभ के लिए उछाला गया है। कभी प्रधानमंत्री यह फरमा रहे हैं कि मैंने जिनकी कमाई रोकी वे मुझसे बदला लेने के लिए एक हो रहे हैं। कभी फरमाते हैं कि मैंने सरकारी धन की लूट रोकी है इसलिए मुझे हटाने की साजि़श विपक्षी दलों द्वारा की जा रही है तो कभी कम्युनिस्टों पर यह कहकर हमलावर हो रहे हैं कि वे भारतीय संस्कृति का सम्मान नहीं करते।

देश में तथाकथित राष्ट्रवाद के नए-नए प्रयोग किए जा रहे हैं। इस समय राजनैतिक विमर्श का स्तर इस कद्र गिर गया है कि राजनैतिक दल एक-दूसरे को अपना राजनैतिक विरोधी नहीं बल्कि दुश्मन समझने लगे हैं। जन सरोकारों से जुड़े सबसे मुख्य मुद्दों का तो कोई जि़क्र ही नहीं कर रहा। आज अमेरिकी डॉलर की कीमत 72 रुपये के लगभग होने को है। परंतु अब इन्हें देश की इज्जत गिरती दिखाई नहीं देती? पेट्रोल व डीजल की बढ़ती कीमतों ने मंहगाई को आसमान पर पहुंचा दिया है। किसानों द्वारा रिकॉर्ड तौर पर पिछले पांच वर्षों में धरने-प्रदर्शन तथा आत्महत्याएं की गई हैं। इनकी समस्याओं को दूर करने के बजाए पानीपत की लडऱ्ाई का इतिहास याद दिलाया जा रहा है? रोजगार न देने के बावजूद भाजपाई युवाओं से अपने लिए वोट इसलिए मांग रहे हैं क्योंकि इनके अनुसार भाजपा के अतिरिक्त शेष सभी विपक्षी दल वामपंथी सोच से प्रेरित हैं और वामपंथी भारतीय संस्कृति का सम्मान नहीं करते। गोया भारतीय संस्कृति की रक्षा करना तथा इसके स्वामित्व का अधिकार केवल इन्हीं भाजपाईयों को है जिन्होंने भारतवर्ष के स्वाधीनता संग्राम में अपनी कोई भूमिका नहीं निभाई? भारतवर्ष में जन्मे यहां की मिट्टी में पले तथा अलग-अलग राजनैतिक विचारधाराओं के मानने वाले लोगों को राष्ट्रविरोधी बताना या भारत का दुश्मन कह देना राष्ट्रवाद की इनकी अपनी परिभाषा में शामिल है।

देश में जन सरोकारों से जुड़े जो सबसे जरूरी मुद्दे हैं उनमें अमीरों व गरीबों के बीच की खाई को पाटना, युवाओं को रोजगार मुहैया कराना,देश में सभी लोगों के लिए शिक्षा के समान अवसर मुहैया कराना,देश में धर्म व जाति के मतभेदों को समाप्त कर परस्पर सद्भाव व शांति का वातावरण तैयार करना, देश के सभी लोगों को समान रूप से स्वास्थय सुविधा मुहैया कराना,जमाखोरी,चोरबाजारी व मंहगाई रोकना, समाज को नफरत व भय के नाम पर बंटने से रोकना आदि सर्वप्रमुख हैं। देश का विकास वास्तव में इन्हीं समस्याओं का समाधान करने पर ही निर्भर है। परंतु आज इन जन सरोकारों की तो कोई बात ही नहीं करता। एक-दूसरे को नीचा दिखाने तथा जनता को भयभीत करने की घिनौनी सियासत की जा रही है। आज के सत्ताधारियों का विरोध तो दूर इनकी आलोचना करना भी राष्ट्रविरोध जैसा हो गया है। न इन्हें नोटबंदी का हिसाब व जवाब देने में कोई दिलचस्पी है न ही राफेल विमान सौदे से संबंधित लोकसभा में पूछे जा रहे प्रश्रों का इनके पास कोई जवाब है। उल्टे कभी यही सत्ताधारी हत्यारों के पक्ष में खड़े दिखाई दे रहे हैं तो कभी बलात्कारियों के समर्थन में जुलूस निकालते नजर आ रहे हैं। कभी उत्तर प्रदेश में बेतहाशा फजऱ्ी पुलिस मुठभेड़ों की खबरें आ रही हैं तो कभी इनके सांसद व मंत्री हत्यारों को सम्मानित करते दिखाई दे जाते हैं। निश्चित रूप से आगामी लोकसभा चुनावों में देश की जनता अपने रहबरों से पूछने जा रही है कि-तू इधर-उधर की बात न कर- ये बता कि कािफला क्यों लुटा।। मुझे रहजनों से गरज नहीं,तेरी रहबरी का सवाल है।

This post has already been read 73487 times!

Sharing this

Related posts