इस बार आम चुनाव में आर-पार की लड़ाई

-के एम झा-

हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और छतीसगढ में भाजपा को सत्ता से हाथ धोना पड़ा। भाजपा जिस कांग्रेस पार्टी को देश से समाप्त करने का सपना संजोए बैठी थी ,उसी कांग्रेस ने इन राज्यों में भाजपा को हराकर सत्ता प्राप्त कर ली है। इस जीत ने जहां कांग्रेस के उत्साह में वृद्धि की है, वही केंद्र की भाजपा नीत राजग सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी की चिंता भी बढ़ा दी है। इधर कांग्रेस के हौसलें इतने बुलंद हो गए है कि उसने आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा की विदाई के सपने भी देखने शुरू कर दिए है। कांग्रेस का यह स्वप्न अभी भले ही दूर की कौड़ी वाली कहावत को चरितार्थ कर रहा हो, लेकिन यहां यह कहना भी गलत नहीं होगा कि फिलहाल भाजपा आत्मविश्वास तो खंडित ही लग रहा है। इन साढ़े चार सालों में राजग में भाजपा के 11 सहयोगी उससे नाता तोड़ चुके है। शिवसेना आए दिन उसे आँख दिखा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही अभी भी देश के सबसे लोकप्रिय नेता हो ,परन्तु उनकी सम्मोहन शक्ति में आंशिक कमी तो जरूर आ गई है। इधर विपक्षी दलों की ताकत को कम करके आंकना भी भाजपा को महंगा पड़ सकता है। बसपा व सपा का गठबंधन एवं कांग्रेस का बढ़ा मनोबल भाजपा को चिंतित करने के लिए काफी है। भाजपा भले ही यह मानती है कि चुनाव आते आते विपक्षी गठबंधन बिखरने लगेगा ,लेकिन फिर भी इस बिखरे गठबंधन को कम नहीं आका जाना चाहिए। उधर भाजपा को भी अपने लिए कुछ नए सहयोगियों को तलाशना होगा ताकि उससे नाता तोड़ चुके सहयोगियों की कमी को पूरा किया जा सके। पिछले साढ़े चार साल में पीएम मोदी एवं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने सबसे अधिक आलोचना अगर किसी दल की है तो वह कांग्रेस है। मोदी व शाह ने तो इस दौरान कांग्रेस मुक्त भारत तक का नारा दे दिया था, लेकिन यदि इस नारे के बाद कांग्रेस को जनता जनता से दूर किया जा सकता होता तो उसे पंजाब, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छतीसगढ में वापसी का मौका ही नहीं मिलता। इन राज्यों के आलावा गुजरात का भी उल्लेख करना जरुरी है जहां गत विधानसभा चुनाव में भाजपा 150 सीटें जीतने का दावा कर रही थी लेकिन कांग्रेस ने उसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया था। इसके बाद भाजपा शासित तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और छतीसगढ में भी भाजपा ने बड़े दावें किए थे, लेकिन यहां भी उसका दावा उल्टा ही साबित हुआ है। अब आगामी एक महीने बाद लोकसभा चुनाव का दौर शुरू हो जाएगा। इस दौरान आरोप प्रत्यारोप का दौर और तेज होने के आसार होंगे। कांग्रेस राफेल विमान सौदे को लेकर हमले तेज करेगी। इधर इससे इतर भाजपा को जनता को यह समझाना होगा कि उसके नेतृत्व में देश में अब इतने अच्छे दिन आ गए है कि अब इस नारे की आवश्यकता ही नहीं रह गई है। भाजपा को अब यह समझना होगा कि जनता अब उसे उसके पांच साल की उपलब्धियों का मूल्यांकन करके ही चुनेगी। विगत चुनाव में तो वह विपक्षी पार्टी के रूप में चुनावी मैदान में उतरी थी, जिसे दस साल से सत्ता पर काबिज कांग्रेस को सत्ता से हटाना था इसलिए उसने कांग्रेस को कठघरे में खड़े करने की मुहीम चलाई थी। इसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस मात्र 44 सीटों पर सिमट गई थी। भाजपा के लिए 2014 में कांग्रेस को हराना उतना मुश्किल नहीं था जितना वर्तमान स्थिति मे लग रहा है। आज कांग्रेस उसी भूमिका में है जिस भूमिका में 2014 में भाजपा थी। उस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता भी चरम पर थी। वैसे आज भी उनकी लोकप्रियता को चुनौती देने की स्थिति में अभी भी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी नहीं है, लेकिन फिर भी भाजपा मोदी सरकार की उपलब्धियों की बजाय कांग्रेस के 55 सालों के कामकाज का ही बखान करती रहती है। भाजपा को यह समझना होगा कि यह समय कांग्रेस के कामकाज को गिनाने का नहीं बल्कि उसकी सरकार की पांच साल की श्रेष्ठतम उपलब्धियों को गिनाने का है। कहने का तात्पर्य यह है कि भाजपा यदि कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करने की बजाय मोदी सरकार की उपलब्धियों पर ही ध्यान केंद्रित करे तो चुनाव में उसकी जीत की संभावनाएं ज्यादा बढ़ सकती है।

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