अफगानिस्तान में तालिबान की फिर दस्तक

-रमेश ठाकुर-

तालिबान आतंकियों की दस्तक एक बार फिर अफगानिस्तान में सुनाई देने लगी है। करीब दो दशक से अफगान की अवाम खुली फिजा में स्वतंत्र होकर सांस ले रहा थी। बदलाव की बयार बहने लगी थी। लड़कियां बिना किसी पाबंदी के स्कूल जाने लगी थीं, महिलाएं प्रतिनिधि बनकर संसद में पहुंचने लगी थीं। लेकिन उनकी आजादी पर एक फिर से ग्रहण लगता दिखाई पड़ने लगा है। करीब उन्नीस साल पहले सत्ता से बेदखल हुई तालिबान हुकूमत की एक बार फिर वापसी के संकेत दिखाई पड़ने लगे हैं। एक वक्त था, जब तालिबान का अफगानिस्तान पर राज हुआ करता था। मगर 2001 में अमरीकी हमले के बाद तालिबान सरकार सत्ता से बाहर हो गई थी। सवाल उठता है कि इतने सालों बाद आतंकी तालिबान संगठन इतना ताकतवर कैसे हुआ? इसके पीछे कौनसी शक्तियां थीं जो उन्हें ताकत दे रही थीं। गौरतलब है कि अफगानिस्तान के नक्शे पर सबसे पहले तालिबान का जन्म नब्बे के दशक में हुआ था। तब मुल्क में भयंकर गृह युद्ध छिड़ा था। तमाम ताकतवर कमांडरों की अपनी-अपनी सेनाएं थीं। सब देश की सत्ता में हिस्सेदारी की लड़ाई लड़ रहे थे। उस दौरान सच्चाई सामने आई थी कि उन्हें पीछे से पाकिस्तान ताकत दे रहा है। उस समय तालिबान को लड़ने के लिए पाकिस्तान हथियार मुहैया करा रहा था। ऐसी ही कुछ संभावनाएं इस वक्त भी बताई जा रही हैं। तालिबान को दोबारा खड़ा करने के पीछे भारत को घेरने की पाकिस्तानी मंशा है। कारण यह है कि भारत अफगानिस्तान को पिछले कुछ साल से हर संभव सहयोग कर रहा है जो पाकिस्तान को अखर रहा है। खबरें कुछ ऐसी भी आई हैं कि तालिबान को पाकिस्तान ही नहीं, बल्कि चीन भी सहयोग कर रहा है। तालिबान एक कट्टरपंथी व चरमपंथी आतंकी संगठन है। उसकी सोच विभाजित करने वाली रही है। खून की नदियां बहाकर उसने कभी अफगानिस्तान पर कब्जा किया था। उसके कार्यकाल में महिलाओं को घरों से निकलने की आजादी नहीं थी। लड़कियों का स्कूल जाना, महिलाओं का चुनाव लड़ना बहुत दूर की बात हुआ करती थी। उनके कार्यकाल में सबसे ज्यादा जुल्म महिलाओं पर हुए। तालिबानी आतंकी किसी के घर में घुसकर महिलाओं के साथ घिनौना कृत्य करते थे। मना करने पर सरेआम गोलियों से भून दिया जाता था। तालीम हासिल करने वाली बच्चियों को सड़कों पर नंगा करके कोड़ों से मारा जाता था। जुल्म की इंतेहां पार कर दी थी। लेकिन उनकी सत्ता से बेदखली के बाद सब कुछ सामान्य हुआ। लड़कियां स्कूल जाने लगीं, महिलाएं चुनाव लड़ने लगीं, क्रिकेट भी खेलने लगीं। यूं कहें कि हर बंदिश की बेडि़यों से आजाद हो गईं थीं। लेकिन तालिबान की दोबारा दस्तक ने उनको फिर से चिंतित कर दिया है। तालिबान ने पिछले हफ्ते अपने आने की दस्तक का एलान कर चारों ओर खलबली मचा दी। तालिबान के नेता मुल्ला उमर की याद में इस ऑपरेशन का नाम ओमारी रखा गया। अफगान की मौजूदा सरकार ने इस स्थिति से लड़ने की लिए पड़ोसी देश खासकर भारत से सहसोग की उम्मीद की है। दरअसल अफगान दोबारा आंतक की मंडी नहीं बनना चाहता। उसे अब खुली फिजा में सांस लेने की आदत हो गई है। इसलिए वहां की अवाम दोबारा बंदिशों की जंजीरों में जकड़ना नहीं चाहती। तालिबान आंतकी सिर्फ अफगान के लिए ही खतरा नहीं है, बल्कि पूरे विश्व के लिए मुसीबतें खड़ी कर सकते हैं। समय रहते इनके नापाक इरादों को अगर कुचला नहीं गया तो ये आतंकी परेशानी पैदा कर सकते हैं। इधर, कट्टरपंथी सोच से ग्रस्त पाकिस्तान जैसे मुल्क जब तक इनका सहयोग करते रहेंगे, तब तक खास सफलता नहीं मिलने वाली। आतंक से लड़ने में भारी नुकसान होगा। गौरतलब है कि 11 सितंबर 2001 को अमरीका में जब अल कायदा ने हमले किए और जांच में जब ये पता चला कि इन हमलों की साजिश रचने वालों ने अफगानिस्तान में पनाह ली थी तो अमरीका ने तालिबान को चेतावनी दी कि या तो इन आतंकियों को उसके हवाले कर दें या फिर हमले झेलें। तालिबान ने बुश के फरमान को भी दरकिनार किया। इसके बाद अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने अफगानिस्तान पर हमला बोला। अपनी पूरी सेना वहां तैनात कर दी। आतंकियों के सभी ठिकानों को निशाना बनाया। लाखों आतंकी कुछ ही समय में ढेर कर दिए। हमले से शिकस्त होकर तालिबानी आतंकियों ने घुटने टेक दिए और सत्ता से अपना कब्जा वापस ले लिया। तब अफगान की अवाम अमेरिका के उस कदम से बेहद खुश हुई। उसके बाद उन्होंने राहत की सांस ली। तालिबान ने सत्ता के साथ-साथ लोगों का समर्थन भी गंवा दिया था। वह सत्ता से बेदख हो गए। अवाम ने खुद को पिंजरें से आजाद होने जैसा महसूस किया। आजादी के बाद भारत ने अफगान को आधुनिक बनाने के लिए हर संभव सहयोग किया। सहयोग का सिलसिला लगातार जारी है। लेकिन भारत का यह सहयोग कुछ कट्टपंथी लोगों को हजम नहीं हो रहा। दो साल पहले हामिद करजई को भी तालिबानियों ने भारत से सहयोग न लेने के लिए धमकी दी थी। हालांकि उन्होंने तालीबानी धमकी को ज्यादा भाव नहीं दिया। लेकिन पिछले सप्ताह आंतकी तालिबानियों ने अपनी आमद को फिर से मुल्क में दर्ज कराकर शांत फिजां में जहर घोलने का काम किया है। हालांकि अफगान की मौजूदा स्थिति और वहां के घटनाक्रम पर भारत के अलावा अमरीका की भी पैनी नजर बनी हुई है। तालिबानियों को एक बात ठीक से पता है अगर इस बार अमरीका उनपर हमलावर हुआ तो उसका अंजाम क्या होगा। तालिबान की पिछले रास्ते से चीन और पाकिस्तान भी सहयोग कर रहे हैं। इस बात की खबर इंटरपोल और तमाम मुल्कों की खुफिया एजेंसियों के पास है। भारतीय जांच एजेंसियों के पास भी इनपुट हैं। सही समय का इंतजार किया जा रहा है। तालिबान आतंकियों से सबसे ज्यादा खतरा भारत को है। क्योंकि चीन-पाकिस्तान उनको भारत के खिलाफ खड़ा कर सकते हैं। अगर तालिबान अफगान में अपनी नापाक सोच में सफल हो जाते हैं तो अगना निशाना हिंदुस्तान ही होगा। फिर भारत को घेरने के लिए तीनों मुल्क खुलकर एक साथ आ जाएंगे। लेकिन ऐसा हमारी हुकूमत होने नहीं देगी। समय रहते ही उनके मंसूबों को कुचल देगी। अफगानिस्तान पर भारत की पैनी नजर बनी हुई है। किसी भी स्थिति से मुकाबले के लिए हमारा तंत्र तैयार है।

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