व्यंग्य : इस का इलाज कराओ भाइयो

रामजस एक बार संगीत सुनने गए थे. असल में जाने का उन का जरा भी मन नहीं था, लेकिन पड़ोसियों ने ऐसा दबाव डाला कि वे टाल नहीं सके. पड़ोसियों ने कहा, टिकट भी हम ले लेंगे मगर चलो. जिंदगी में एक बार तो संगीत सुन लो. कितना बड़ा कलाकार आया है अपने गांव में. बारबार नहीं मिलते ऐसे मौके.रामजस ने बहुत कहा कि मुझे कुछ लेनादेना नहीं है शास्त्रीय संगीत से. क्या शास्त्रीय और क्या संगीत. मैं मजे में हूं. घर और खेत में ही मेरा सारा दिन गुजर जाता है. शाम को ताश की एकाध बाजी हो जाती है. आज भी तुम लोगों के इंतजार में बैठा था और पता नहीं तुम लोग कहां से ये शास्त्रीय संगीत उठा लाए. लेकिन उन की एक न चली. जाना ही पड़ा. घसीटते हुए वे गए पड़ोसियों के साथ. लेकिन उन के पड़ोसी तब हैरान हुए जब उन्होंने देखा कि संगीतज्ञ अलाप भरने लगा तो रामजस की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे. पड़ोसियों ने कहा, अरे, रामजस, हम ने तो सोचा ही नहीं था कि तुम्हें शास्त्रीय संगीत से इतना प्रेम है. हमारी आंखें गीली नहीं हुईं और तुम्हारी आंखों से टपटप आंसू गिर रहे हैं. रामजस ने कहा, शास्त्रीय संगीत का तो पता नहीं, लेकिन यह आदमी मरेगा, ऐसे ही आ आ करता हुआ मेरा बैल मर गया था. रातभर शास्त्रीय संगीत करता रहा, सुबह मर गया बेचारा. इस गायक का इलाज कराओ भाइयो, क्या बैठेबैठे आ आ सुन रहे हो. मेरे आंसू गिर रहे हैं क्योंकि मुझे खयाल आ रहा है इस बेचारे की पत्नी और बालबच्चों का.                   

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