-सुभाष चन्द्र शर्मा-
दुनिया में दो विचारधाराओं के लोग हैं। एक वह जो पूंजीवाद को मानते हैं। दूसरे, जो समाजवाद की राह पर चलते हैं। पूंजीवादी धन संग्रह में विश्वास करते हैं और खुद को पूंजी का मालिक मानते हैं, जबकि समाजवादी कहते हैं पूंजी पर सबका हक है। इन दोनों से अलग हमारी संस्कृति, शास्त्र और ऋषि कहते हैं कि यह संपत्ति मेरी नहीं है और न समाज की है। यह तो प्रसाद है और प्रसाद का हमेशा सम्मान होता है। प्रसाद हमेशा बांट कर खाया जाता है, अकेले नहीं। उसका दुरुपयोग मत करो। आपने देखा होगा कि प्रसाद का एक कण भी जमीन पर गिर जाता है तो उसे उठाकर लोग माथे से लगाते हैं।
कैपिटलिजम और सोशलिजम यानी क्रमश: पूंजीवाद और समाजवाद दोनों विचाराधाराओं में कुछ न कुछ कमियां हैं। इनसे हटकर हमारे शास्त्रों और ऋषियों ने जो व्यवस्था दी है वह भी एक विचारधारा है। यह यज्ञ की विचारधारा है। भूखे को रोटी, वस्त्रहीन को वस्त्र, गरीब मरीजों का सही ढंग से इलाज, आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों को शिक्षा, उन्हें कुपोषण से बचाने के लिए खानपान की उचित व्यवस्था, उनके बच्चों की शादी में आर्थिक रूप से सहयोग… ये सब यज्ञ के ही अलग-अलग रूप हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि यह प्रसाद है। इसमें बांटने वाले को अहंकार नहीं होता। क्योंकि वह खुशी-खुशी बांटता है। लेने वाला भी बेचारा बनकर नहीं ले रहा। वह प्रसाद पाकर खुश हो जाता है। यज्ञ की सबसे फलश्रुति यह है कि देने वाले में अहंता और लेने वाले में लघुता का भाव नहीं आता। प्रसाद पर जितना हक बांटने वाले का है, उतना ही हक पाने वाले का है।
एक व्यक्ति एक क्विंटल लड्डू भगवान को भोग लगाने के लिए बाजार से खरीद कर लाया। उस पर उसका तभी तक हक है, जब तक वह उसका मंदिर में भोग नहीं लगाता। भोग लगाने के बाद, उसमें चढ़ाने वाले का अपनत्व भाव खत्म हो जाता है। फिर वह प्रसाद हो जाता है। वह सब में बांटा जाता है।
घर में रसोई बना कर, मन में ऐसी कामना करो कि कोई भूखा आ जाए, पहले उसे खिलाऊ, फिर मैं खाऊं। यह यज्ञ की भावना है। जो सिर्फ अपने लिए ही रसोई बनाकर खाता है, उसे हमारे यहां उचित नहीं कहा गया। यज्ञ करो, मतलब भूखे को भोजन कराओ। संपत्ति का विकेंद्रीकरण करके किसी रोते के आंसू पोंछो। किसी दु:खी, दीनहीन की मदद करो। इस प्रकार से यज्ञ कर संपत्ति का सदुपयोग करो। और जो आप के पास है उसे प्रसादरूप समझकर उसका उपयोग करो। यज्ञ की इस विचारधारा से बांटने वाले के मन में शांति, आनंद और संतोष के साथ-साथ इससे समाज और राष्ट्र में एक नई क्रांति और भाईचारे की भावना का उदय होगा। मंत्रों के साथ हवन सामग्री का होम कर देना ही यज्ञ नहीं है। भूखों को रोटी और गरीबों की मदद यह सबसे बड़ा यज्ञ है।
संग्रहवृत्ति ने लोगों का तनाव बढ़ा दिया है। रातोरात आगे निकले की रेस में सब उलझे हुए हैं। आज इंसान भूल गया है कि यह जीवन क्षणभंगुर है। कब बुलावा आ जाए कुछ पता नहीं, फिर बैर क्यों? जो किसी बात पर आपसे खफा है, उसे भी गले लगाओ। एक बार हाथ बढ़ाओगे, सामने वाला अपने आप खिंचा चला आएगा। यही जीवन का यज्ञ है।
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