मानसून की बेरुखी से गहरा रही है किसानों की चिंता

खूंटी। बरसात के दिनों में जिन किसानों के चेहरे पर मुस्कान होनी चाहिए, वही चेहरे सावन की गर्मी में मुरझाते जा रहे हैं। मानसून की बेरूखी से किसानों की चिंता रोज गहराती जाती है। सावन के चार दिन गुजर जाने के बाद भी बारिश का नामोनिशान नहीं है। 
खूंटी जिले में जहां जुलाई महीने में औसत बारिश 334 मिलीमीटर होती है, वहीं इस साल जुलाई के 20 दिनों में महज 106.8 मिमी वर्षा हुई है। बारिश नहीं होने के कारण खेत वीरान पड़े हैं।

पानी की कमी से किसान अबतक खेतों में बिचड़े तक नहीं डाल सके हैं, जबकि अन्य वर्षों में जुलाई में 65 से 70 फीसदी धान की रोपनी हो जाती थी। इस साल एक प्रतिशत भी रोपनी जिले में नहीं हो सकी है। किसानों को इस बात की चिंता सता रही है कि यदि दो-चार दिनों में भरपूर मानसूनी बारिश नहीं होती है तो अकाल पड़ना तय है। किसान इस बात को लेकर चिंतित हैं कि सालभर उनका गुजारा कैसे होगा। कई किसानों ने खेती के लिए बैंकों से कर्ज लिया है लेकिन बारिश नहीं हुई तो उनके सामने बैंक कर्ज की अदायगी के साथ परिवार चलाने का संकट पैदा हो जाएगा।
इस संबंध में जिला कृषि पदाधिकारी अशोक सम्राट कहते हैं कि 2018 में भी जुलाई माह में महज 117.5 मिमी वर्षा हुई थी लेकिन अगस्त महीने में भरपूर बारिश के कारण अच्छी खेती हुई थी। उन्होंने कहा इस साल भी संभावना है कि अगस्त में अच्छी बारिश हो। उन्होंने कहा कि किसान मुख्यमंत्री किसान आर्शीवाद योजना का लाभ उठायें। किसानों को इस योजना के तहत केंद्र सरकार द्वारा छह हजार व राज्य सरकार द्वारा छह हजार रुपये प्रति एकड़ की दर से भुगतान किया जाता है। किसान अंचल कार्यालय में जाकर आवेदन दें और योजना का लाभ उठायें। 

दलहन व तिलहन की खेती करें किसान: अमरेश कुमार

मानसूनी वर्षा न होने की स्थिति में किसानों को खरीफ फसल के बदले दलहन और तिलहन की खेती करनी चाहिए। इससे किसानों को धान की बर्बादी की कुछ हद तक भरपाई हो सकती है। ये बातें आत्मा के परियोजना निदेशक अमरेश कुमार ने कहीं। उन्होंने कहा कि दलहन और तिलहन की फसल कम पानी में भी हो जाती है। किसानों को इसकी खेती के लिए कृषि विभाग द्वारा सुविधा दी जाती है। 

बारिश न होने से गहरा सकता है जल संकट


बरसात का आधा मौसम लगभग गुजर चुका है, पर नदी, तालाब और अन्य जलाशय अब भी सूखे हैं। इस क्षेत्र की तजना नदी को छोड़ दें तो अन्य सभी नदियां बरसाती हैं। इस साल सावन के महीने में कारो, छाता, बनई, चेंगरझोर सहित तमाम नदियां सूखी हैं। न तो तालाबों का जलस्तर बढ़ा है और न ही कुओं का। इसके कारण लोगों को इस बात की चिंता सता रही है कि यदि जुलाई और अगस्त महीने में भरपूर वर्षा नहीं हुई तो पूरे क्षेत्र में जल संकट गहरा सकता है।

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