सार्थक हुआ विद्यार्थी परिषद का संघर्ष, अतीत हुआ 370

रांची । जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35ए के विरोध में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से शुरू हुए संघर्ष को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनैतिक समाधान के साथ मंजिल तक पहुंचाया है। एबीवीपी ने ठीक 30 साल पहले अनुच्छेद 370 और 35ए तथा वहां के हिंदुओं के साथ हो रही जुल्म ज्यादती के खिलाफ आवाज बुलंद की थी, जिससे तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह भी सकते में आ गए थे। 

कश्मीरी पंडितों ने मजबूरी में छोड़ा कश्मीर

यह वाकया 11 सितम्बर, 1990 का है। कश्मीर घाटी में हिंदुओं की बहू, बहन और बेटियों की इज्जत लूटी जा रही थी। कश्मीरी पंडितों को अपनी सम्पत्ति और महिलाओं को छोड़कर भागने को मजबूर किया जा रहा था। लगभग चार लाख हिंदू परिवारों को इस्लामी आतंक के साये में सब कुछ छोड़कर कश्मीर से पलायन करना पड़ा। तत्कालीन मीडिया, केंद्र की वीपी सिंह सरकार और कांग्रेस पार्टी सहित पूरे विपक्ष की खामोशी सालने लगी थी। तब इस कठिन दौर में  राष्ट्रवादी छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने देश में सबसे पहले आगे आकर लोक जागरण का बीड़ा उठाया। उस समय हरेंद्र प्रताप पांडेय एबीवीपी के राष्ट्रीय महामंत्री और प्रो. रामस्नेही गुप्त राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे।बिना किसी केंद्रीय नेतृत्व की सहमति के उन्होंने अप्रैल के पहले सप्ताह में दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेस कर 11 सितम्बर, 1990 को कश्मीर मार्च की घोषणा की। लक्ष्य था आतंकवादियों और वहां की सरकार का मनोबल तोड़ने तथा हिंदुओं में रक्षा का भाव जगाने के लिए श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराना।

आतंकियों का खौफ

1989 से ही कश्मीर घाटी में हिंदुओं के साथ अत्याचार की सूचनाएं मिलने लगी थीं। बहुत तेजी से स्थितियां बदल रही थीं। 19 जनवरी 1990 का दिन सबसे कष्टप्रद साबित हुआ। उस दिन घाटी की सभी मस्जिदों के लाउडस्पीकरों से नारे दिये गये, मुझे चाहिए आजादी, आजादी-आजादी…। इसमें सबसे खतरनाक नारा कश्मीरी में दिया गया था… ‘येत बनाये पाकिस्तान, बटव बगैर बटन्यो शान।’ इसका अर्थ है हम इसे पाकिस्तान बनायेंगे। पुरुषों के बिना, महिलाओं के संग। उनकी चेतावनी थी कि अपने घर की महिलाओं को हमें देकर सभी हिंदू पुरुष यहां से चले जायें। इसके बाद हिंदू परिवार डर गये और संपत्ति छोड़कर भागने लगे। कश्मीरी पंडितों ने सबसे परिवार की महिलाओं को निकाला, फिर खुद निकले। 
उस समय की स्थिति की भयावहता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि श्रीनगर में अशोक बजाज की कारपेट की दुकान हुआ करती थी। उनकी 5-6 बेटियां थी। उनके ससुर भी साथ रहते थे। मस्जिद से महिलाओं को छोड़कर जाने के ऐलान के बाद रातोंरात अपने ससुर के साथ बेटियों को उन्होंने दिल्ली भेज दिया। नतीजा हुआ कि अगले दिन आतंकियों ने उनकी हत्या कर दुकान में आग लगा दी।  भयभीत करने वाली यही सिर्फ एक घटना नहीं थी, ऐसी अनगिनत घटनाएं रोज हो रही थीं। 

एबीवीपी प्रतिनिधिमंडल ने लिया हालात का जायजा

इसके बाद अप्रैल 1990 के पहले सप्ताह में तत्कालीन राष्ट्रीय महामंत्री हरेंद्र प्रताप के नेतृत्व में एबीवीपी का प्रतिनिधिमंडल जम्मू गया। इसमें बिनोद तावड़े (वर्तमान में महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री), महेंद्र पांडेय (वर्तमान में भाजपा केंद्रीय कार्यालय के मंत्री), बी सुरेंद्रण (वर्तमान में भारतीय मजदूर संघ के संगठन मंत्री), मिलिंद लेले आदि शामिल थे। उस समय एबीवीपी जम्मू के संगठन मंत्री जयराम ठाकुर (वर्तमान में हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री) थे। प्रतिनिधिमंडल शरणार्थी शिविर में कश्मीरी पंडित परिवारों से मिला। स्थिति देख रोंगटे खड़े हो गये। उनकी वास्तविक कहानियां जानने के बाद प्रतिनिधिमंडल दिल्ली लौटा और बगैर नेतृत्व से सलाह लिये हरेंद्र प्रताप ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर लाल चौक पर झंडा फहराने की घोषणा कर दी।

उधमपुर में 10 हजार छात्र-छात्राओं की गिरफ्तारी

उसके बाद एबीवीपी ने कश्मीर घाटी के छात्र-छात्राओं का देश भर में दौरा कराया। देश भर से परिषद कार्यकर्ताओं की टोली 9 सितंबर से ही पहुंचने लगी थी और 11 सितंबर को जम्मू से श्रीनगर के लाल चौक के लिए जोरदार रैली निकली। इसमें साढ़े दस हजार छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया लेकिन सभी को उधमपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। डिस्ट्रिक पुलिस लाइन में अस्थायी कैंप बनाया गया था। वहां शासन और प्रशासन ने खाने-पीने तक की व्यवस्था नहीं की थी। इसकी जानकारी मिलने ही उधमपुर में रहनेवाले सैन्यकर्मियों सहित स्थानीय राष्ट्रभक्त परिवारों ने मिसाल पेश कर दी। उनके घरों से जब भोजन के पैकेट पहुंचने शुरू हुए तो कार्यकर्ता देखते रह गये और अगले दिन भी उनका निवाला वही बना। 

और हवाई सेवा रद्द कर दी गई

इस बीच एबीवीपी नेतृत्व की योजना थी कि कुछ लोग हवाई जहाज से 12 सितंबर को श्रीनगर पहुंचेंगे और लाल चौक पर झंडा फहरा देंगे, लेकिन नियति को मंजूर नहीं था। तकनीकी कारणों से श्रीनगर की हवाई सेवा रद्द कर दी गयी। लैंड स्लाइडिंग के कारण सड़क मार्ग भी अवरुद्ध था। नतीजा हुआ कि परिषद की गुप्त योजना धरी रह गई। इसके बाद प्रशासन संग वार्ता हुई और सभी को रिहा कर दिया गया। फिर जम्मू से हरेंद्र प्रताप के नेतृत्व में एबीवीपी की टीम दिल्ली पहुंची और वही झंडा प्रधानमंत्री वीपी सिंह को सौंपा गया, जिसे लाल चौक पर फहराना था। इस मुलाकात में छात्राओं ने प्रधानमंत्री को चूड़ी-बिंदी देते हुए कहा था कि हिम्मत नहीं दिखा सकते तो चूड़ियां पहन लीजिए।

जब हरेंद्र प्रताप ने आतंकियों को ललकारा

पाकिस्तान टीवी और रेडियो के माध्यम से आतंकी हरेंद्र प्रताप को उड़ा देने की धमकी दे रहे थे। उधमपुर में जब जम्मू-कश्मीर सरकार ने रैली को रोक दिया तो कार्यकर्ता आक्रोशित हो गये। खासकर कश्मीरी लड़कियों का गुस्सा चरम पर था। वे रूबिया सईद और महबूबा मुफ्ती को लेकर ऐसे नारे लगाने लगीं कि सभी सकते में आ गये। उन्हें समझाना एबीवीपी नेतृत्व को भारी पड़ रहा था। इसके बाद हरेंद्र प्रताप ने कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। ललकारते हुए कहा, अरे आतंकियों तुमने मां का दूध पीया है तो हमने भी डिब्बे का दूध नहीं पीया। सामने आओ, मां भारती के हजारों बेटे-बेटियां आ रहे हैं लाल चौक। इतना सुनते ही कार्यकर्ताओं की तालियों की गड़गड़ाहट से पूरी घाटी गूंट उठी। हरेंद्र प्रताप कहते हैं, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का सपना साकार हुआ है। कश्मीर अब भारत का अभिन्न अंग हुआ है, पहले तो सिर्फ कहने के लिए था। हिंदुओं के साथ अन्याय हुआ था। भारत के इतिहास में सबसे बड़ा पाप 1990 में कश्मीर घाटी में हुआ था, अब न्याय मिला है। 

बलिदानी जत्था में पलामू के अनूप कुमार लाल ने पहला नाम लिखाया था


तत्कालीन बिहार प्रदेश कार्यसमिति सदस्य मनोज कुमार सिंह, जिला प्रमुख रामानुज पांडेय, नगर प्रमुख शिवपूजन पाठक (अब तीनों भाजपा नेता), राजेश पाठक बताते हैं कि रैली को लीड करने के लिए बलिदानी जत्था बनना था। हरेंद्र पांडेय ने कहा कि बलिदानी जत्था में सबसे आगे बिहार के कार्यकर्ता रहेंगे। इस पर सबसे पहले हिम्मत दिखायी एकीकृत बिहार के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य अनूप कुमार लाल (अब झारखंड विधानसभा में डिप्टी सेक्रेटरी) ने। आगे आते हुए कहा, पहला नाम मेरा लिखा जाये। फिर तो लाइन लग गई।

कश्मीर मार्च का दूरगामी असर पड़ाः प्रभात सुमन


रैली नियंत्रक प्रभात सुमन (वर्तमान में पत्रकार) बताते हैं कि 8 सितंबर को पलामू के 28 कार्यकर्त्ताओं को विदा करने डालटनगंज रेलवे स्टेशन पर प्रो. केके मिश्र, प्रो. एससी मिश्रा, प्रो. बीआर सहाय, प्रो. एलकेएन शाहदेव, अश्विनी मिश्र, श्यामबिहारी राय के साथ ही बड़ी संख्या में कार्यकर्ता मौजूद थे। जब चाची (प्रो. कमला कांत मिश्र की पत्नी श्रीमती सरस्वती मिश्र) ने हमलोगों तिलक लगाया तो पूरा प्लेटफॉर्म जहां हुए बलिदान मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है के नारों से गूंज उठा था। सुमन कहते हैं, भले ही हमलोग लाल चौक पर तिरंगा नहीं फहरा पाए, पर इसका दूरगामी असर पड़ा। आज अनुच्छेद 370 अतीत हो गया और वर्षों का संघर्ष सफल।

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