अयोध्या पर सुप्रीम फैसला: जमीन पर रामलला का मालिकाना हक, मस्जिद के लिए अलग जगह

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा- विवादित भूमि का फिलहाल केंद्र सरकार अधिग्रहण करे
  • केंद्र सरकार तीन माह में ट्रस्ट बनाकर मंदिर निर्माण के लिए उसे जमीन दे
  • मुसलमानों को अयोध्या में ही कहीं और 5 एकड़ जगह दी जाए

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मत फैसले में अयोध्या की विवादित भूमि पर मंदिर बनाने का आदेश दिया है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने मुसलमानों को वैकल्पिक स्थान पर पांच एकड़ भूमि देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि विवादित भूमि फिलहाल केंद्र सरकार अधिग्रहीत करेगी। केंद्र सरकार तीन महीने के अंदर ट्रस्ट का गठन कर उस भूमि को मंदिर निर्माण के लिए देगी। 1045 पन्नों के इस फैसले में मुख्य फैसला 926 पन्नों का है। एक जज ने अलग से 116 पेज में अपनी अलग से राय दर्ज कराई है। इन जज का नाम नहीं दिया गया है। इन्होंने अपने नोट में लिखा है कि तीन गुंबद वाली जगह ही राम का जन्मस्थान है और रामजन्म स्थान पर ही बाबरी मस्जिद का निर्माण हुआ। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार अधिग्रहीत भूमि के बाकी बचे हिस्से के प्रबंधन और उसके विकास के लिए प्रावधान तय करने के लिए स्वतंत्र होगी। कोर्ट ने कहा कि केद्र सरकार मंदिर के लिए ट्रस्ट को भूमि देने के साथ ही 5 एकड़ भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड को सौंपेगी। सुन्नी वक्फ बोर्ड की दी जानेवाली भूमि या तो अयोध्या एक्ट 1993 के तहत केंद्र सरकार द्वारा अधिग्रहीत भूमि से दी जाएगी या राज्य सरकार की ओर से अयोध्या मे किसी प्रमुख स्थान पर दी जाएगी। कोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वो तीन महीने के अंदर संबंधित पक्षों को भूमि आवंटित करने की प्रक्रिया में आपस में सलाह मशविरा करेंगे। कोर्ट ने कहा कि भूमि के आवंटन के बाद सुन्नी वक्फ बोर्ड मस्जिद निर्माण के लिए जरूरी कदम उठाने के लिए स्वतंत्र होगी। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार ट्रस्ट का गठन करते समय जैसा जरूरी समझेगी उसके मुताबिक निर्मोही अखाड़ा को भी उचित प्रतिनिधित्व देगी। कोर्ट ने गोपाल सिंह विशारद को पूजा करने के अधिकार को सही मानते हुए कहा कि यह व्यवस्थित रूप से पूजा कराने को लेकर स्थानीय प्रशासन के आदेशों से निर्देशित होगा। कोर्ट ने कहा कि ये सही नहीं है कि वो धर्मशास्त्र पर विचार करे। संविधान का आधार धर्मनिरपेक्षता है। कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े की अपील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि रामजन्मभूमि न्यायिक व्यक्ति नहीं है लेकिन कोर्ट ने भगवान राम को न्यायिक व्यक्ति माना। कोर्ट ने कहा कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट सभी धर्मों के लोगों के हितों की रक्षा के लिए है। कोर्ट ने कहा कि बाबर के शासनकाल में मीर बाकी ने मस्जिद बनवाई थी। कोर्ट ने कहा कि एएसआई के निष्कर्षों पर संदेह नहीं किया जा सकता है। एएसआई के निष्कर्षों से ये साफ नहीं है कि हिंदू मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी। भूमि पर स्वामित्व एएसआई के निष्कर्षों के आधार पर नहीं हो सकता है बल्कि तय कानूनी प्रावधानों के मुताबिक होता है। कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि नजूल की भूमि थी। कोर्ट ने कहा कि यह मान्यता कि वहां भगवान राम का जन्म हुआ, वह अविवादित है। इस बात के कोई साक्ष्य नहीं हैं कि ब्रिटिशों के आने के पहले राम चबूतरा और सीता की रसोई की पूजा होती थी। ट्रैवलर और गजेटियर के आधार पर भूमि के स्वामित्व का फैसला नहीं हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि मस्जिद को मुस्लिमों ने छोड़ा नहीं था। मुस्लिम अंदर नमाज पढ़ते थे वहीं हिन्दू बाहर नमाज पढ़ते थे। मुस्लिमों को नमाज पढ़ने में बाधाएं आती थीं लेकिन उसके बावजूद वे अंदर जाकर नमाज पढ़ते थे, जिसका मतलब है कि उन्होंने मस्जिद छोड़ा नहीं था। इसी के आधार पर कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को पांच एकड़ भूमि वैकल्पिक स्थान पर देने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात को नोट किया है कि 1992 में कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए मस्जिद तोड़ी गई थी। कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड की अपील को खारिज करते हुए कहा कि वो अपना प्रतिकूल कब्जे का दावा साबित नहीं कर सका है। कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े को भूमि देने का फैसला गलत था। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच में जस्टिस एसए बोब्डे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अब्दुल नजीर, और जस्टिस अशोक भूषण शामिल थे। फैसला सुनाने के बाद आज चीफ जस्टिस इस बेंच के साथी जजों के साथ रात में लंच करेंगे। पिछले 6 अगस्त से चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने सुनवाई शुरू की थी। 40 दिनों तक चलने वाली ये सुनवाई 16 अक्टूबर को खत्म हुई थी।

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