नई दिल्ली। आम्रपाली के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यूनिटेक के अधूरे प्रोजेक्ट्स के निर्माण की जिम्मेदारी नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कंपनी (एनबीसीसी) को देने के संकेत दिए। कोर्ट ने कहा कि वह इसके बारे में यूनिटेक के फ्लैट खरीददारों का रुख जानने के बाद ही कोई फैसला लेगा।
दरअसल सोमवार को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि यूनिटेक के अधूरे प्रोजेक्ट्स के निर्माण का काम एनबीसीसी को दे देना चाहिए। केंद्र सरकार ने कोर्ट से कहा कि वो अधूरे प्रोजेक्ट्स के निर्माण कार्य की निगरानी के लिए हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज को नियुक्त करे। केंद्र सरकार ने अधूरे प्रोजेक्ट्स को तय समय में पूरा करने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की, ताकि फ्लैट खरीददारों को कब्जा मिल सके।
पिछली 9 मई को कोर्ट की ओर से नियुक्त फोरेंसिक ऑडिटर्स को सहयोग नहीं करने पर कोर्ट ने यूनिटेक के एमडी संजय चन्द्रा और भाई अजय चन्द्रा को तिहाड़ जेल में मिलने वाली सभी सुविधाओं पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने तिहाड़ जेल प्रशासन को निर्देश दिया था कि दोनों के साथ एक सामान्य कैदी की तरह पेश आया जाए।
सुनवाई के दौरान फोरेंसिक ऑडिटर्स ने कोर्ट को बताया था कि युनिटेक के अधिकारी उन्हें सहयोग नहीं कर रहे हैं। वे डिजिटल साक्ष्य मुहैया नहीं करा रहे हैं। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वे केंद्र सरकार को युनिटेक समेत उसकी 48 सब्सिडियरी कंपनियों का प्रबंधन अपने हाथ में लेने के लिए कह सकते हैं।
पिछली 23 जनवरी को कोर्ट ने दोनों की ज़मानत अर्ज़ी को खारिज कर दिया था। दोनों पिछले साल 9 अगस्त से जेल में बंद हैं। कोर्ट ने ज़मानत देने के लिए 750 करोड़ रुपये जमा करने को कहा था। 7 दिसंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने यूनिटेक का फोरेंसिक ऑडिट करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि फ़ोरेंसिक आडिट होने तक यूनिटेक के प्रमोटर संजय चंद्रा को ज़मानत नहीं मिलेगी। कोर्ट ने दो ऑडिटर नियुक्त करने का आदेश दिये थे। कोर्ट ने इन ऑडिटरों को 2006 से यूनिटेक की 74 कंपनियों व उनकी सहायक कंपनियों के खातों का ऑडिट करने का आदेश दिया था।
19 सितंबर 2018 को कोर्ट ने यूनिटेक के संजय चंद्रा और अजय चंद्रा की कस्टडी पेरोल की याचिका खारिज कर दी थी। उसके पहले 11 सितंबर 2018 को भी सुप्रीम कोर्ट ने दोनों को कोई भी राहत देने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि पहले पैसा लाओ उसके बाद हम इस पर विचार करेंगे।
21 अगस्त 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अपनी तरफ से नियुक्त कमिटी को युनिटेक के निदेशकों की ऐसी संपत्ति नीलाम करने को कहा जिस पर कोई कानूनी विवाद नहीं है।
16 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने यूनिटेक की चेन्नई स्थित 12 एकड़ की जमीन को बेचने की इजाजत दे दी थी। उसके पहले 5 जुलाई 2018 को कोर्ट ने यूनिटेक की तीन संपत्तियों को नीलाम करने का आदेश दिया था।
9 अप्रैल 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने यूनिटेक की संपत्तियों को बेचने के लिए सार्वजनिक सूचना आमंत्रित करने का निर्देश दिया था।उसी रोज यूनिटेक ने बिना कर्ज वाली अपनी संपत्तियों की लिस्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी थी। कोर्ट ने यूनिटेक पावर ट्रांसमिशन कंपनी को शपूरजी पालोनी ग्रुप के हाथों बेचने की अनुमति दे दी थी।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने 30 अक्टूबर 2017 को यूनिटेक को आदेश दिया था कि वो 750 करोड़ दिसंबर 2017 तक जमा करें, लेकिन यूनिटेक ने ये रकम जमा नहीं किया। 13 दिसंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) द्वारा युनिटेक को केंद्र सरकार द्वारा टेकओवर करने के आदेश देने के फैसले पर रोक लगा दी। केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने माफी मांगते हुए कहा था कि जब सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित है तो उन्हें एनसीएलटी में नहीं जाना चाहिए था।
सुप्रीम कोर्ट ने एनसीएलटी के आदेश पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और हमारे आदेश का पालन करना चाहिए था। कोर्ट ने सरकार द्वारा इस मामले पर एनसीएलटी जाने के तरीके पर भी आपत्ति जताई थी। दरअसल कंपनी मामलों के मंत्रालय ने युनिटेक के प्रबंधन को अपने हाथों में लेने के लिए एनसीएलटी में अर्जी दायर की थी। मंत्रालय ने इसके लिए कंपनी पर कुप्रबंधन एवं धन के हेरफेर का आरोप लगाया है।
8 दिसंबर 2017 को एनसीएलटी ने यूनिटेक के 10 निदेशकों को निलंबित करते हुए कंपनी बोर्ड में सरकार को अपने निदेशक नियुक्त करने की अनुमति दे दी। एनसीएलटी के इसी फैसले के खिलाफ युनिटेक ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
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