-कर्नल मनीष धीमान-
पिछले सप्ताह भारतीय सेना के चार सैनिक और दो सिविलयन पोर्टर सियाचिन में आए हिमस्खलन से बर्फ में दब कर शहीद हो गए। हिमस्खलन व अत्यधिक ठंड के बावजूद यहां सैनिक डटे रहते हैं। सियाचिन दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्रों में से एक है। करीब 24,000 फीट की ऊंचाई एवं -55 से -60 डिग्री तापमान वाला सियाचिन भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए स्ट्रैटेजिक तौर पर बहुत ही महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया से अलग करने वाला यह बर्फीला पहाड़ भारत के लिए इसलिए भी जरूरी है कि यहां पर सालतोरो रिज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और चाइना के बीच के डायरेक्ट लिंक को तोड़ती है और इन दोनों देशों को किसी भी तरह की मिलिट्री डिवेलपमेंट करने से रोकती है। सियाचिन भारत के लिए एक ऐसी एडवांटेज लोकेशन है जहां से भारत, गिलगित और बालटिस्तान के रीजन में अंदर तक नजर रख सकता है, अगर भारत यहां पर अपना कब्जा ढीला कर देता है और पाकिस्तान इस जगह पर अपना प्रभाव बढ़ा लेता है, तो दक्षिण से पाकिस्तान और पूर्व में अक्साई चिन की तरफ से चीन मिल कर भारत पर दबाव बना सकते हैं। इसीलिए भारत का सियाचिन पर प्रहरी बनकर रहना अति आवश्यक है। सियाचिन से भारत चाइना की हर एक्टिविटी पर भी नजर रखता है जिस तरह से इस क्षेत्र में चाइना ने अपनी गतिविधियां बढ़ाई हैं और हर मौसम के लिए रेल और रोड की सुविधा तैयार कर दी है, अगर इसके साथ पाकिस्तान भी अपना प्रभाव काराकोरम पास वाले क्षेत्र बढ़ा लेता है तो चाइना और पाकिस्तान इस क्षेत्र में बहुत ही मजबूत हो जाएंगे और यह भारत के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बन जाएगा। भारत और पाकिस्तान को इसकी स्ट्रैजिकल इंपार्टेंस का अनुमान तो शायद पहले हो गया होगा पर 1984 में दोनों देशों ने इस पर फौजी बेस बनाने का निर्णय लिया। इस क्षेत्र की ऊंचाई और ठंड के बारे में सोचने मात्र से ही जब शरीर सहर उठता है, जहां पर रहना ही एक चुनौती है, इस क्षेत्र में हिमस्खलन, बर्फीली हवाएं और खतरनाक एल्टीट्यूड से होने वाली बीमारियां जैसे फॉरस्ट बाइट, यादाश्त खोना, मानसिक संतुलन बिगड़ना, अंधापन आदि से अमूमन सैनिक लड़ते रहते हैं। इन सभी मुश्किलों की वजह से 1984 से भारत ने करीब 900 और पाकिस्तान ने करीब 2000 सैनिकों को खोया है, पर जब देश रक्षा की बात आती है तो यह सब ज्यादा मायने नहीं रखता।
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