- रमेश ठाकुर
कारोबारी क्षेत्रों में विगत कुछ समय से आर्थिक सुस्ती की खबरें सुनने को मिल रही थीं। अब उन खबरों पर मुहर लग गयी है। एक बड़ी बिस्किट निर्माण कंपनी और ऑटो कंपनी ने मंदी के चलते अपने हजारों वर्करों को नौकरी से निकालने का एलान कर दिया है। कंपनियों के इन पीड़ादायक निर्णयों ने एक बात साफ कर दी है कि हिंदुस्तान में मंदी ने आहिस्ता-आहिस्ता दस्तक देनी शुरू कर दी है। ऑटो, टेक्सटाइल के बाद अब रिटेल सेक्टर में भी लोगों की नौकरियां खतरे में पड़ती दिखाई दे रही हैं। कई औद्योगिक घरानों ने जब से अपने यहां से कर्मचारियों को निकालने का एलान किया है, तभी से चारों ओर हंगामा है। ऑटोमोबाइल सेक्टर की सबसे अग्रणी कंपनी टाटा मोटर्स और बिस्किट बनाने वाली सबसे पुरानी कंपनी पारले-जी ने अपने हजारों कर्मचारियों की छंटनी करने के लिए बकायदा लिखित फरमान जारी किया है। दोनों कंपनियों के इस आघाती कदम के बाद दूसरी कंपनियों में काम करने वाले लोगों की रोजी-रोटी पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं। गौरतलब है मंदी की आहट हिंदुस्तान में कुछ समय से सुनाई देने लगी थी। इसको लेकर मीडिया में लगातार खबरें आ रही थीं। पर, केंद्र व राज्य सरकारें उन खबरों को नकार रही थीं, लेकिन जब से ऑटोमोबाइल और बिस्किट कंपनी ने मुहर लगाई है, स्थिति पूरी तरह से साफ हो गई। हालांकि इस समस्या को लेकर केंद्र सरकार चिंतित है। अपने स्तर से स्थिति को नियंत्रण में करने की कोशिशें लगातार कर रही है। लेकिन यह इतना आसान नहीं है। औद्योगिक घरानों की समस्याएं कुछ और ही हैं। उनकी समस्याएं सीधे तौर पर केंद्र सरकार से जुड़ी हैं। उनकी मानें तो जीएसटी लगने के बाद उनके धंधों में भारी कमी आई है। बिस्किट बनाने वाली कंपनी पारले-जी ने केंद्र सरकार से सौ रुपये प्रति किलो या उससे कम कीमत वाले बिस्किट पर जीएसटी घटाने की मांग की थी। सरकार ने इससे इनकार कर दिया था। बिस्किट कंपनी पारले-जी ने यह बोल्ड फैसला क्यों लिया, इस थ्योरी को भी समझना जरूरी है। दरअसल, जीएसटी लगने से पहले सौ रुपये प्रतिकिलो से कम कीमत वाले सभी तरह के बिस्किट पर करीब 12 प्रतिशत टैक्स सरकार द्वारा लगाया जाता था। उस टैक्स को कंपनी खुशी-खुशी दे देती थी। लेकिन सरकार ने दो साल पहले जब जीएसटी लागू किया तो दिक्कतें खड़ी हो गईं। जीएसटी के तहत सभी बिस्किट को 18 फीसदी स्लैब में डाला गया। जिसका कंपनी ने पुरजोर विरोध भी किया लेकिन यह बेनतीजा साबित हुआ। जीएसटी लगने के बाद कंपनी को मजबूरन बिस्किटों के दामों को बढ़ाना पड़ा। नतीजा यह निकला, कुछ ही समय में बिस्किटों की बिक्री में भारी गिरावट आ गई है। बढ़े दामों के चलते लोगों ने बिस्किट से किनारा करना शुरू कर लिया। जिसका सीधा असर बिस्किट निर्माण पर पड़ा। तभी कंपनी को घाटे से उबरने के लिए कर्मचारियों की छंटनी का फैसला करना पड़ा। करीब नब्बे साल पुरानी बिस्किट कंपनी पारले-जी के दर्जन भर प्लांट अपने और 125 कॉन्ट्रैक्ट वाले हैं, जिनमें लाख से ज्यादा कर्मचारियों के घरों का चूल्हा जलता है। कंपनी का सालाना टर्नओवर 9,940 करोड़ के आसपास है लेकिन इस वक्त धरातल पर पहुंच गई है। कमोबेश, कुछ इस तरह की ही समस्याओं का सामना ऑटो और टेक्सटाइल कंपनियां कर रही हैं। जमशेदपुर में टाटा मोटर्स कंपनी का बड़ा प्लांट है। प्लांट में हजारों की संख्या में कर्मचारी-मजदूर काम करते हैं लेकिन मंदी की आहट के चलते कर्मचारियों में नौकरी जाने का भय बैठा हुआ है। कंपनी ने बीते दिनों एक ब्लॉक क्लोजर की घोषणा की, जिसमें मजदूरों का आधा वेतन काटा गया। उसके दो सप्ताह बाद हजारों को निकालने का फरमान जारी किया गया। कंपनी को बार-बार क्लोजर क्यों लेना पड़ रहा है, उसकी मुख्य वजह मंदी बताई गई है। कंपनी प्रत्येक माह पंद्रह से बीस हजार गाड़ियों का निर्माण करती थी लेकिन पिछले तीन महीनों में उन गाड़ियों की बिक्री नहीं हुई। इसके बाद कंपनी को गाड़ियों का निर्माण तत्काल प्रभाव के साथ रोकना पड़ा। इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि जब बड़ी कंपनियां मौजूदा स्थिति को नहीं झेल पा रही हैं तो मंझोले धंधों का क्या हाल होगा? यही कारण है कि इस अघोषित आर्थिक मंदी के दौर ने धीरे-धीरे दूसरे उद्योग-धंधों को भी अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया है। वस्तुओं के उत्पादन से खरीददारों ने दूरी बनानी शुरू कर दी है। इस कारण कई धंधे बंद होने की कगार पर पहुंच गए हैं। ऑटो कंपनियों, बिस्किट और अब रिटेल कंपनियों में छाई उदासी को भांपते हुए केंद्र सरकार ने अपने स्तर से समीक्षा करनी शुरू की है। 19 अगस्त को नीति आयोग और आरबीआई के उच्चाधिकारियों के बीच लंबी मंत्रणा हुई। मंत्रणा होनी भी चाहिए, क्योंकि अगर स्थिति कुछ महीनों तक ऐसी ही बनी रही तो, सरकार के लिए इसपर नियंत्रण बड़ा मुश्किल होगा। अगस्त महीने की शुरुआत में जब चालू वित्त वर्ष की तीसरी द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा की गई थी, तब मौद्रिक नीति समिति यानी एमपीसी में शामिल रिजर्व बैंक गवर्नर के दो उच्चाधिकारियों ने रेपो दर में 0.35 प्रतिशत कटौती का पक्ष लिया था। जबकि छह सदस्यीय समिति में दो अन्य स्वतंत्र सदस्यों ने 0.25 प्रतिशत कटौती के पक्ष में मत दिया था। मतलब साफ है कि उनको मौजूदा स्थिति का अंदाजा था लेकिन कुछ बातें बाहर नहीं आ पाती। मंदी की आहट को सरकार भी महसूस कर रही है लेकिन वह इस वक्त जम्मू-कश्मीर के हालात पर ज्यादा फोकस कर रही है। उम्मीद है इस स्थिति पर भी जल्द ही काबू पाया जाएगा।
This post has already been read 8414 times!