नागरिकता कानून (सीएए) का विरोध सिर्फ जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि राष्ट्रव्यापी बनता जा रहा है। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज मुंबई, आईआईटी मुंबई, आईआईएम बंगलुरू और अहमदाबाद, आईआईटी मद्रास, मौलाना आजाद यूनिवर्सिटी हैदराबाद, कोलकाता की जादवपुर यूनिवर्सिटी, लखनऊ के दारुल उलूम नदवातुल कालेज, वाराणसी की बीएचयू, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, मऊ की हिंसा से लेकर केरल में मुख्यमंत्री विजयन और प्रतिपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला के सत्याग्रह तक एक ही भाव साझा है कि सीएए असंवैधानिक है, लिहाजा इसे वापस लिया जाए। इन शिक्षण संस्थानों में सिर्फ ‘मुस्लिमवाद’ ही नहीं है कि कानून का सांप्रदायिक आधार पर विरोध किया जा रहा हो। इन संस्थानों में 50 फीसदी से ज्यादा छात्र गैर-मुस्लिम हैं और छात्र संघों के अध्यक्ष भी गैर-मुस्लिम चेहरे चुने जाते रहे हैं। हालांकि अब ज्यादातर विश्वविद्यालयों में छात्र संघ नहीं हैं। ‘मुस्लिमवाद’ का तर्क इसलिए देना पड़ा, क्योंकि समूचे विपक्ष ने इसी आधार पर कानून की व्याख्या और उसका विरोध किया है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय में याचिका ‘मुस्लिम लीग’ ने भी दी है। यह आधार इसलिए चुनना पड़ा, क्योंकि गृहमंत्री अमित शाह ने ट्वीट कर कहा है कि कुछ पार्टियां राजनीतिक फायदे के लिए अफवाहें फैला रही हैं और हिंसा भड़का रही हैं। बाद में गृहमंत्री ने कांग्रेस, तृणमूल और ‘आप’ के नाम भी लिए। दूसरी तरफ कांग्रेस की पूरी पैरोकारी ‘मुस्लिमवादी’ रही है। उनकी दलीलें और विरोध-प्रदर्शन जामिया पर ही केंद्रित हो गए हैं। इसी मुद्दे पर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने करीब दो घंटे तक इंडिया गेट पर धरना भी दिया। उनके साथ गुलाम नबी, एके एंटनी सरीखे वरिष्ठ कांग्रेस नेता भी मौजूद थे। धधकती आग ऐसी है कि सोमवार को भी जामिया नगर में युवाओं ने हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में भी कमीज उतार कर विरोध प्रदर्शन किया। सबसे बड़े और भाजपा शासित प्रदेश उत्तर प्रदेश में हालात ऐसे हैं कि पूरे राज्य में धारा 144 लागू करनी पड़ी और इंटरनेट भी ठप करने पड़े। मुख्य सचिव ने सभी जिलों के डीएम और एसपी को अगले सात दिनों तक, अपने मुख्यालय पर ही डटे रहने के आदेश दिए हैं। कोलकाता में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी सड़क पर उतर आईं और दो दिन के तृणमूल कांग्रेस के रेड रोड से गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर के आवास तक पैदल मार्च का नेतृत्व किया। उन्होंने दोहराया कि जब तक मैं जिंदा हूं, तब तक एनआरसी अथवा सीएए कभी लागू नहीं किए जाएंगे। बेशक केंद्र मेरी सरकार को बर्खास्त कर दे अथवा मुझे सलाखों के पीछे डाल दे, लेकिन ये काले कानून लागू नहीं होंगे। बहरहाल हिंसा और विरोध की खबरें देश भर से आ रही हैं, लिहाजा प्रधानमंत्री मोदी को खामोशी तोड़ कर बोलना पड़ा है। उन्होंने ट्वीट कर देश को आश्वस्त करने की कोशिश की है कि यह कानून किसी भी धर्म के भारतीय नागरिक को प्रभावित नहीं करता। इससे चिंतित होने की जरूरत नहीं है। यह कानून केवल उन लोगों के लिए है, जिन्होंने विदेशों में कई सालों तक प्रताड़ना झेली है और उनके पास बसने के लिए भारत के अलावा कोई और जगह नहीं थी। यह कानून करुणा और भाईचारे की भारत की सदियों पुरानी संस्कृति की व्याख्या भी करता है। प्रधानमंत्री ने हिंसक प्रदर्शनों को दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद करार दिया है। बहरहाल प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के बयानों के बावजूद छात्रों का उग्र आंदोलन धीरे-धीरे राष्ट्रीय आकार ग्रहण कर रहा है। युवाओं की लामबंदी को कोई भी सरकार दमन और दबाव से नहीं रोक सकती। युवाओं का आंदोलन कोई सामान्य संकेत नहीं है। मंगलवार को विपक्षी दल राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिले और दूसरी तरफ सर्वोच्च अदालत में भी सुनवाई शुरू होने के संकेत हैं, लेकिन प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एस.ए. बोबडे का आग्रह है कि मौजूदा हिंसा थमनी चाहिए। उसके बिना शीर्ष अदालत यह मामला नहीं सुन सकती। बेशक हालात कुछ नरम होने लगें, लेकिन यहां से जो विरोध शुरू हुआ है, कमोबेश विपक्ष अपने-अपने स्तर पर उसे गरमाए रखना चाहेगा। इस अंधी दौड़ में पूर्वोत्तर के हालात पिछड़ गए हैं कि उनकी स्थिति कैसी है?
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