नई दिल्ली। बिहार में एकबार फिर बाढ़ ने रौद्र रूप दिखाया है। नेपाल के जल अधिग्रहण क्षेत्र और उत्तर बिहार के अधिकतर जिलों में पिछले एक सप्ताह से हो रही बारिश से बाढ़ ने विकाराल रूप ले लिया है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार उत्तर बिहार के 12 जिलों के 92 ब्लॉक के तहत 831 पंचायतों में 46.83 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं। इस बाढ़ में मरने वालों की सख्या गुरुवार तक 70 पहुंच गई है। त्रासदी यह है कि बाढ़ तक़रीबन हर साल बिहार में तबाही मचाता रहा है लेकिन इसका कोई स्थायी समाधान नहीं तलाशा जा सका है।
बिहार में बाढ़ की तबाही के बीच बाढ़ प्रभावित 12 जिलों में कुल 137 राहत शिविर चलाए जा रहे हैं। इन राहत शिविरों में 1,14,721 लोग शरण लिए हुए हैं। उनके भोजन की व्यवस्था के लिए 1,116 सामुदायिक रसोइयां चलाई जा रही हैं। राहत एवं बचाव कार्य के लिए एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की कुल 26 टीमें लगाई गई हैं और 125 मोटरबोट का इस्तेमाल किया जा रहा है।
ख़तरे के निशान से ऊपर
केंद्रीय जल आयोग से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, बिहार की कई नदियां गंडक, बूढी गंडक, बागमती, अधवारा समूह, कमला बलान, कोसी, महानंदा और परमान नदी विभिन्न स्थानों पर गुरुवार सुबह खतरे के निशान से ऊपर बह रही थी। बाढ़ से सबसे ज्यादा खराब स्थिति सीतामढ़ी, शिवहर और मुजफ्फरपुर जिले की है। इन जिलों में 11 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं, वहीं अररिया में पांच लाख लोगों पर बाढ़ का सीधा असर पड़ा है।
बाढ़ पीड़ित क्षेत्रों के हर परिवार को मिलेंगे 6000 रुपये : सीएम
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि सरकार के खजाने पर पहला हक आपदा पीड़ितों का है। बाढ़ पीड़ितों को राहत पहुंचाने के लिए जितने धन की जरूरत होगी, हम इंतजाम करेंगे। यह फ्लैश फ्लड जैसी स्थिति है। पूरी तरह कुदरती मामला है, इसमें कोई कुछ कर भी नहीं सकता है।19 जुलाई से बाढ़ पीड़ित इलाके में प्रति परिवार 6000 रुपये का पब्लिक फाइनेंस मैनेजमेंट सिस्टम (पीएफएमएस) के जरिए भुगतान शुरू होगा। इससे राशि के अंतरण में बैंक पर कोई निर्भरता नहीं रहेगी।
उत्तर बिहार में बाढ़ की मुख्य वजह
बिहार में बाढ़ की तबाही लाने वाली अधिकतर नदियां नेपाल से आती हैं। पहाड़ी इलाका होने की वजह से नेपाल में पानी नहीं टिकता। नेपाल में पिछले कई सालों से खेती की ज़मीन के लिए जंगल काट दिए गए हैं। जंगल मिट्टी को अपनी जड़ों से पकड़कर रखते हैं और बाढ़ के तेज बहाव में भी कटाव कम होता है। लेकिन जंगल के कटने से मिट्टी का कटाव बढ़ गया है।
भारत-नेपाल के बीच संधि
नेपाल में कोसी नदी पर बांध बना है। ये बांध भारत और नेपाल की सीमा पर है, जिसे 1956 में बनाया गया था। इस बांध को लेकर भारत और नेपाल के बीच संधि है। संधि के तहत अगर नेपाल में कोसी नदी में पानी ज्यादा हो जाता है तो नेपाल बांध के गेट खोल देता है और इतना पानी भारत की ओर बहा देता है, जिससे बांध को नुकसान न हो।
उत्तर बिहार में तबाही मचाने वाली नदियां
बिहार में शोक के नाम से विख्यात कोसी नदी, सुपौल से बिहार में दाखिल होती है। वहां से मधेपुरा, अररिया, पूर्णिया, सहरसा, खगड़िया, मुंगेर होते हुए कटिहार में गंगा में मिल जाती है। बाघमती नेपाल की राजधानी काठमांडू से निकलकर बिहार के सीतामढ़ी के ढेंग होकर उत्तर बिहार में प्रवेश करती है। वहां से शिवहर, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, समस्तीपुर होते हुए बेगुसराय में आकर बूढ़ी गंडक में मिल जाती है।
नेपाल से ही निकलने वाली कारछा नदी सीतामढ़ी से दाखिल होती है। वहां से दरभंगा, समस्तीपुर, सहरसा, खगड़िया होते हुए मधेपुरा में कोसी में मिल जाती है। नेपाल से निकलने वाली नेपाल की कोनकाई नदी किशनगंज के ज़रिये बिहार में आती है और कटिहार होते हुए पश्चिम बंगाल चली जाती है। नेपाल की कमला नदी मधुबनी में आती है जो दरंभगा और सहरसा होते हुए मधेपुरा में कोसी में आकर मिल जाती है। नेपाल से ही निकलने वाली गंडक वाल्मिकीनगर आती है और हाजीपुर-सोनपुर की सीमा बनाते हुए गंगा में मिल जाती है।
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