बंदर की समझदारी (बाल कहानी)

दूर नदी के किनारे एक बड़ा सा जामुन का पेड़ हुआ करता था। उसी पेड़ पर एक नटखट बंदर भी रहता था। उसी नदी में नीचे एक मगरमच्छि अपनी बीवी के साथ रहता था। धीरे धीरे दोनों में दोस्ती होती चली गई।

दोनों में मिलना जुलना होने लगा। अब भई बंदर था बड़ा ही सयाना वो अपनी दोस्ती निभाने के लिए कुछ भी कर सकता था। जिस पेड़ पर नन्दू रहता था वो जामुन का पेड़ था। उसने सोचा क्यों न बिल्लू को भी जामुनों का स्वाद चखाया जाएं।

नन्दू ने बिल्लू को कहा लो भई तुम मेरे दोस्त हो और तुम क्यों जामुनों का स्वाद चखने से पीछे रहो लो खाओं मीठे जामुन। उस दिन के बाद से नन्दू रोज पेड़ के ऊपर से मीठे रसीले जामुन गिराता और बिल्लू उन्हें चटकारें लेकर खाता।

ये सिलसिला यूं ही काफी दिनों तक चलता रहा। एक दिन नन्दू ने बिल्लू से कहा जरा भाभी को भी जामून का स्वाद चखाओं। नन्दू के कहने पर बिल्लू कुछ जामुन अपनी बीवी के लिए ले गया।

घर ले जाकर बिल्लू ने वो जामुन अपनी पत्नी को खाने के लिए दिए इतने मीठे रसीले जामुन खाने के बाद उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने मन ही मन सोचा कि जब जामुन इतने मीठे हैं तो इन जामुनों को रोज खाने वाले बंदर का कलेजा कितना मीठा होगा?

उसने मगरमच्छे से कहा कि तुम अपने दोस्तन बंदर को घर लेकर आना। मैं उसका कलेजा खाऊंगी।

रोजाना की तरह अगले दिन मगरमच्छि और बंदर मिले तो मगरमच्छे ने बंदर को अपने घर चलने के लिए कहा। नन्दू ने कहा भई मुझे तो तैरना नहीं आता।

बिल्ली ने कहा कि मैं तुम्हेछ अपनी पीठ पर बैठा कर ले चलूंगा। मगरमच्छे की पीठ पर बैठकर और घर जाने के लिए बंदर ने तुरंत हां कर दी। बंदर बड़े मजे से सैर कर रहा था। बात करते करते दोनों नदी के बीच में पहुंच गए। बिल्लू ने नन्दू से कहा मेरी पति को जामुन बहुत पसंद आए। और उसे तुम्हारा कलेजा खाने के लिए घर बुलाया है।

बिल्लू मगरमच्छो के मुंह से ऐसी बात सुनकर नन्दू बंदर को बड़ा झटका लगा। फिर उसने बड़ी ही चतुराई से जवाब दिया अरे बिल्लू इतनी सी बात, ये बात तो तुझे पहले ही बताना थी। असल में हम बंदर अपना कलेजा पेड़ पर ही रखते हैं। अब अगर भाभी को कलेजा कलेजा खाना है तो मुझे वापस ले जाना होगा पेड़ के पास।

मैं पेड़ से अपना कलेजा लेकर फिर तुम्हातरी पीठ पर सवार हो जाऊंगा। हम वापस तुम्होरे घर चलेंगे। तब भाभीजी मेरा कलेजा खा लेंगी।

बिल्लू ने नन्दू की बात मान ली और वह पलटकर वापस नदी के किनारे की ओर चल दिया। नदी के किनारे पर आने के बाद बंदर मगरमच्छ की पीठ से उतरा। उसने मगर से कहा कि मैं अभी अपना कलेजा वापस लाता हूं।

पीठ से झट उतर बंदर ने पेड़ पर छलांग लगा दी। पेड़ पर चढ़ने के बाद बंदर ने मगर से कहा कि आज से तेरी- मेरी दोस्तीर खत्म । अरे बेवकूफ बंदर अपना कलेजा पेड़ पर रखेंगे तो जिंदा कैसे रहेंगे? और बिल्लू मगर को अपना मुंह लटकाकर वापस घर लौटना पड़ा।

भई बंदर ने तो अपनी समझदारी का परिचय देते हुए अपनी जान बचा ली। और हमें इससे ये सीख मिलती है कि दोस्ती में कभी भी इतने अंधें न हो जाएं कि अपने भले बुरे का फर्क ही न समझ पाएं। इस बात का एहसास हमेशा होना चाहिए कि हमारे लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा। वरना हमारे अपने ही हमारी जड़ो को खोंकली कर देंगें और हमें पता भी नहीं चलेगा।

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