हारिम। उत्तरी सीरिया में विस्थापितों के लिए बने एक शिविर में रह रहे नसराल्लाह इस उम्मीद के साथ गीली घास के एक थैले में मशरूम के बीजों को बिखेरते हैं कि वे अंकुरित होंगे और उनके परिवार का पेट भर सकेंगे। नसराल्लाह ने कहा, “मशरूम मीट का मुख्य विकल्प बन गया है क्योंकि मांस बहुत महंगा आता है।” सीरिया में आठ साल पहले गृह युद्ध शुरू होने के बाद, 43 वर्षीय नसराल्लाह ने हामा प्रांत स्थित अपने घर में मशरूम उगाना शुरू किया था। कलात अल मदीक में स्थानीय परिषद में एक समय काम करने वाले नसरल्लाह ने बताया, “हम इनमें से कुछ खा लेते थे और कुछ दोस्तों को दे दिया करते थे।” लेकिन इस साल की शुरुआत में, हमा क्षेत्र में शासन की तरफ से हमले बढ़ जाने के कारण उन्हें अपने परिवार को तुर्की सीमा की तरफ लेकर भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्हें उत्तरपश्चिम प्रांत इदलिब के हारिम नगर में एक शिविर में शरण तो मिल गई लेकिन वहां नौकरियों की कमी थी। अपनी पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण के लिए उन्होंने वहां मशरूम उगाने का काम शुरू किया। इनमें से कुछ को वे खाते हैं और कुछ को बेचकर पैसा कमाते हैं। मशरूम के बीज बोने से पहले वह इसे पानी में उबालते हैं। उसके बाद एक थैले में गीली घास की परत बनाते हैं और प्रत्येक में पांच से 10 ग्राम बीज बिखेरते हैं। थैले में कस कर गांठ बांध कर वह उसे अंधेरे, गर्म कमरे में रख देते हैं और उसे 20 दिन के लिए वहीं छोड़ देते हैं। थैला सफेद हो जाने के बाद वह उसे थोड़ी रोशनी वाले कमरे में लाते हैं, खोलते हैं और ऊपरी परत में नियमित रूप से हल्का-हल्का पानी डालते हैं जब तक कि वह अंकुरित न हो जाए। उन्होंने कहा कि बहुत लोग मशरूम नहीं उगाते लेकिन शिविरों में रहे लोग अब धीरे-धीरे इस तरफ रुख कर रहे हैं। देश के अन्य हिस्सों में भी सीरियाई लोगों ने युद्ध के दौरान मशरूम उगाने का काम किया है। सीरिया में करीब 65 लाख लोगों को या तो खाना ठीक से नहीं मिल पाता है या पर्याप्त पोषण वाले भोजन तक उनकी पहुंच नहीं होती।
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