दया याचिका सिस्टम खत्म हो

-कंचन शर्मा-

हैदराबाद गैंगरेप व हत्या की विभत्स घटना से देश भर में उपजा आक्रोश चारों अपराधियों की एनकाउंटर में हुई मौत से आमजन में अन्याय से निपटने की उम्मीद जागी है। पुलिस की भाषा में कहूं तो यह एनकाउंटर रेपिस्टों का नहीं बल्कि कस्टडी में उन अपराधियों का था जिन्होंने भागने की कोशिश की और पुलिस के हथियार छीनकर उन पर जानलेवा हमला किया। जाहिर है कि ये जो भी घटित हुआ उसके लिए हालात ही ऐसे बन गए होंगे या मानवाधिकार की दुहाई देने वालों के अनुसार ऐसे हालात बनाए भी गए हों! यह अलग मुद्दा है, लेकिन इनसानियत के दरिंदों की इससे छोटी सजा हो भी नहीं सकती थी। मैं तो कहती हूं कि जो भी व्यक्ति जिस निशृंशता से बलात्कर, हत्या, एसिड अटैक करें उसके साथ जैसे को तैसा वाला कानून होना चाहिए फिर वे चाहे बालिग हो या नाबालिग। देखा जाए तो कोई भी इनसान जो रेप कर रहा हो, जिसके शरीर में वासना निशृंशता की कुलांचे भरती हों, वे प्राकृतिक रूप से नाबालिग हो ही नहीं सकता। कानून भले ही हमारे शरीर व मस्तिष्क की अपरिपक्वता को लेकर बालिग होने की उम्र तय करता है मगर प्रकृति लड़की व लड़के की शारीरिक संरचना व परिवर्तन के आधार पर उसके बालिग होने का समर्थन करती है। भले ही कानून नागरिकों को बालिग तयशुदा उम्र में सारे अधिकार दे, किसी भी अपराध के प्रति नाबालिगों को पोस्को एक्ट में दया याचना का अधिकार दे मगर ‘बलात्कार’ के मामले में पोस्को एक्ट में दया याचना के अधिकार व कानून को हर हाल में खत्म करना ही होगा। क्योंकि वासना मनुष्य का प्राकृतिक मनोविकार है इसका बालिग होने या न होने से कोई सरोकार नहीं। हालांकि यह एक सामान्य क्रिया है पर जब इनसान इसमें अंधाधुंध लिप्त हो जाए तो यह विनाशकारी हो जाता है। बलात्कार व हत्या का अपराधी अगर नाबालिग हो तो वे अपराध और भी ज्यादा संगीन हो जाता है। किसी अपवाद को छोड़कर ऐसे अपराधी समाज में कोढ़ साबित हो सकते हैं। उनके प्रति किसी भी प्रकार की दया से पहले हजार बार सोचने की आवश्यकता है। बड़े दुख की बात है कि प्रियंका के निर्मम बलात्कार व हत्या के बाद विश्व ने भारत को बलात्कारियों का देश कहना शुरू कर दिया है। आखिर क्यों नहीं कहेगा जहां हर 15 मिनट बाद बलात्कार, यौन शोषण जैसी घटनाएं हो रही हैं। जहां कानून की तारीखों में कितनी ही निर्भयायों की सिसकियां सुनाई दे रही हैं। कानून की दरीचें इतनी चौड़ी हैं कि बड़े से बड़ा अपराधी भी उससे लंबी प्रक्रिया के चलते बच निकलता है। वे चुनाव भी लड़ लेता है, हाथों में मोमबत्तियां लेकर चलने वाले उसे जीत का शेहरा भी पहना देते हैं अफसोस मगर बेटियों को सुरक्षित माहौल नहीं मिल पा रहा, यह कैसी विडंबना है! 16 दिसंबर को निर्भया केस के 7 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। वह निर्भया जिसके साथ बलात्कर के बाद बर्बरता से आंतें तक बाहर निकाल ली गईं, उसके अपराधी आज भी राष्ट्रपति के पास सजा से बचने के लिए दया याचिका भेज रहे हैं इससे ज्यादा दयनीय स्थिति किसी भी देश की बेटियों के लिए और क्या हो सकती है, हम खुद अंदाजा लगा सकते हैं। तभी और केवल तभी उन्नाव में रेप पीडि़ता को जलाने की कोशिशें परवान चढ़ रही हैं। इस अमानवीय होती दुनिया को कानून का डर बेहद जरूरी है। बलात्कार का कानून सबके लिए एक सा हो चाहे वे सफेद पोश हो, पूंजीपति हो, सेलिब्रिटी हो, नेता हो, रसूखदार हो, साधु-संत के वेश में भेडि़या हो, बालिग हो या फिर नाबालिग। हैंग टिल डेथ।

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