झारखंड में टिमटिमा रही लालटेन की लौडॉ.शारदा वंदना

रांची। झारखंड में विधानसभा चुनाव की घोषणा होने के साथ ही सियासी पार्टियां चुनाव की तैयारियों में जुट गयी हैं। भाजपा और विपक्षी दल पूरे दमखम के साथ लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए पसीना बहा रहे हैं। विपक्ष एनडीए के खिलाफ मजबूत मोर्चा बनाने में जुटा हुआ है लेकिन अबतक विपक्षी गठबंधन का खाका तैयार नहीं हुआ है। एक मंच पर आना तो दूर सभी अबतक एकला चलो की राह अपनाए हुए हैं।

झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) बदलाव रैली, झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) जनादेश समागम रैली और कांग्रेस जन आक्रोश रैली के जरिए जनता के बीच पकड़ बनाने में लगी है। कोशिश की जा रही है कि सत्तारुढ़ भाजपा को शिकस्त दी जाए। इन सब के बीच विपक्ष में सबसे खराब हालत राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की है। कई मोर्चों पर संघर्ष कर रहे राजद को सूबे में साख और संगठन को मजबूत करने की सबसे बड़ी चुनौती है। कभी राजनीति के किंगमेकर रहे लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद आज झारखंड में अपनी सियासी वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रही है।

हालांकि, तेजस्वी यादव ने एक-दो जगह चुनावी दौरे पर कार्यकर्ताओं में जान फूंकने की भरसक कोशिश की लेकिन उसका कोई खास असर धरातल पर होता नहीं दिखाई दे रहा है। लालू के जेल में जाने से जहां बिहार की राजनीति में राजद सियासी तौर पर कमजोर दिखाई दे रहा है वहीं झारखंड में लालटेन की लौ धीमी होती नजर आ रही है। राज्य गठन के बाद प्रदेश राजद की सक्रियता का ग्राफ गिरने का सिलसिला जो शुरू हुआ, वह इसबार चुनाव में अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद कर रहा है। अविभाजित बिहार में झारखंड से राजद के नौ विधायक हुआ करते थे।

2005 में यह संख्या घटकर सात हो गई और 2009 में पांच। 2014 में राज्य से इसका पत्ता पूरी तरह साफ हो गया।राजनीतिक जानकार कहते हैं कि एकीकृत बिहार में राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के नियंत्रण में झारखंड में राजद की साख कमोबेश बरकरार रही। इस बीच 15 नवंबर 2000 को जब झारखंड बिहार से अलग हुआ, लालू ने झारखंड में राजद की इस साख को बनाए रखने पर कभी ध्यान नहीं दिया। पटना से ही वह स्थानीय नेताओं को निर्देश देते रहे। प्रदेश राजद की कमान पूरी तरह से स्थानीय नेताओं के हाथ सौंप दी गई, जो प्रदेश में राजद के सांगठनिक ढांचे को कमजोर करने में कहीं न कहीं सहायक बना। लगभग डेढ़ दशक की इस अवधि में प्रदेश राजद का स्थायी कार्यालय तक नहीं खुल सका।बड़े नेताओं ने छोड़ा साथराजद की स्थिति झारखंड में नाजुक हुई तो कई बड़े नेताओं ने इससे किनारा कर लिया। लालू को सबसे बड़ा झटका अन्नपूर्णा देवी के रूप में लगा। लोकसभा चुनाव के दौरान ही राजद की प्रदेश अध्यक्ष अन्नपूर्णा देवी भाजपा में शामिल हो गयीं। उस समय गौतम सागर राणा को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया था। लेकिन चुनाव में खराब प्रदर्शन को देखते हुए प्रदेश की कमान गौतम सागर से लेकर अभय सिंह को दे दी गयी। इससे नाराज गौतम सागर राणा ने अलग पार्टी राष्ट्रीय जनता दल लोकतांत्रिक का गठन किया।

कभी प्रदेश राजद के अध्यक्ष रहे और सरकार में मंत्री रहे गिरिनाथ सिंह ने भी लोकसभा चुनाव के दौरान राजद का दामन छोड़कर भाजपा को अपना लिया। एनडीए की वर्तमान सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी राजद के बड़े स्तंभ माने जाते थे। इस दल से विधायक भी बने लेकिन 2014 में पाला बदलकर भाजपा में चले गए और जीतकर विधानसभा पहुंचे। इसी तरह प्रकाश राम ने भी 2014 में ही दल का साथ छोड़ दिया और झारखंड विकास मोर्चा में शामिल होकर विधायक बने। राजद छोड़कर झाविमो में शामिल हुए जानकी यादव भी 2014 में विधायक चुने गए। इसके अलावा प्रदेश से लेकर जिला स्तर तक कई नेताओं ने दल का साथ छोड़ दिया।यह चुनाव नहीं चुनौतीइधर, संगठन में जान फूंकने के लिए राजद द्वारा आयोजित जनाक्रोश रैली में बिहार के नेता प्रतिपक्ष और राजद नेता तेजस्वी यादव ने रांची में जमकर हुंकार भरी।

उन्होंने कार्यकर्ताओं में जोश भरते हुए पूरी ताकत से चुनाव की तैयारियों में जुट जाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि वे महागठबंधन के पक्षधर हैं लेकिन लोकसभा चुनाव की तरह इस चुनाव में बिखराव की स्थिति नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह चुनाव नहीं चुनौती है, जो राज्य को एक नई दिशा देगा। उन्होंने राज्य सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि डबल इंजन का दंभ भरने वाली भाजपा का एक इंजन अपराध तथा दूसरा भ्रष्टाचार का है। उन्होंने विपक्षी से आह्वान किया कि सभी साथ रहें। पिछली बार की तरह अलग-अलग चुनाव नहीं लड़ना है। भाजपा के खिलाफ सभी एक साथ चुनाव लड़े। ऐसा करने से महागठबंधन भाजपा को धूल चटा सकती है।बहरहाल, 2019 के विधानसभा चुनाव को केंद्र में रख लालटेन की लौ तेज करने की कमान अभय सिंह पर है। गठबंधन को लेकर राजद झामुमो सहित कांग्रेस से भी बातचीत कर रहा है लेकिन चुनाव पूर्व दो फाड़ हुए राजद को विपक्षी खेमे में कितनी तवज्जो मिलेगी, ये सीट शेयरिंग के फॉर्मूले से ही पता चल पाएगा। राजनीतिक जानकारों की मानें तो सूबे की सियासत में राजद को अपना वजूद बचाने के लिए कड़ा संघर्ष करना होगा। झारखंड राजद के कई बड़े चेहरे पार्टी छोड़ गए हैं, ऐसे में राज्य की जनता इस पार्टी पर कितना भरोसा करेगी यह भविष्य के गर्भ में है। 

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