Ramgarh : झारखण्ड में अस्मिता,अस्तित्व, झारखंडी भाषा, संस्कृति और खतियान के मुद्दे पर झारखंडी भाषा संघर्ष समिति के द्वारा पिछले 40 दिनों से जारी आंदोलन का समापन गुरुवार को हो गया. आंदोलन के अंतिम दिन हंदकल लुआठी गहदम (मशाल जुलूस) जिला मैदान शनिचरा हाट बाजार से शुरू होकर चट्टी बाजार गाँधी चौक होते हुए मेन रोड सुभाष चौक में जाकर सभा के रूप में संपन्न हुई.
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झारखंडी पहचान के सवाल पर झारखंड के क्षेत्रीय जनजातीय भाषा के अलावे दिकू भाषा (भोजपुरी, मगही, अंगिका, मैथली, बंगाली, उर्दू, उड़िया) को पाठ्यक्रम में शामिल करने के विरुद्ध दिकू भाषा को प्रतियोगी परीक्षाओं के पाठ्यक्रम में हटाने की मांग के साथ-साथ झारखंड की द्वितीय राजभाषा की सूची से दिकू भाषाओं को हटाने की मांग,झारखंड की पहचान 1932 का खतियान आधारित स्थानीयता को परिभाषित करने एवं लागू नहीं किए जाने से लोगों का गुस्सा खुलकर सामने आ गया. विदित हो कि प्रारंभ में ये भाषाई आंदोलन बोकारो धनबाद से जिला स्तरीय पदों पर नियुक्ति से संबंधित आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं में अनिवार्य क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषा सूची में मगही भोजपुरी को कार्मिक सचिव द्वारा 27 दिसंबर 2021 को जारी अधिसूचना के साथ ही आक्रोश बढ़ गया विरोध शुरू हो गया!
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झारखंड के मान्यता प्राप्त 9 जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं (खोरठा, कुरमाली, पंचपरगनिया, नागपुरी/सादरी, कुडुख, संथाली,हो,खड़िया) अलावे दिकू भाषा भोजपुरी, मगही, अंगिका, मैथिली को शामिल करने के विरुद्ध झारखण्डी बेरोजगार, छात्र-नौजवानों का गुस्सा पूरे झारखंड के गुस्से का प्रतिनिधित्व करते हुए वृहद रूप ले लिया है.
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